Artificial Intelligence: भारत टेक्नोलॉजी स्टार्ट अप की पांचवीं पीढ़ी को विकसित करने के लिए भारी खर्च कर चुका है और अब यहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआइ), मशीन लर्निंग, इंटरनेट ऑफ थिंग्स, ब्लॉक चेन, रोबोटिक्स, डिजिटल मैन्युफैक्चरिंग, बिग डाटा इंटेलिजेंस, रियल टाइम डाटा, क्वांटम कम्युनिकेशन आदि क्षेत्रों में शोध, प्रशिक्षण और कौशल विकास को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं. ऐसे प्रयासों से 2024 में भारत एआई अनुसंधान में दुनिया में तीसरे स्थान पर काबिज है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया सिंगापुर यात्रा के दौरान अन्य मुद्दों के साथ-साथ एआइ के क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर भी सहमति बनी है.
पचास के दशक में एआई के आगाज में कई अनुसंधानकर्ताओं का योगदान रहा है, लेकिन मुख्य भूमिका एलन ट्यूरिंग और जॉन मैकार्थी ने निभायी. इस संकल्पना के तहत कृत्रिम बुद्धि को कंप्यूटर सिस्टम या रोबोटिक सिस्टम के रूप में विकसित किया गया है, जो उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर इंसान की तरह सोचने, समझने और समस्याओं का समाधान करने और निर्णय लेने में समर्थ है. पर मशीन भविष्य के बारे में निर्णय नहीं ले सकता है और कल्पना भी नहीं कर सकता है या प्रोग्रामिंग से अलग हटकर कोई परिणाम नहीं दे सकता है.
इस आविष्कार को सत्तर के दशक में पहचान मिली और अस्सी के दशक में फिफ्थ जनरेशन और सुपर-कंप्यूटर की दिशा में काम किया गया. आज कई देश इसमें प्रवीणता हासिल करने और मानव संसाधन को इस विधा में कुशल बनाने का प्रयास कर रहे हैं. ब्रिटेन में ‘एल्वी’ और यूरोपीय संघ में ‘एस्प्रिट’ नाम से इस दिशा में काम किया गया है. एशियाई देशों में चीन, सिंगापुर, जापान और भारत एआइ में प्रवीण व कुशल बनने के लिए प्रयास कर रहे हैं. सिंगापुर जैसे छोटे से देश में नेशनल आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस स्ट्रेटजी के तहत 2024 में एआइ पर 500 मिलियन सिंगापुर डॉलर निवेश किया गया है. आज एआइ के तहत चैटजीपीटी का इस्तेमाल सबसे अधिक किया जा रहा है, लेकिन अब सोरा ओपनएआइ द्वारा वीडियो जेनरेटिव आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मॉडल विकसित किया गया है, जो टेक्स्ट-टू-वीडियो जेनरेशन में माहिर है. यह यूजर के निर्देशानुसार लघु वीडियो क्लिप बना सकता है और उसका विस्तार भी कर सकता है. जिस दिन इसका बाजार में पदार्पण होगा, कई क्षेत्रों में आमूलचूल परिवर्तन आ जायेगा, जिनमें सबसे ज्यादा प्रभावित होगा फिल्म उद्योग. सोरा ओपनएआइ के कारण आने वाले दिनों में नकली और असली वीडियो में फर्क करना मुश्किल हो जायेगा. ऐसे में अपराध के ढंग भी बदल जायेंगे.
विश्व आर्थिक मंच के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 18 से 65 आयु वर्ग के 59 प्रतिशत पुरुष कर्मचारी सप्ताह में कम से कम एक बार एआइ टूल का इस्तेमाल करते हैं, जबकि महिलाओं में यह भागीदारी 51 प्रतिशत है. वहीं, 18 से 25 साल के 71 प्रतिशत पुरुष एआइ का इस्तेमाल करते हैं, जबकि इसी आयु वर्ग में लड़कियों का प्रतिशत 59 है. आज हर जगह एआइ आ चुका है. सेल्फ-ड्राइविंग कारें, रोबोटिक वैक्यूम क्लीनर, एलेक्सा जैसे स्मार्ट असिस्टेंट आदि इसके लोकप्रिय उदाहरण हैं. एआइ का सबसे अधिक प्रभाव प्रोग्रामिंग, डेटा एनालिसिस, वेब डेवलपमेंट, कंटेंट राइटिंग, संपादन, अनुवाद, ग्राफिक डिजाइन, अकाउंटिंग, बैंकिंग, पोस्टल डिपार्टमेंट, डाटा इंट्री आदि के कार्यों में देखने को मिल रहा है. एआइ धीरे-धीरे कॉल सेंटर की कार्यप्रणाली को भी बदल रहा है. एक अनुमान के अनुसार कंटेंट राइटिंग और संपादन के क्षेत्र में 81.6 प्रतिशत नौकरियां एआइ से प्रभावित होंगी. साल 2027 तक 75 लाख से अधिक डाटा इंट्री की नौकरियां समाप्त हो सकती हैं. वहीं, विकसित देशों में भी 60 प्रतिशत नौकरियों पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. इससे 55 प्रतिशत श्रमिकों की नौकरियां भी खत्म हो सकती हैं.
निश्चित रूप से भारत में भी बैंकिंग, कॉल सेंटर, संपादन, कंटेंट राइटिंग, खुदरा क्षेत्र और आंशिक रूप से स्वास्थ एवं शिक्षा क्षेत्रों पर इसका प्रभाव पड़ेगा. बैंकों में रूटीन व गैर-वितीय कार्यों का निष्पादन एआइ के जरिये किया जाने लगा है, जिससे अवार्ड स्टाफ की वैकेंसी में कमी आयी है. पत्रकारिता में इसका प्रभाव देखने को मिल रहा है. संपादन और कटेंट राइटिंग चैटजीपीटी की मदद से की जा रही है. पर कुशल शिल्पकार, कलाकार, लेखक, संगीतकार, अध्यापक या डॉक्टर को एआइ पराजित नहीं कर पायेगा क्योंकि वह कल्पना नहीं कर सकता है. खुद से नयी रचना या डिजाइन विकसित नहीं कर सकता है. फिर भी, यह उपलब्ध उत्पादों या कंटेंट की बड़े ही नफासत और तेजी से नकल कर सकता है, जिससे रोजगार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है. एआइ मूल रूप से उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर काम करता है. इसलिए मौजूदा समय में इसका सही तरीके से इस्तेमाल करना मुमकिन नहीं है क्योंकि बाजार में क्लीन डाटा उपलब्ध नहीं है. गलत डाटा के विश्लेषण से हमें गलत ही परिणाम मिलेंगे. एआइ के इस्तेमाल के लिए नीतिगत प्राथमिकताएं तय करनी होंगी और संबंधित कौशल विकास के प्रयास करने होंगे. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)