सोमवार को हुई रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी शिखर बैठक का ऐतिहासिक महत्व है. भारत और रूस के बीच जो वर्तमान रणनीतिक भागीदारी उभर कर आयी है, उसकी शुरुआत 2000 में हुई थी, जब अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे. इसके तहत दोनों देशों के नेताओं के बीच एक वार्षिक बैठक का प्रावधान है.
इस कड़ी में इस साल 21वीं बैठक हुई है. पिछले साल कोरोना महामारी की वजह से राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी आमने-सामने नहीं मिल सके थे. इस समझौते से पहले 1971 में भी दोनों देशों ने एक अहम करार किया था, जब सोवियत संघ अस्तित्व में था. इस संदर्भ में हालिया बैठक एक समझौते के 50 साल पूरे होने और दूसरे समझौते के दो दशक पूरा होने का अवसर भी है. इन्हीं दो समझौते पर भारत-रूस संबंध आधारित है.
यह भी उल्लेखनीय है कि 2000 में भी राष्ट्रपति पुतिन थे और आज 2021 में भी वही राष्ट्राध्यक्ष हैं. वर्ष 2000 में उन्होंने ही जोर दिया था कि भारत और रूस के बीच ठोस रणनीतिक सहकार के लिए समझौता होना चाहिए. महत्वपूर्ण देशों में इस सदी में इतने लंबे समय तक कोई भी नेता सत्ता प्रमुख नहीं रहा है. दोनों देशों के बीच जो मौजूदा समझौता है, उसे ‘विशेष एवं विशिष्ट भागीदारी’ कहा जाता है.
राष्ट्रपति पुतिन के भारत आने का एक महत्व यह भी है कि यह यात्रा बदलती वैश्विक परिस्थितियों में हुई है. कोराना महामारी का असर विभिन्न क्षेत्रों में देखा जा रहा है. अमेरिका से भारत की निकटता बहुत बढ़ गयी है. चीन के साथ हमारे मतभेद बढ़े हैं. अमेरिका और चीन के साथ भारत के समीकरण के संदर्भ में रूसी राष्ट्रपति के दौरे को किसी एक आयाम से नहीं देखा जा सकता है. रूस और चीन के आपसी संबंध बहुत अच्छे हैं, लेकिन अमेरिका के साथ रूस के संबंध डगमगाते हुए दिख रहे हैं.
ऐसे में परस्पर संबंधों को पुन: समायोजित किया जा रहा है. महामारी के दौर में राष्ट्रपति पुतिन ने सिर्फ एक यात्रा की है, जब वे अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ बैठक करने के लिए जेनेवा गये थे. वे प्रधानमंत्री मोदी के साथ पिछले साल की तरह वर्चुअल माध्यम से बातचीत कर सकते थे, लेकिन उन्होंने यात्रा करने का निर्णय लिया. उल्लेखनीय है कि उन्होंने चीन यात्रा के पूर्वनिर्धारित कार्यक्रम में बदलाव कर भारत आने को प्राथमिकता दी. इससे यह स्पष्ट इंगित होता है कि वे व्यक्तिगत रूप से भी भारत-रूस संबंधों को बहुत महत्व देते हैं.
इस शिखर बैठक के बाद जो समझौते हुए हैं, वे बताते हैं कि दोनों देशों के संबंध गहन होते जा रहे हैं. ऐतिहासिक रूप से हमारे समझौते रक्षा सहयोग पर केंद्रित रहे हैं. एक समय था, जब भारत के रक्षा आयात का 80 फीसदी हिस्सा पूर्व सोवियत संघ या रूस से आता था. कुछ अन्य देशों से आयात करने के कारण अब इसमें कमी आयी है, फिर भी यह 60 से 65 फीसदी के स्तर पर है.
