शाह के कश्मीर दौरे का संदेश
अमित शाह की यात्रा का महत्व जम्मू-कश्मीर की दृष्टि से तो व्यापक है ही, पाकिस्तान और उनके समर्थकों के लिए भी इसमें सीधा संदेश है.
गृहमंत्री अमित शाह की जम्मू-कश्मीर यात्रा ऐसे समय हुई जब देश जानना चाहता था कि सरकार की नीति-रणनीति क्या है. ऐसे समय जब हिंदुओं, सिखों, गैर-कश्मीरियों पर आतंकी हमले हो रहे हों, आतंकवादियों और सुरक्षा बलों के बीच लगातार मुठभेड़ जारी हो, कोई गृहमंत्री शायद ही जाने का फैसला करता. इससे पूर्व जम्मू-कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश नहीं था और न 370 से विहीन था. इस नाते उनकी यात्रा की तुलना किसी से नहीं जा सकती.
जिन लोगों को आशंका रही होगी कि अमित शाह या मोदी सरकार जम्मू-कश्मीर की वर्तमान स्थिति को लेकर थोड़े निराश होंगे या कुछ अनिश्चय भरी बातें करेंगे, उन्हें धक्का लगा होगा. सुरक्षा व्यवस्था को लेकर सरकारी अधिकारियों एवं सुरक्षा बलों के साथ क्या बातें हुईं, वह पूरी तरह सार्वजनिक नहीं हो सकती. लेकिन, जितनी बातें सामने आयीं, उनसे सुरक्षा अभियान को ज्यादा व्यापक रूप से लक्षित किया जा रहा है. अमित शाह के हाव-भाव और शब्दों में आत्मविश्वास की वही झलक थी जो लंबे समय से देश उनके अंदर देख रहा है.
जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में अमित शाह ने जो कदम उठाया, उसने नया अध्याय लिख दिया. 5 अगस्त, 2019 को जब वे संसद परिसर में प्रवेश कर रहे थे तो क्या किसी को रत्ती भर भी उम्मीद थी कि नासूर बने अनुच्छेद-370 की लीला समाप्त हो जायेगी? राज्यसभा और लोकसभा में हुई बहस तथा मतदान के दृश्य लंबे समय तक ताजा रहेंगे. अमित शाह ने पूरे मामले को हैंडल किया, विपक्ष के सारे आरोपों का एक-एक कर उत्तर दिया.
देश और जम्मू-कश्मीर में रुचि रखने वाले पाकिस्तान सहित कई देश प्रतीक्षा कर रहे थे कि वह कब जम्मू-कश्मीर आते हैं. नरेंद्र मोदी सरकार, जम्मू-कश्मीर, स्वयं अमित शाह के लिए यह यात्रा सामान्य नहीं हो सकती, क्योंकि 370 निरस्त होने के बाद वे पहली बार कदम रख रहे थे. वहां कृषि से लेकर व्यापार, उद्योग, निवेश, स्वास्थ्य, शिक्षा, कला-संस्कृति, खेलकूद आदि सभी क्षेत्रों में योजनाबद्ध तरीके से प्रयास हुआ है. उपराज्यपाल मनोज सिन्हा सारी नीतियों को न केवल क्रियान्वित करने में लगे हैं, बल्कि अपने अधिकारों के तहत उसमें संशोधन-परिवर्तन करते हैं.
जम्मू-कश्मीर में पिछले दो-ढाई वर्षों में आया परिवर्तन कोई भी देख सकता है. नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी आदि की बेचैनी इसीलिए है, क्योंकि बदलाव जारी रहा तो राजनीतिक वर्णक्रम पूरी तरह बदल जायेगा. अमित शाह गृहमंत्री हैं तो भाजपा के नेता भी. उनका राजनीतिक लक्ष्य तभी पूरा हो सकता है जब भाजपा और संघ के मुख्य लक्ष्य आतंकवाद का खात्मा, कश्मीर में भारतीय राष्ट्र का उद्घोष, जम्मू के साथ कश्मीर में भी हिंदुओं, सिखों तथा अन्य गैर-मुस्लिमों का अपने धार्मिक सांस्कृतिक क्रियाकलापों के साथ सहज रूप में निवास करना पूरी होती दिखे.
