राजस्थान में गहलोत और पायलट की तनातनी ने पहुंचाया नुकसान
राजस्थान सामाजिक और राजनीतिक तौर पर सामंती जकड़नों में फंसा हुआ प्रदेश है, इसलिए यहां पर नयी राजनीति के लिए जगह बनाना हमेशा मुश्किल होता है और पारंपरिक रूप से यहां पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही शासन करती आयी हैं
राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी को स्पष्ट बहुमत मिलना राज्य की जनता की उस मूलभूत प्रवृत्ति को दिखाता है, जिसमें उसकी समस्याएं अनवरत बनी रहती हैं और वह अपने कष्ट के लिए वर्तमान सरकार को जिम्मेदार मानती है तथा उनसे मुक्ति के लिए और अपने सपनों को पूरा करने के लिए लगभग हर बार विकल्प बदलती है. निवर्तमान अशोक गहलोत सरकार ने यूं तो कई महत्वपूर्ण काम किये, मसलन पुरानी पेंशन स्कीम को लागू करना, प्रति परिवार 100 यूनिट बिजली फ्री देना और किसानों के लिए 2000 यूनिट बिजली फ्री देना, चिरंजीवी स्वास्थ्य बीमा योजना के तहत 25 लाख तक के इलाज को मुफ्त कर देना और बीमा उपलब्ध कराना और इसी तरह कई जन उपयोगी योजनाएं, लेकिन राजस्थान की जनता ने फिर भी उनके कामों के प्रति विश्वास नहीं जताया, इसके गंभीर विश्लेषण की आवश्यकता है.
राजस्थान सामाजिक और राजनीतिक तौर पर सामंती जकड़नों में फंसा हुआ प्रदेश है, इसलिए यहां पर नयी राजनीति के लिए जगह बनाना हमेशा मुश्किल होता है और पारंपरिक रूप से यहां पर भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस ही शासन करती आयी हैं. ये दोनों दल भी नये प्रयोगों के बहुत पक्षधर नहीं होते और अपने केंद्रीय नेतृत्व के आधार पर चुनाव और सरकार संचालित करते हैं. पूरे देश की तरह राजस्थान में भी एक तबका है, जो सामाजिक समरसता और सभी के प्रतिनिधित्व का समर्थक है और एक दूसरा तबका है जो ‘राष्ट्र प्रथम’ का नारा देते हुए राजस्थान के गौरवशाली इतिहास को वापस लाने का वादा करता है. इन दोनों के बीच राजस्थान की जनता को जब चुनना होता है, तो वह सामान्य तौर पर राजस्थान और भारत के गौरव के साथ खड़ी होती है, लेकिन सामाजिक समरसता के अपने संकल्प को साथ लेते हुए.
ये चुनाव परिणाम इस तरफ साफ संकेत कर रहे हैं कि राजस्थान की जनता अपने बच्चों के लिए समय पर नौकरी भी चाहती है और इस मोर्चे से पर गहलोत विफल रहे हैं. सामान्य तौर पर कोई भी भर्ती प्रक्रिया तीन-चार साल में पूरी हो रही है और उसमें भी जब पेपर लीक का मामला आ जाए, तो निश्चित तौर पर पूरी युवा पीढ़ी और उनके परिवारों के बीच निराशा का माहौल पसर जाता है. जनता यह उम्मीद करती है कि उनके वोट से चुनी हुई सरकार उनके बच्चों के लिए बेहतर भविष्य बनाने में मदद करें, लेकिन एक के बाद एक परीक्षाओं में देरी और उनके पेपर लीक होने के मामलों ने गहलोत सरकार को लगातार कटघरे में खड़ा रखा है. पेपर लीक प्रकरण में शामिल लोगों पर कार्यवाही में देरी और उदारता भी वर्तमान सरकार के लिए महंगी पड़ी.
संगठन के स्तर पर देखें, तो भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस में एक बहुत बड़ा फर्क है और वह लगातार बढ़ता चला जा रहा है. भारतीय जनता पार्टी के पास मजबूत सांस्कृतिक संगठन हैं, जबकि कांग्रेस के पास उस तरह के संगठनों का इतिहास जरूर है, लेकिन वर्तमान में वे संगठन लगभग निष्क्रिय हो चुके हैं. आज कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं से अधिक नेताओं की संख्या है. भारतीय जनता पार्टी के अनुषंगी संगठनों में सबसे बड़ा नाम राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का है. इस तरह के सैंकड़ों संगठन हैं. उनके कार्यकर्ता पूरी प्रतिबद्धता और समर्पण के साथ न केवल अपने सांस्कृतिक-सामाजिक संगठन के लिए काम करते हैं, बल्कि समय आने पर वे भाजपा की मजबूत नींव की तरह खड़े रहते हैं और इससे भाजपा की राह आसान हो जाती है.
कांग्रेस में संगठन के स्तर पर राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच की तनातनी ने भी पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया. इसका नुकसान अंत तक हुआ क्योंकि टिकटों के वितरण के वक्त उम्मीदवार की योग्यता के बजाय उसके गुट को ज्यादा ध्यान में रखा गया. कई ऐसे उम्मीदवारों को भी टिकट दे दिया गया, जिनकी छवि आम लोगों के बीच में अच्छी नहीं है. भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने भी चुनाव प्रचार में जितनी मेहनत की, उससे उम्मीदवारों और कार्यकर्ताओं को प्रोत्साहन मिला.
इस चुनाव में राजस्थान में क्षेत्रीय दलों से जितनी उम्मीद थी, उतना बेहतर वे नहीं कर पाये, लेकिन फिर भी कुछ दलों की नयी उपस्थिति दिलचस्प जरूर है. सबसे दिलचस्प है भारत आदिवासी पार्टी. पहली बार चुनाव में उतरे इस दल ने तीन सीटों पर विजय प्राप्त करते हुए कांग्रेस और भाजपा के बाद तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में अपना नाम लिखवाया और आधा दर्जन सीटों पर दूसरे स्थान पर रहकर अपनी उपस्थिति दर्ज करायी. चौरासी विधानसभा क्षेत्र से इस दल के उम्मीदवार राजकुमार रौत ने करीब सत्तर हजार वोटों से विजय प्राप्त कर संभवतः इस चुनाव की सबसे बड़ी जीत दर्ज की है.
इस चुनाव का स्पष्ट संदेश है कि 2024 के आम चुनाव में अगर राजस्थान और उत्तर भारत में कांग्रेस और दूसरे विपक्षी दलों को मजबूती के साथ चुनाव लड़ना है, तो भारतीय जनता पार्टी की तर्ज पर सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों का निर्माण करना होगा और मजबूती से सभी मोर्चों पर जनता के बीच काम करना होगा, वरना उनके लिए 2024 की राह आसान नहीं होगी. यह कांग्रेस के लिए आत्मसमीक्षा का समय है. जनादेश स्पष्ट है कि सिर्फ नेतागिरी से काम नहीं चलेगा, जनता के बीच कार्यकर्ता बनकर पूरे संगठन को काम करना होगा, तभी आशा की किरण दिखाई दे सकती है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)