रक्षा से संबंधित परंपरागत सहयोग का उल्लेख इस बार भी हुआ और इसका विस्तार भी हुआ है, लेकिन उभरते हुए नये क्षेत्रों में सहकार बढ़ाने पर भी इस बार जोर दिया गया है. इसमें ऊर्जा, आर्थिक व्यापार, विज्ञान एवं तकनीक संपर्क बढ़ाने और शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक सहयोग की संभावनाओं को साकार करने पर उल्लेखनीय ध्यान दिया गया है. दोनों देश रणनीतिक और कूटनीतिक सहकार को प्रगाढ़ करने की आवश्यकता को कितना महत्व देते हैं, यह इस तथ्य से रेखांकित होता है कि भारत और रूस के बीच पहली बार रक्षा व विदेश मंत्रियों की साझा मुलाकात (2+2) की व्यवस्था बनायी गयी है.
ऐसी व्यवस्था भारत पहले अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ बना चुका है. भारत की ओर से इस संबंध में संदेश यह है कि हम रूस को वही मान दे रहे हैं, जो हमने अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान को दिया है. इस व्यवस्था के तहत भारत और रूस के विदेश व रक्षामंत्री एक साथ बैठक किया करेंगे, जिसमें सभी संबद्ध मसलों पर व्यापक चर्चा होगा और ठोस निर्णय होंगे. यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि आज के विश्व में रक्षा और कूटनीति में अंतर नहीं रहा है.
राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी की शाम की बैठक से पहले सुबह में दोनों देशों के विदेश व रक्षा मंत्रियों की साझा बातचीत हुई. उसमें सैन्य खरीद पर तो चर्चा हुई, पर एक नयी व्यवस्था यह हुई है कि दोनों देश असॉल्ट राइफलों का निर्माण साझेदारी में करेंगे और उनका निर्माण भारत में होगा. शिखर बैठक में प्रधानमंत्री मोदी ने अहम बात कही कि अब दोनों देश सह-उत्पादन एवं सह-विकास की ओर उन्मुख हो रहे हैं.
यह पहलू अब रक्षा के क्षेत्र में भी आ रहा है. इसके अलावा दोनों देशों की सेनाओं के बीच सहयोग का दायरा भी बढ़ाया जा रहा है. पहले भी ऐसा होता था, पर वह मुख्य रूप से हथियार लेने, उससे संबंधित प्रशिक्षण देने जैसे स्तरों तक सीमित था. अब दोनों देशों के सैनिक साझा सैन्य अभ्यासों में हिस्सा ले सकेंगे तथा एक-दूसरे को साजो-सामान मुहैया करा सकेंगे. यह सहकार थोड़े समय के लिए नहीं है, बल्कि इसकी अवधि 2030 तक है. इसका अर्थ यह है कि भारत और रूस आपसी संबंधों को दीर्घकालिक दृष्टि से देख रहे हैं, जो बढ़ते भरोसे की ओर संकेत करता है.
दोनों नेताओं तथा मंत्रियों की बैठकों से तय हुए समझौतों में कुछ अन्य अहम बिंदु भी हैं. ऊर्जा के क्षेत्र में दोनों देशों का सहयोग तो 2007-08 से चल रहा है, लेकिन उसे विस्तृत करने के बारे में इस बार ठोस निर्णय लिये गये हैं. रूस के आर्कटिक क्षेत्र से तेल एवं प्राकृतिक गैस निकालने में भारत के सहयोग पर रूस को अपेक्षा है. इस मामले में 15 अरब डॉलर का निवेश अब तक हो चुका है. यह सहकार हमारे आर्थिक संबंधों का महत्वपूर्ण आधार हो सकता है.
ऐसी उम्मीद की जा रही है कि 2025 तक द्विपक्षीय व्यापार कम-से-कम 30 अरब डॉलर हो सकता है. मुंबई से सेंट पीटर्सबर्ग के बीच व्यापारिक गलियारा बनाने का काम जारी है. इससे व्यापारिक वृद्धि में बहुत मदद मिलेगी. इसके अलावा, हमारे देश के पूर्वी समुद्री बंदरगाहों को रूस के सुदूर पूर्व में स्थित व्लादिवोस्तक से जोड़ने का कार्यक्रम निर्धारित हुआ है. इस प्रस्तावित सामुद्रिक गलियारे पर राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी की पिछली शिखर बैठक में चर्चा हुई थी और इस बार कुछ प्रगति हुई है. कुल मिलाकर, कहा जा सकता है कि इस दौरे ने भविष्य के लिए ठोस आधार दिया है.