अर्थव्यवस्था को कृषि का सहारा

कृषि उत्पादन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और उसके चलते उत्पादन पर लॉकडाउन जैसे फैसलों का सीधे बहुत असर नहीं हुआ.

By हरवीर सिंह | June 17, 2021 8:04 AM
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आजादी के बाद से देश की अर्थव्यवस्था में पांच बार गिरावट दर्ज की गयी है, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है, जब गिरावट के बावजूद कृषि क्षेत्र में वृद्धि हुई. कृषि और सहयोगी क्षेत्र में 3.6 फीसदी की बढ़त हुई है. अर्थव्यवस्था के ऋणात्मक होने को अर्थशास्त्र की शब्दावली में सिकुड़ना कहते हैं. पिछले वित्त वर्ष में यह संकुचन 7.3 फीसदी रहा, जिसकी मुख्य वजह कोविड महामारी और उसके चलते लागू किये गये लॉकडाउन रहे.

अगर कृषि क्षेत्र में सकारात्मक वृद्धि नहीं होती, तो जीडीपी में गिरावट का स्तर कहीं अधिक होता. लेकिन क्या इस साल भी कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर रहेगा? इस पर अभी बहुत स्पष्ट राय बनाना मुश्किल है. वैसे दक्षिण-पश्चिम मॉनसून के सामान्य रहने का अनुमान है और उसे आधार माना जाये, तो चालू साल में भी कृषि का प्रदर्शन बेहतर रह सकता है, लेकिन कुछ ऐसे कारक भी हैं, जो इसे प्रभावित कर सकते हैं. आजादी के बाद से पांच बार जीडीपी के ऋणात्मक रहनेवाले बरसों में चार साल ऐसे थे, जब गिरावट की वजह कृषि क्षेत्र का कमजोर प्रदर्शन रहा था.

उन बरसों में ऐसा सूखा पड़ने और कमजोर मॉनसून रहने से हुआ था. वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 1957-58, 1965-66, 1972-73 और 1979-80 ऐसे साल थे. इन पांच वर्षों में सर्वाधिक गिरावट 2020-21 में हुई. केवल भारत में ही नहीं, बल्कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में भी पिछले साल 4.3 फीसदी की कमी आयी. चीन, बांग्लादेश समेत कुछ देश ही इसका अपवाद रहे.

कृषि क्षेत्र की बढ़त की सबसे बड़ी वजह रही 2019-20 और 2020-21 में मॉनसून का सामान्य से बेहतर रहना. इससे फसलों को समुचित पानी मिलने के साथ ही जलाशयों में पानी का स्तर बेहतर रहा. कृषि उत्पादन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है और उसके चलते उत्पादन पर लॉकडाउन जैसे फैसलों का सीधे बहुत असर नहीं हुआ तथा सरकार के फैसलों का फायदा भी मिला. कोरोना की पहली लहर के शुरू होते समय रबी फसलों की कटाई शुरू हो चुकी थी.

तब सरकार ने लॉकडाउन के नियमों में कृषि क्षेत्र के लिए सबसे पहले ढील दी. कृषि से जुड़ी गतिविधियों और दुकानों को खोलने की अनुमति मिली तथा रबी फसलों, खासतौर से गेहूं की सरकारी खरीद के लिए जरूरी व्यवस्थाएं हुईं. नतीजतन, लॉकडाउन के बीच खाद्यान्नों की रिकॉर्ड सरकारी खरीद हुई. अप्रैल-जुलाई, 2020 की अवधि में गेहूं, चना, सरसों और कपास की सरकारी खरीद के जरिये किसानों को करीब 1.30 लाख करोड़ रुपये मिले. प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि की पहली किस्त के रूप में 21 हजार करोड़ रुपये सीधे किसानों के खाते में डाले गये.

साथ ही मनरेगा का बजट बढ़ाकर 1.11 लाख करोड़ कर दिया गया. इसके चलते कृषि और ग्रामीण क्षेत्र में नकदी का प्रवाह बढ़ गया था. पिछले साल उर्वरकों की बिक्री में 60 लाख टन की बढ़ोतरी हुई. जब ऑटोमोबाइल उद्योग बिक्री के लिए तरस रहा था, तब नौ लाख ट्रैक्टरों की बिक्री के साथ अन्य कृषि उपकरणों की बिक्री में रिकॉर्ड वृद्धि दर्ज की गयी. पहली लहर में गांव संक्रमण से लगभग अछूते रहे थे. इसके चलते ग्रामीण आबादी और किसानों पर इलाज जैसे खर्चों का अतिरिक्त बोझ भी नहीं पड़ा. ऐसे में जो आय हुई, उसमें से अधिकांश खर्च की गयी और उसका फायदा दूसरे उद्योगों को मांग के रूप में मिला.

लेकिन एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि बाजारों के बंद होने से दूध किसानों, फल और सब्जियां पैदा करनेवालों और पॉल्ट्री किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा. इन उत्पादों के लिए कोई न तो कोई न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था है और न ही सरकार ने कोई पैकेज दिया. देश के जिन हिस्सों में सरकारी एजेंसियां कारगर तरीके से फसलों की खरीद के लिए मौजूद थीं, वहां पर ही एमएसपी का फायदा मिला. लेकिन एपीएमसी कानून खत्म करनेवाले बिहार जैसे राज्य में मक्का किसानों को एमएसपी से आधे दाम पर अपनी फसल बेचनी पड़ी.

पर इन तमाम परिस्थितियों के बावजूद कृषि क्षेत्र ने वृद्धि कर अर्थव्यवस्था को सहारा दिया. चालू वित्त वर्ष 2021-22 में भी अच्छे प्रदर्शन के लिए पहला बड़ा कारण मॉनसून को माना जा रहा है. दूसरे, रिकॉर्ड रबी उत्पादन के चलते चालू विपणन सीजन में गेहूं की 418.47 लाख टन की रिकॉर्ड सरकारी खरीद के चलते किसानों के खाते में 82,650 करोड़ रुपये जमा हुए हैं. कई साल बाद सरसों और चना जैसी फसलों के किसानों को एमएसपी से अधिक कीमत और बंपर फसल का दोहरा फायदा मिला है.

अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत बेहतर होने के चलते चीनी और खाद्यान्नों समेत कृषि उत्पादों का निर्यात तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन कोरोना की दूसरी लहर ने गांवों को बुरी तरह अपनी चपेट में लिया है. इसने आम लोगों और ग्रामीण आबादी की आर्थिक स्थिति को भी बुरी तरह प्रभावित किया है. शहरी और मध्य वर्ग में झिझक के चलते कई उत्पादों की मांग कमजोर है और इसमें सुधार नहीं हो रहा है. इस बार कृषि क्षेत्र को दूसरे क्षेत्रों से मांग निकलने के सहारे की अधिक जरूरत है. उम्मीद है कि अगले कुछ दिनों में खरीफ फसलों की बुवाई तेज होगी और संक्रमण में गिरावट आ रही है, तो कृषि क्षेत्र के लिए मजदूरों की उपलब्धता भी बेहतर हो सकेगी.

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