इंडिया गेट पर नेताजी की प्रतिमा
दिल्ली में लगभग 47 साल पहले स्थापित हुई थी नेताजी की पहली आदमकद मूर्ति, जिसमें भाव और गति का कमाल का संगम है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नयी दिल्ली के राजपथ पर स्थित इंडिया गेट पर हमारे स्वाधीनता संग्राम के महान सेनानी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की प्रतिमा लगाने का फैसला कर इस महानायक को न केवल यथोचित सम्मान का प्रदर्शन किया है, बल्कि उनकी स्मृति को उसका अधिकार भी प्रदान किया है.
नेताजी समूचे देश के नायक हैं. इंडिया गेट पर देशभर से ही नहीं, वरन पूरी दुनिया से पर्यटक आते हैं. वे सब वहां अब उनकी मूर्ति को देख सेकेंगे तथा भारत की स्वतंत्रता में उनके योगदान का स्मरण कर सकेंगे. देश की राजधानी में लगभग 47 साल पहले सुभाष पार्क (पहले एडवर्ड पार्क) में 23 जनवरी, 1975 को स्थापित की गयी थी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की पहली आदमकद मूर्ति. उस दिन नेताजी सुभाषचंद्र बोस और आजाद हिंद फौज (इंडियन नेशनल आर्मी- आइएनए) के उनके साथियों की प्रतिमाओं का अनावरण तत्कालीन उपराष्ट्रपति बीडी जत्ती ने किया था.
इन्हें यहां पर स्थापित करने में तकरीबन दस दिन लगे थे. दिल्ली के निवासी मूर्ति के लगने के कई दिनों के बाद तक इसके आगे हाथ जोड़ कर खड़े मिलते थे. इस मूर्ति में भाव और गति का कमाल का संगम देखने को मिलता है. इसे आप कुछ पल रूक कर अवश्य देखते हैं. इसे देख कर लगता है कि नेताजी आपसे कुछ कहना चाहते हों. यह बेहद जीवंत प्रतिमा है. इसे राष्ट्रपति भवन के पास लगे ग्यारह मूर्ति स्मारक के स्तर की माना जा सकता है.
महात्मा गांधी की अगुआई में हुए महत्वपूर्ण दांडी मार्च को प्रदर्शित करनेवाली ग्यारह मूर्तिओं में भी कई मूरतें हैं. बता दें कि इंडिया गेट पर जिस जगह पर नेताजी की मूर्ति लगेगी, वहां पर पहले महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित करने का प्रस्ताव था.
उल्लेखनीय है कि इंडिया गेट का उद्घाटन 12 फरवरी, 1931 को हुआ था. तब देश पर औपनिवेशिक शासन था. यह सबको पता ही है कि यह स्मारक प्रथम विश्व युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों की याद में बना था. यहीं पर 1947 यानी भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति तक ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम की मूर्ति स्थापित थी. अब उसी स्थान पर नेताजी की प्रतिमा हम देखेंगे. इंडिया गेट को लाल और धूसर रंग के पत्थरों और ग्रेनाइट से बनाया गया था.
इंडिया गेट के अंदर मौजूद लगभग 300 सीढ़ियों को चढ़ कर आप इसके ऊपरी गुंबद तक पहुंचते हैं. इस स्मारक की सुरक्षा के लिए भारतीय सशस्त्र सेना के तीनों अंगों- थल सेना, नौसेना और वायुसेना- के जवान दिन-रात तैनात रहते हैं. इंडिया गेट की आधारशिला 1921 में ड्यूक ऑफ कनॉट ने रखी थी. उन्हीं के नाम पर कनॉट प्लेस का नाम रखा गया था. इसे वायसराय लार्ड इर्विन ने राष्ट्र को समर्पित किया था. इंडिया गेट रात को फ्लडलाइट से जगमगाने लगता है. उस समय का मंजर बेहद दिलकश होता है.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जो प्रतिमा सुभाष पार्क में लगी हुई है, उसे महाराष्ट्र के महान मूर्तिशिल्पी सदाशिवराव साठे ने बनाया था. महात्मा गांधी की राजधानी में पहली आदमकद प्रतिमा चांदनी चौक के टाउन हॉल के बाहर 1952 में लगी थी. उस नौ फीट ऊंची मूरत को भी सदाशिव राव साठे ने ही बनाया था.
पिछले साल ही मुंबई में सदाशिव राव साठे का निधन हो गया. वे 95 साल के थे. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भी उनके काम के अनन्य प्रशंसकों में थे. साठे ने सैकड़ों आदमकद और धड़ प्रतिमाएं बनायी थीं, जो देश-विदेश में कई स्थानों पर स्थापित हैं तथा प्रेरणा का स्रोत बनी हुई हैं.
साठे दिल्ली के अनेक स्थानों पर लगी महापुरुषों की मूर्तियों की रचना करते रहे. कनॉट प्लेस से मिन्टो रोड की तरफ जानेवाली सड़क पर छत्रपति शिवाजी महाराज की 1972 में आदमकद प्रतिमा की स्थापना कर दिल्ली ने भारत के वीर सपूत के प्रति अपने गहरे सम्मान के भाव को प्रदर्शित किया था. इस मूर्ति को भी साठे ने ही अपने सिद्ध हाथों से उकेरा था.
इस अश्वारोही प्रतिमा को किसने मुग्ध होकर न निहारा होगा! छत्रपति शिवाजी का घोड़ा एक पैर पर खड़ा है. हवा में प्रतिमा तभी रहेगी, जब संतुलन के लिए पूंछ को मजबूती से गाड़ दिया जाए, यह बात सदाशिव साठे जैसे कलाकार ही समझ सकते थे. राजधानी के सबसे व्यस्त चौराहे तिलक ब्रिज पर लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की लगी 12 फीट ऊंची प्रतिमा को भी उन्होंने ने ही तैयार किया था.
दिल्ली के सुभाष पार्क में लगी नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति के बाद उनकी एक बेहद शानदार प्रतिमा संसद भवन के गेट नंबर पांच और सेंट्रल हॉल के पास 23 जनवरी, 1997 को स्थापित की गयी थी. यह कांस्य प्रतिमा है. इस मूर्ति को दिग्गज मूर्तिशिल्पी कार्तिक चंद्र पाल ने बनाया था तथा इसका अनावरण किया था देश के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ शंकर दयाल शर्मा ने.
इस मूर्ति को पश्चिम बंगाल सरकार ने भेंट किया था. कार्तिक चंद्र पाल ने ही जनसंघ के नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मंदिर मार्ग की नयी दिल्ली काली बाड़ी में लगी मूरत को भी बनाया था. उनकी धर्मपत्नी रेखा पाल भी मूर्तिशिल्पी थीं. संसद भवन में नेताजी का एक प्रभावशाली चित्र 23 जनवरी, 1978 को लगाया गया था, जिसे नामवर चित्रकार चिंतामणि कार ने सृजित किया था. इस चित्र का अनावरण तत्कालीन राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी ने किया था. हमारे लिए यह गर्व का विषय है कि अब इस शृंखला में इंडिया गेट भी जुड़ गया है.