आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की बढ़ती दस्तक
Artificial Intelligence : प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन भाषण में एआइ के लोकतंत्रीकरण पर जोर दिया और कहा कि एआइ को केवल कुछ विशेष देशों, संस्थाओं या कंपनियों के उपयोग के लिए सीमित करने के बजाय सबके लिए, विशेष रूप से विकासशील और गरीब देशों के लिए उपलब्ध कराना चाहिए.
Artificial Intelligence : विगत 10 और 11 फरवरी को फ्रांस की राजधानी पेरिस में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस(एआइ) शिखर सम्मेलन, 2025 का आयोजन किया गया, जिसमें भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने सह-अध्यक्षता की. इस सम्मेलन में दुनिया के प्रमुख नेताओं, नीति-निर्माताओं, वैज्ञानिकों, टेक उद्योग के दिग्गजों और शोधकर्ताओं ने हिस्सा लिया. सम्मेलन का मुख्य संदर्भ था ‘सतत भविष्य के लिए जिम्मेदार एआइ.’ इसका मुख्य उद्देश्य था एआइ नीति, नैतिकता, नवाचार और नियमन पर एक वैश्विक सहमति बनाने के साथ ही एआइ की पहुंच को समझना. साथ ही यह भी सुनिश्चित करना कि एआइ तकनीक में नवाचार और नैतिकता का समावेश कर इसका मानवता की सेवा में बेहतर इस्तेमाल कैसे किया जाए.
प्रधानमंत्री मोदी ने उद्घाटन भाषण में एआइ के लोकतंत्रीकरण पर जोर दिया और कहा कि एआइ को केवल कुछ विशेष देशों, संस्थाओं या कंपनियों के उपयोग के लिए सीमित करने के बजाय सबके लिए, विशेष रूप से विकासशील और गरीब देशों के लिए उपलब्ध कराना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि दुनिया एआइ युग की दहलीज पर खड़ी है. यह केवल एक तकनीकी बदलाव नहीं है, एक सभ्यता का पुनर्विकास और पुनर्निर्माण है. प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में ‘एआइ फॉर ऑल’ का नारा देते हुए यह भी स्पष्ट किया कि एआइ के उपयोग को सुगम बनाना आवश्यक है, ताकि यह पूरे मानव समाज के लिए उपयोगी हो. उनका ठीक ही यह कहना था कि एआइ का गवर्नेंस केवल जोखिमों को कम करने तक ही सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह नवाचार को बढ़ावा देने वाला भी होना चाहिए. इसलिए विश्व के जिम्मेदार लोगों को ऐसी नीतियां बनानी होंगी, जो एआइ को नियंत्रित करने के बजाय इसे सही दिशा में आगे बढ़ाएं.
इस सम्मेलन में कई वैश्विक नेताओं ने अपने विचार रखे, जिनमें अमेरिका, यूरोपीय संघ, फ्रांस और गूगल के सीइओ सहित प्रमुख टेक कंपनियों के प्रमुख शामिल थे. विदित हो कि फ्रांस में आयोजित इस एआइ सम्मेलन का एक महत्वपूर्ण पहलू एआइ की वैश्विक गवर्नेंस को स्थापित करना था. इसके लिए जरूरी है कि एआइ को नैतिक रूप से संचालित करने के तरीके तलाशे जाएं और इसके लिए प्रयास किये जाएं. एआइ के संभावित जोखिमों को कम करने के लिए सामूहिक ढांचा तैयार किया जाए. एआइ एल्गोरिदम को पारदर्शी और जवाबदेह बनाने के लिए सख्त साइबर सुरक्षा मानदंड लागू किये जाने की भी जरूरत है.
यहां यह बात भी स्पष्ट हो जानी चाहिए कि एआइ का उपयोग केवल लाभ कमाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसे समाज और मानवता की भलाई के लिए विकसित करने पर भी जोर दिया जाना चाहिए. एआइ को नियंत्रित करना और उसे सुरक्षित तरीके से विकसित करना भी जरूरी है और इसके लिए विभिन्न देशों को आपसी सहयोग बढ़ाना होगा और एक प्रभावी तंत्र बनाना होगा. ऐसा करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि एआइ के दुरुपयोग का खतरा बड़ा है और यह किसी से छिपा भी नहीं है. अभी एआइ का उपयोग अपने आरंभिक दौर में ही है, परंतु उसके मनमाने तरीके से इस्तेमाल और दुरुपयोग की अनेक घटनाएं सामने आ चुकी हैं, ऐसे में इसके उपयोग के लिए वैश्विक ढांचा बनाना अत्यंत आवश्यक है.
