पर्यावरण संरक्षण प्रहरी तुलसी गौड़ा
तुलसी गौड़ा के प्रयासों से हमें सीख मिलती है कि हमें भी अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में धरातल पर काम करना चाहिए.
पद्म पुरस्कारों के जरिये हर वर्ष देश के विभिन्न कोनों से ऐसे कई लोग सामने आते हैं, जो प्रसिद्धि से कोसों दूर रहकर समर्पण और सादगी भरे जीवन के साथ समाज का भला कर रहे होते हैं. उनके मन में सरोकार का ऐसा जज्बा होता है, जो लोगों को परोपकार के लिए प्रेरित करता है. बात चाहे ‘लंगर बाबा’ के नाम से प्रसिद्ध जगदीश लाल आहूजा की हो, जो भूखे लोगों के निवाले का बंदोबस्त करते हैं या फिर लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करानेवाले मोहम्मद शरीफ चाचा की, जो धर्म व जाति की परवाह किये बिना लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कराते हैं.
इस फेहरिस्त में एक नाम है कर्नाटक की 73 वर्षीय पर्यावरणविद् और ‘जंगलों की एनसाइक्लोपीडिया’ के रूप में प्रसिद्ध तुलसी गौड़ा का. आज उनका नाम पर्यावरण संरक्षण के सच्चे प्रहरी के तौर लिया जाता है. तुलसी ने शायद ही कभी सोचा होगा कि पौधे लगाने और उन्हें बचाने का जुनून एक दिन उन्हें पद्मश्री का हकदार बना देगा. पर्यावरण दिवस पर पौधारोपण की केवल तस्वीर पोस्ट कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्त होनेवाली पीढ़ी क्या यह कभी समझ पायेगी कि प्रकृति के संरक्षण के लिए दिखावे से कहीं ज्यादा समर्पण की आवश्यकता होती है?
एक आम आदिवासी महिला तुलसी गौड़ा कर्नाटक के होनाल्ली गांव में रहती हैं. वे कभी स्कूल नहीं गयीं और न ही उन्हें किसी तरह का किताबी ज्ञान ही है, लेकिन प्रकृति से अगाध प्रेम तथा जुड़ाव की वजह से उन्हें पेड़-पौधों के बारे में अद्भुत ज्ञान है. इसी जुड़ाव के बल पर उन्होंने वन विभाग में नौकरी भी की. चौदह साल की नौकरी के दौरान उन्होंने हजारों पौधे लगाये, जो आज वृक्ष बन गये हैं. सेवानिवृत्ति के बाद भी वे पेड़-पौधों को जीवन देने में जुटी हुई हैं. अब तक वे एक लाख से भी अधिक पौधे लगा चुकी हैं.
ऐसे समय में जब दुनिया जलवायु परिवर्तन के खतरे का सामना कर रही है, तब दिखावे से कोसों दूर रहकर खामोशी के साथ एक महिला जंगल बसा रही है. तुलसी गौड़ा की खासियत है कि वे केवल पौधे लगाकर ही अपनी जिम्मेदारी से मुक्त नहीं हो जाती हैं, अपितु उनकी जरूरी देखभाल भी करती हैं. उन्हें पौधों की विभिन्न प्रजातियों और उसके आयुर्वेदिक लाभ के बारे में भी गहरी जानकारी है. वे लोगों से अपने ज्ञान और अनुभव को साझा भी करती हैं. तुलसी गौड़ा पर पौधारोपण का जुनून तब सवार हुआ, जब उन्होंने देखा कि विकास के नाम पर निर्दोष जंगलों की कटाई की जा रही है.
जीवन के जिस दौर में लोग अमूमन बिस्तर पकड़ लेते हैं, उस उम्र में भी तुलसी सक्रियता से पौधों को जीवन देने में जुटी हुई हैं. पर्यावरण को सहेजने के लिए उन्हें इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र अवॉर्ड, राज्योत्सव अवॉर्ड, कविता मेमोरियल समेत कई सम्मानों से नवाजा जा चुका है. वे एक ऐसी महिला हैं, जिनकी अपनी संतान नहीं है, लेकिन अपने द्वारा लगाये गये पौधों को ही अपना बच्चा मानती हैं. आदिवासी समुदाय से संबंध रखने के कारण पर्यावरण संरक्षण का भाव उन्हें विरासत में मिला है.
दरअसल धरती पर मौजूद जैव-विविधता को संजोने में आदिवासियों की प्रमुख भूमिका रही है. वे सदियों से प्रकृति की रक्षा करते हुए उसके साथ साहचर्य स्थापित कर जीवन जीते आये हैं. जन्म से ही प्रकृति प्रेमी आदिवासी लोभ-लालच से इतर प्राकृतिक उपादानों का उपभोग तो करते ही हैं, लेकिन उसकी रक्षा भी करते हैं. उनकी संस्कृति और पर्व-त्योहारों का पर्यावरण से घनिष्ठ संबंध रहा है. आदिवासी समाज में ‘जल, जंगल और जमीन’ को बचाने की संस्कृति आज भी विद्यमान है, लेकिन औद्योगिक विकास की गाड़ी ने एक तरफ आदिवासियों को विस्थापित कर दिया, तो दूसरी तरफ आर्थिक लाभ के चलते जंगलों का सफाया भी किया जा रहा है. उजड़ते जंगलों की व्यथा प्राकृतिक आपदाओं के रूप में प्रकट होती है. लिहाजा इसके संरक्षण के लिए तत्परता दिखानी होगी.
बहरहाल, पद्मश्री सम्मान मिलने के बाद तुलसी गौड़ा की जिंदगी में कोई खास परिवर्तन हो या ना हो, लेकिन अपने जज्बे से वे सबके जीवन में परिवर्तन लाने का सिलसिला बरकरार रखनेवाली हैं. तुलसी गौड़ा के प्रयासों से हमें सीख मिलती है कि हमें भी अपने स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में धरातल पर काम करना चाहिए. एक तुलसी गौड़ा या एक सुंदरलाल बहगुणा पर्यावरण को संरक्षित नहीं कर सकते. बीती सदी के सातवें दशक में उत्तराखंड के जंगलों को बचाने के लिए महिलाओं ने पेड़ों को गले से लगाकर उसकी रक्षा की थी. आज वैसे चिपको आंदोलन और सुंदरलाल बहगुणा तथा तुलसी गौड़ा जैसे पर्यावरणविदों की जरूरत पूरे देश में है.
अगर पर्यावरण का संरक्षण करना है और दुनिया को जलवायु परिवर्तन के खतरे से बाहर निकालना है, तो इसके लिए साझा प्रयास करने होंगे. पौधारोपण सुखद भविष्य के लिए किया जानेवाला एक जरूरी कर्तव्य है. यह जरूरी नहीं है कि इसके लिए दिखावा ही किया जाये. सामान्य तौर पर भी पौधारोपण व पर्यावरण संरक्षण को दैनिक जीवन का अंग बनाया जा सकता है. याद रहे, प्राकृतिक संतुलन के लिए जंगलों का बचे रहना बेहद जरूरी है. पृथ्वी पर जीवन को खुशहाल बनाये रखने का एकमात्र उपाय पौधारोपण पर जोर देने तथा जंगलों के संरक्षण से जुड़ा है. अतः इसके लिए सभी को प्रयास करना होगा. यही तुलसी गौड़ा के जीवन का संदेश है.