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त्योहारों में छोटे दुकानदारों को दें सहारा

महामारी की बंदिशों से सबसे ज्यादा नुकसान छोटे व्यापारियों को हुआ है. उनका कामकाज ठप हो गया या कम चला, लेकिन अब समय आ गया है कि हम सब मिल कर भारत के इस हिस्से को सहारा दें.

दीपावली की रौनक से बाजार गुलजार हैं. दीया, पुरुआ, खील-बताशे और मिठाइयों की दुकानें सजी हैं. रोशनी के लिए मोमबत्तियों, बिजली की लड़ियों और कंदील की सेल हो रही है. महामारी के डर से लोग डेढ़ साल से अधिक समय तक घरों में बैठे रहे. उन्होंने इस दौरान पैसे को दांत से पकड़ कर रखा, लेकिन इस दिवाली पर सारी कसर पूरी होती दिख रही है. मध्यम वर्ग की जेब में पड़ा पैसा अब खनक रहा है.

घर से बाहर निकलने की मानो होड़ सी लगी है. बाजार में अगर कोई चीज कम दिख रही है, तो वे हैं चीन में निर्मित उत्पाद और खिलौने आदि. पर इतनी जल्दी चीन पर निर्भरता पूरी तरह से खत्म नहीं होगी. व्यापार से जुड़ी तमाम चीजों, दवाओं, रसायनों व कच्चे माल के लिए भारत अभी भी चीन पर निर्भर है, यहां तक कि खेतों में लगाने के लिए रासायनिक खाद तक, लेकिन कुछ बातें हैं, जिनके चलते अब चीन का रुतबा घट रहा है.

भारत सरकार की आत्मनिर्भर भारत और वोकल फॉर लोकल जैसी नीतियों तथा लद्दाख में चीनी घुसपैठ कुछ ऐसे ठोस कारण हैं, जिनकी वजह से चीन में तैयार उपभोक्ता उत्पादों से भारतीय लोगों का मोहभंग हुआ है. एक तो चीनी माल सस्ता होता था और फिर भारतीय वस्तुओं के विकल्प कम थे या महंगे होते थे, जिसकी वजह से चाहे-अनचाहे मेड इन चाइना माल से बाजार पटे रहते थे. कोविड महामारी से पहले भारत समेत दुनियाभर में चीनी सामान की तूती बोलती थी. अमेरिकी लोगों के घरों में भी ज्यादातर सामान मेड इन चाइना ही होता था. तभी तो चीन अकड़ता रहा है.

दरअसल, हमारे इस पड़ोसी देश ने अपने यहां तकनीकी शिक्षा पर बहुत जोर दिया है. दसवीं कक्षा के बाद युवाओं को तकनीकी प्रशिक्षण देने के लिए चीन में हजारों इंस्टीट्यूट व कॉलेज हैं. दूसरी ओर, भारत में अनुपयोगी बीए, एमए डिग्री वालों की भरमार है और तकनीकी हुनर को हिकारत की नजर से देखा जाता है. इसीलिए हमारे यहां तकनीशियन, मिस्त्री, कारीगर कम हैं या फिर जो हैं, वे ठीक से शिक्षित नहीं है. चीन में टेक्निकल वर्कफोर्स की कमी नहीं है, हमेशा से औद्योगिक उत्पादन पर जोर रहा है, इसलिए वहां कारखानों में तरह-तरह के उत्पाद भारी मात्रा में तैयार होते हैं.

थोक उत्पादन होने की वजह से चीनी माल की कीमत काफी कम होती है. खिलौनों का बाजार तो अभी तक चीन के ही कब्जे में रहा है, परंतु अब स्थिति में बदलाव हो रहा है. भारत सरकार अब स्थानीय चीजों के उत्पादन को प्राथमिकता दे रही है. अब भारत न सिर्फ अपने लिए, बल्कि दुनिया के अन्य मुल्कों के लिए भी माल तैयार करने में जुट गया है.

खिलौनों की बात करें, तो गत वर्ष चीनी घुसपैठ के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारतीय खिलौनों को बढ़ावा देने की बात कही थी. उन्होंने युवाओं और कारीगरों से अपील की थी कि देसी खिलौनों का उत्पादन करनेवाले स्टार्टअप शुरू करें और खिलौनों में नयापन लायें. इसका असर अब देखने को भी मिल रहा है. देश के खिलौना बाजार में 50 फीसदी से ज्यादा खिलौने भारत में निर्मित हैं. ये आकर्षक, टिकाऊ और किफायती भी हैं.

दिल्ली के झंडेवालान इलाके में खिलौनों का सबसे बड़ा बाजार है, जहां 150 से ज्यादा दुकानें हैं. वहां बच्चों की साइकिलें और तरह-तरह के खिलौने बिकते हैं. भारतीय खिलौना विक्रेताओं को उम्मीद है कि स्वदेशी खिलौनों की बिक्री और बढ़ेगी. देश में आम लोग अब भारत में निर्मित खिलौनों की मांग करने लगे हैं.

सभी का बचपन खिलौनों के साथ ही बीतता है. खिलौने बच्चों के कोमल मस्तिष्क पर गहरा असर डालते हैं. इसीलिए डेनमार्क के सबसे बड़े खिलौना निर्माता लेगों ने तय किया है कि अब उनके यहां लिंग के हिसाब से खिलौने नहीं बनाये जायेंगे. विभिन्न देशों के छह से 14 साल तक के बच्चों के बीच हुए एक ग्लोबल सर्वे से पता चला है कि 71 प्रतिशत लड़के अक्सर लड़कियों के खिलौनों से नहीं खेलना चाहते.

संगी-साथियों के बीच उन्हें अपना मजाक बनने का डर सताता है. लड़कियों के खिलौने प्राय: रसोई, गुड़िया, फैशन, मेकअप और घरेलू कामकाज से जुड़े होते हैं, जबकि लड़कों के खिलौने गणित, इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी से ताल्लुक रखते हैं. सर्वे में माता-पिता ने माना कि वे लड़कों को खेलकूद और लड़कियों को डांस व कुकिंग आदि सिखाते हैं. बहुत कुछ बदल रहा है, आगे और बदलेगा.

हाल ही में मन की बात कार्यक्रम में एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने दोहराया कि स्वदेशी वस्तुओं के इस्तेमाल पर जोर दिया जाए. ठीक भी तो है, स्थानीय दुकानदारों, छोटे विक्रेताओं और देसी कारीगरों द्वारा तैयार वस्तुएं खरीदने से भारत का मान बढ़ेगा तथा गरीब के घर में भी पैसा पहुंचेगा. हर घर में रौनक होगी. हर घर में दीपावली की खुशी महसूस की जायेगी. सबका धंधा चलेगा, सबकी जेब में पैसा पहुंचेगा, तभी सही मायने में मनेगी दीपावली.

कोरोना की मार से वैसे भी छोटा दुकानदार और व्यापारी ही सबसे अधिक परेशान रहा है. उसका काम-धंधा या तो बंद रहा या बहुत कम चला. अब समय आ गया है कि पूरा भारत मिल कर पूरे भारत को सहारा दे. त्योहारी खरीदारी के समय दिखायी गयी यह उदारता देश को खुशहाली की ओर ले जायेगी.

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