अब बात रोजगार पर एआइ के प्रभाव की, जिसे लेकर दुनियाभर में चिंता व्याप्त है.
यह सच है कि एआइ के बढ़ते उपयोग से कई पारंपरिक नौकरियों पर असर पड़ेगा, परंतु इसके साथ ही अनेक नयी नौकरियों का सृजन भी होगा. ऑटोमेशन से बेशक कुछ उद्योगों पर प्रभाव पड़ना तय है. जैसे, विनिर्माण (मैन्युफैक्चरिंग), बैंकिंग, कस्टमर सर्विस जैसी नौकरियों में एआइ के कारण स्वचालन बढ़ने से जहां कुछ नौकरियां समाप्त हो सकती हैं. वहीं एआइ डेवलपर्स, डेटा साइंटिस्ट, एथिकल एआइ एक्सपर्ट, साइबर सिक्योरिटी प्रोफेशनल्स जैसी नयी भूमिकाओं के उभरने से इन क्षेत्रों में नौकरियां बढ़ेंगी. यहां सरकारों और कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि श्रमिकों को नयी तकनीकों के अनुरूप प्रशिक्षित किया जाए.
पेरिस सम्मेलन के बाद कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाये जाने की भी जरूरत है. जैसे, यूनेस्को, यूएन और अन्य वैश्विक संस्थाएं एआइ को विनियमित करने के लिए नीतिगत दिशानिर्देश तैयार करें. इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि एआइ केवल कुछ विकसित देशों तक सीमित न रहे, बल्कि कम विकसित देशों को भी इस तकनीक का लाभ मिले. यह भी तय है कि एआइ का भविष्य केवल नीतियों और नियमों तक सीमित नहीं रहने वाला. इसके नवाचार और अनुसंधान में भी बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं. जैसे, एआइ आधारित चिकित्सा क्षेत्र में एआइ की मदद से बीमारियों की जल्दी पहचान, रोबोटिक सर्जरी और व्यक्तिगत उपचार जैसी नयी तकनीकों का विकास हो सकता है. एआइ आधारित ट्यूटरिंग, स्मार्ट क्लासरूम और व्यक्तिगत शिक्षा समाधान भविष्य में शिक्षा क्षेत्र को बदल सकते हैं. एआइ का उपयोग स्मार्ट ऊर्जा प्रबंधन और कार्बन फुटप्रिंट को कम करने के जरिये जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए भी किया जा सकता है.
इस सम्मेलन ने न केवल एआइ के तकनीकी पहलुओं को उजागर किया, बल्कि भारत को वैश्विक एआइ नेतृत्व में मजबूत स्थिति में ला खड़ा किया है. अगला एआइ सम्मेलन भारत में आयोजित होगा, जिससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भारत इस तकनीकी क्रांति का केंद्र बनने के लिए तैयार है. प्रधानमंत्री मोदी ने सम्मेलन में भारत की डिजिटल क्रांति और एआइ नेतृत्व की ओर बढ़ते कदमों के बारे में बताते हुए कहा कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित कर चुका है, जिससे 1.4 अरब लोगों को डिजिटल सेवाएं प्रदान की जा रही हैं. सम्मेलन में शामिल लगभग 60 देशों ने एक समावेशी और टिकाऊ एआइ विकास के लिए घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किये, परंतु अमेरिका और ब्रिटेन ने इससे दूरी बना ली. यह निर्णय एआइ के वैश्विक नियमन में एकता की कमी दर्शाता है, जो भविष्य में विनियमन एवं सुरक्षा नीतियों में मतभेद पैदा कर सकता है. अमेरिका और ब्रिटेन ने राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक शासन के पर्याप्त प्रावधानों की कमी का हवाला दिया, जिससे संकेत मिलता है कि वे अपनी स्वतंत्र एआइ नीति और गवर्नेंस ढांचे की ओर बढ़ सकते हैं और जो भविष्य की चुनौतियों के बारे में बताता है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)