प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आसियान शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने के लिए इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता पहुंचे हैं. आसियान दक्षिण पूर्व एशियाई देशों का एक महत्वपूर्ण संगठन है. क्षेत्रीय एकता के पैमाने से देखा जाए, तो यूरोप के बाद दुनिया के किसी एक क्षेत्र ने यदि एक साथ मिल कर तरक्की की है, तो वह दक्षिण पूर्व एशिया है. इसमें आसियान का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है. आसियान का गठन 1967 में हुआ था.
उस समय इस क्षेत्र में बाहर के देशों का काफी दखल था और वियतनाम युद्ध जैसी घटनाएं हुई थीं. दक्षिण एशिया की तरह दक्षिण पूर्व एशिया भी ऐसा क्षेत्र था जहां कई देश दूसरे शक्तिशाली देशों के उपनिवेश रह चुके थे. उस लिहाज से भी यहां के देशों में विकास करने की एक इच्छा थी और उस दिशा में आसियान एक सार्थक प्रयास साबित हुआ, क्योंकि आज यह एक एक शक्तिशाली संगठन समझा जाता है. इसने काफी आर्थिक विकास किया है और आज यह विश्व राजनीति में एक महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संगठन बन चुका है.
आज जी-20, ब्रिक्स आदि कई संगठनों के बीच आसियान की एक अलग पहचान है. इसकी आर्थिक गतिविधियां काफी बढ़ी हैं. ऐसा अनुमान जताया जाता है कि वर्ष 2030 तक आसियान दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जायेगा. आसियान देशों का सकल घरेलू उत्पाद सम्मिलित तौर पर वर्ष 2022 में लगभग 10.2 ट्रिलियन डॉलर बताया जाता है. आसियान में छोटे-छोटे देश हैं, लेकिन कुल मिला कर यह 10 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था है. विश्व के कुल जीडीपी का लगभग छह प्रतिशत हिस्सा आसियान देशों का है.
पिछले समय में कई बार आर्थिक संकट आये, लेकिन आसियान ने उस दौरान भी अच्छा विकास किया. आसियान का विस्तार भी हुआ है और उस क्षेत्र के कई देश इसमें शामिल होते रहे हैं, जैसे ब्रुनेई 1984 में, वियतनाम 1995 में और कंबोडिया 1999 में इसमें शामिल हुआ. आसियान का यह विस्तार बताता है कि संगठन अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल रहा है, जिससे उस क्षेत्र के अन्य देश इसमें शामिल हुए हैं.
भारत के लिए आसियान आर्थिक और सामरिक दोनों दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है. भारत की ऐक्ट ईस्ट पॉलिसी, जो पहले लुक ईस्ट पॉलिसी थी, के तहत पूर्वोत्तर भारत को दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ने का प्रयास किया जा रहा है. भारत की तरह आसियान देश भी काफी तेजी से विकास कर रही अर्थव्यवस्थाएं हैं. ऐसे में इस तरह के क्षेत्रों के साथ जुड़ने से हमारा आर्थिक विकास भी तेज होगा. आसियान देश भारत के चौथे सबसे बड़े व्यापारिक सहयोगी हैं.
इनके अतिरिक्त, आसियान देशों के सांस्कृति तौर पर भी हमारे गहरे संबंध रहे हैं. शीत युद्ध के दौर में इसमें दरार आ गयी थी, क्योंकि आसियान देशों का झुकाव अमेरिका की तरफ था और भारत ने तटस्थता की नीति अपनायी थी, मगर रामायण की परंपरा या बौद्ध संस्कृति के लिहाज से इंडोनेशिया, मलेशिया और थाईलैंड जैसे देशों से भारत की एक सांस्कृतिक निकटता साफ प्रकट होती रही है. ये संबंध यदि फिर से मजबूत होते हैं, तो उससे भारत को बहुत लाभ होगा.
आसियान के साथ भारत के संबंध का सामरिक दृष्टिकोण भी बहुत महत्वपूर्ण है. चीन इस इलाके में अपना प्रभाव बढ़ा रहा है. चीन यहां पहले से भी प्रभाव रखता था, लेकिन साउथ चाइना सी के विवाद के बाद से इसकी गंभीरता बढ़ी है. इंडोनेशिया, मलेशिया और वियतनाम जैसे देशों ने चीने के रवैये को लेकर आपत्तियां प्रकट की हैं. मौजूदा विश्व में भारत और चीन के बीच प्रतियोगिता बढ़ने वाली है. उस दृष्टिकोण से भी आसियान देश भारत के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं. इस शिखर सम्मेलन में भी आसियान और भारत की करीबी की एक झलक मिलती है.
भारत में इसी सप्ताह जी-20 शिखर सम्मेलन होना है और इस वजह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आसियान शिखर सम्मेलन में जाने को लेकर थोड़ी हिचकिचाहट दिखा रहे थे, लेकिन आसियान ने भारतीय प्रधानमंत्री की सुविधा को ध्यान में रखते हुए इस शिखर सम्मेलन के लिए अपने प्रारूप में कुछ बदलाव तक किये. भारतीय प्रधानमंत्री के इस संक्षिप्त दौरे के लिए व्यवस्था कर आसियान ने कहीं-न-कहीं चीन को भी यह संदेश दिया है, उसका झुकाव भारत के प्रति है. चीन इससे थोड़ा परेशान होगा. ऐसे में भारत को आसियान क्षेत्र में अपनी उपस्थिति को और मजबूत करना चाहिए. भारत ने वियतनाम के साथ रक्षा संबंध कायम किये हैं और सैन्य सामग्रियां भी दी हैं. भारत-आसियान की करीबी सामरिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हो जाती है.
क्वाड देशों की पिछली शिखर बैठक में एशिया प्रशांत आर्थिक कार्ययोजना बनाने पर भी चर्चा हुई थी. वह एक बड़ी पहल है और यदि उस पर जारी चर्चा कामयाब रहती है और इसका स्वरूप तय हो जाता है, तो उससे भारत को लाभ होगा. पीएम मोदी ने इस वजह से भी आसियान शिखर सम्मेलन में शामिल होने का फैसला किया है. साथ ही, चीन ने हाल में जो नक्शा जारी किया है, उसे लेकर भी आसियान शिखर सम्मेलन का महत्व बढ़ गया है, क्योंकि भारत की ही तरह आसियान के भी कई सदस्य देशों ने इसे लेकर विरोध जताया है. (बातचीत पर आधारित).
(ये लेखक के निजी विचार हैं)