मन्नू भंडारी: एक आधुनिक साहित्यिक व्यक्तित्व
उनकी कहानियां कभी भी पुरानी नहीं पड़ सकतीं क्योंकि मनुष्य के जो मनोभाव और भावात्मक जुड़ाव हैं, उन्हें मन्नू भंडारी बहुत गहरे से पकड़ती थीं.
मन्नू भंडारी का व्यक्तित्व बेहद निश्छल और स्नेहमय था. उनके भीतर गांभीर्य के साथ एक विशिष्ट शीतलता थी. उनसे मिलनेवाले हर किसी को यह तुरंत महसूस होता था. अभी कुछ समय पहले उनकी बड़ी अच्छी सहेली सुधा अरोड़ा के साथ हम एक कथा शिविर में थे, जहां उन्होंने मन्नू जी के बारे में बहुत सारी बातें बतायीं. उनकी रचना प्रक्रिया में कोई हड़बड़ी नहीं थी.
यह बात इसलिए उल्लेखनीय है क्योंकि उन्होंने इतना कुछ लिखा है. जीवन जीने का उनका सलीका भी बड़ा आधुनिक था, जिसमें ठहराव था. उनके लेखन और उनके जीवन में हमें अधिक अंतर नहीं दिखायी पड़ता है. वे अपने दौर की सबसे आधुनिक कथाकार थीं, लेकिन उस समय नयी कहानी की त्रयी की बड़ी धूम थी और उन्हें वह श्रेय तब नहीं मिल सका, जिसकी वे सही मायनों में हकदार थीं. यह स्थापित सत्य है कि स्त्री रचनाकारों को वह मुकाम नहीं दिया गया, जो उन्हें मिलना चाहिए था.
मैंने स्कूल के दिनों में उनकी ‘त्रिशंकु’ कहानी पढ़ी थी, जो मुझे बहुत अपनी-सी लगी थी और आज भी उसे मैं अपनी सबसे पसंदीदा कहानियों में गिनती हूं. बचपन में मैंने ‘आपका बंटी’ पढ़ी, जो धारावाहिक के रूप में एक साप्ताहिक पत्रिका में प्रकाशित होता था. बाद में जब उसे दुबारा पढ़ा, तो समझ में आया कि मन्नू जी बाल मन, किशोर मन को कितना सटीक और प्रभावी ढंग से पकड़ती थीं.
हमें यह भी याद करना चाहिए कि उन्होंने बच्चों के लिए भी साहित्य रचा. वे शिक्षिका थीं और उन्होंने पचास के दशक के आखिरी वर्षों से अपना लेखन शुरू किया था. आधुनिक चेतना के साथ बदलते समय और समाज को जैसे उन्होंने अपनी रचनाओं में ढाला, वह अप्रतिम है. बाद में ‘महाभोज’ जैसा उत्कृष्ट राजनीतिक उपन्यास सामने आया. तब सक्रिय पुरुष कथाकारों के साथ उनकी इस कृति की चर्चा तो हुई, लेकिन वह पर्याप्त नहीं कहा जा सकता है.
उनके पति और प्रतिष्ठित कथाकार राजेंद्र यादव ‘हंस’ पत्रिका के संपादक हो गये थे और उन्होंने उसके माध्यम से साहित्य को बहुत कुछ दिया, लेकिन मन्नू जी अचानक चुप हो गयीं. आज तो स्थिति बदल गयी है, लेकिन उस पीढ़ी में भुला दिये जाने का संकट था. मन्नू जी के संदर्भ में यह स्पष्ट दिखता है कि उन्हें पृष्ठभूमि में रखकर शेष पुरुष कथाकारों का वर्चस्व बढ़ा.
मन्नू जी की कहानी पर बनी चर्चित फिल्म ‘रजनीगंधा’ का उल्लेख करना आवश्यक है, जिसे बासु चटर्जी ने निर्देशित किया था. उस कहानी और फिल्म में आकर्षण के विभिन्न आयामों को जिस तरह से रेखांकित किया गया है, वह अद्भुत है. मन्नू जी को देखकर ऐसी बारीक पकड़ की अपेक्षा नहीं की जा सकती थी. उनका गांभीर्य अक्सर उनकी रचनाओं में संरचनात्मक ढंग से परिलक्षित होता था, जो चौंका देता था.
इस फिल्म में पहले प्रेमी, पूर्व प्रेमी और नये प्रेमी को लेकर स्त्री मन का द्वंद्व बहुत प्रभाव के साथ अभिव्यक्त हुआ है. उनकी कहानियां कभी भी पुरानी नहीं पड़ सकतीं क्योंकि मनुष्य के जो मनोभाव और भावात्मक जुड़ाव हैं, उन्हें मन्नू भंडारी बहुत गहरे से पकड़ती थीं. यही चीज उनके विस्तृत ज्ञान, पढ़ाई-लिखाई और बातचीत में झलकती थी. उनके सुसंस्कृत विचार और उनका सुसंस्कृत व्यक्तित्व बाद के उनके राजनीतिक उपन्यासों में और विस्तार पाते हैं.
मन्नू जी ने बहुत लिखा. उनकी रचनाओं के विभिन्न भाषाओं में अनुवाद, उन पर धारावाहिकों, टेलीफिल्मों और फीचर फिल्मों का निर्माण तथा उनके बारे में निरंतर चलती चर्चा से यह सिद्ध होता है कि वे आधुनिक हिंदी साहित्य की बहुत बड़ी रचनाकार थीं. वे एक अच्छी शिक्षिका के रूप में भी याद रहेंगी. हमारे समय के रचनाकारों, विशेष रूप से स्त्री रचनाकारों, के लिए वे आदर्श रही हैं और आदर्श बनी रहेंगी. नयी पीढ़ी को उनके लेखन से बहुत कुछ सीखने और समझने को मिल सकता है.