जब वे एक सभा को प्रतिकूल मौसम में संबोधित कर रहे थे उसी समय पुंछ से लेकर दूसरे क्षेत्र में सुरक्षा बलों की आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ जारी थी. गृहमंत्री ने उसी स्वर को प्रतिध्वनित किया, जिसे उन्होंने 5 अगस्त, 2019 को राज्यसभा में गुंजित किया था. मोदी सरकार की जम्मू-कश्मीर नीति बहुआयामी है.
सुरक्षा का माहौल, हिंदुओं, सिखों को विश्वास दिलाना कि रहने की स्थिति बन गयी है, अलगाववाद और आतंकवाद की गतिविधियों से विरत करने के लिए शिक्षा, संस्कृति, खेलकूद, उद्यमिता आदि के लिए प्रोत्साहित करना, पंचायत स्तर पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को सशक्त कर आम लोगों को सच्चाई का एहसास कराना, परंपरागत राजनीतिक दलों को चुनौती देना, राजनीति की नयी धारा को प्रोत्साहित करना, सुरक्षा का विश्वास दिलाना, जम्मू और कश्मीर के बीच आर्थिक व प्रशासनिक संतुलन कायम करना आदि इनमें शामिल है.
सीमा पर भारत की आखिरी पोस्ट मकवाल सीमा पर अग्रिम इलाकों का दौरा और बीएसएफ के बंकर में जाना, सीमा के गांव में बैठकर जनता से संवाद करना तथा श्रीनगर की सभा में बुलेट प्रूफ शीशा हटाकर लोगों से कहना कि मैं आपके बीच बात करने आया हूं, डरिये नहीं आदि सुरक्षा के प्रति विश्वास जगाने की दृष्टि से महत्वपूर्ण था. गांदेरबल के प्रसिद्ध खीर भवानी मंदिर में पूजा-अर्चना का संदेश भी स्पष्ट था. शाह ने सरकार के प्रयासों से गठित अनेक युवा क्लब के युवाओं से बातचीत करते हुए कहा कि विकास की जो यात्रा शुरू हुई है उसमें किसी को खलल नहीं डालने देंगे.
इसका वहां के युवाओं और लोगों पर कुछ न कुछ असर हुआ होगा. जम्मू की सभा में अमित शाह ने कहा कि तीन दल मुझसे पूछ रहे थे कि क्या दोगे, मैं तो हिसाब लेकर आया हूं, लेकिन आपने 70 सालों में क्या दिया है उसका हिसाब जनता मांग रही है. उन्होंने कहा कि आम महिलाओं को पूरा अधिकार नहीं मिला, शरणार्थी नागरिक नहीं बने, वाल्मीकि समुदाय, गुज्जर और दूसरी जातियों को जमीन तक खरीदने का अधिकार नहीं था और वह सब अब मिल रहा है.
भाजपा और सरकार की नीति के अनुरूप उनकी यह घोषणा महत्वपूर्ण थी कि अब तीन परिवार से नहीं, गांव में जीतने वाला सरपंच और पंच भी मुख्यमंत्री बन सकता है. उन्होंने गुर्जर लोगों से कहा कि आप भी यहां के मुख्यमंत्री बन सकते हो. उन्होंने अपने दो वायदे प्रखरता से दोहराये, पहला एक-एक व्यक्ति यहां सुरक्षित होगा, दूसरा जम्मू के साथ अब अन्याय नहीं होगा. दोनों क्षेत्रों का समान विकास होगा.
उन्होंने स्पष्ट किया कि परिसीमन के बाद चुनाव होंगे तथा आनेवाले समय में पूर्ण राज्य का दर्जा मिल जायेगा. यानी जो परिसीमन का विरोध करते हैं उनका असर नहीं होने वाला है और जो गलतफहमी फैला रहे हैं कि स्थायी रूप से केंद्र शासित प्रदेश रहेगा वह भी झूठ है.
उन्होंने वहां के लोगों को संदेश दिया कि आप डरिये नहीं, राजनीति में आइये. आपको सुरक्षा मिलेगी, यहां के नेता आप बन सकते हैं. मीडिया में ये बातें चल रही थीं लेकिन राष्ट्रीय स्तर के किसी नेता ने जम्मू-कश्मीर में आकर इस तरह की बातें नहीं की थी. इस नाते अमित शाह की यात्रा का महत्व जम्मू-कश्मीर की दृष्टि से तो व्यापक है ही, पाकिस्तान और उनके समर्थकों के लिए भी इसमें सीधा संदेश है.