स्वास्थ्य पर ध्यान

बीते कुछ महीने से भारत दुनिया के बहुत सारे देशों के साथ कोरोना वायरस के भयावह संक्रमण का सामना कर रहा है. इस महामारी से निबटने की कोशिशें जारी हैं और कुछ उल्लेखनीय सफलताओं के बावजूद चुनौतियां बरकरार हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि हम अपनी स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों और खूबियों की समीक्षा कर बेहतरी की ओर अग्रसर हों, ताकि भविष्य में ऐसी किसी आपदा का सामना करने में हम सक्षम हो सकें.

By संपादकीय | July 27, 2020 5:00 AM

बीते कुछ महीने से भारत दुनिया के बहुत सारे देशों के साथ कोरोना वायरस के भयावह संक्रमण का सामना कर रहा है. इस महामारी से निबटने की कोशिशें जारी हैं और कुछ उल्लेखनीय सफलताओं के बावजूद चुनौतियां बरकरार हैं. ऐसे में यह जरूरी है कि हम अपनी स्वास्थ्य सेवाओं की खामियों और खूबियों की समीक्षा कर बेहतरी की ओर अग्रसर हों, ताकि भविष्य में ऐसी किसी आपदा का सामना करने में हम सक्षम हो सकें.

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय की हालिया रिपोर्ट (2017-18) को देखें, तो पता चलता है कि देश की आबादी का बड़ा हिस्सा अस्पतालों में इलाज के खर्च को वहन करने में सक्षम नहीं है. लगभग दो साल पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू की गयी आयुष्मान भारत योजना से पचास करोड़ गरीब भारतीयों को पांच लाख रुपये के स्वास्थ्य बीमा की सुविधा उपलब्ध हुई है. इसके अलावा टीकाकरण, कुपोषण हटाने, पेयजल मुहैया कराने आदि जैसी पहलें भी हुई हैं, जिनसे दीर्घकालिक सकारात्मक परिणाम मिलने की आशा है.

केंद्र सरकार स्वास्थ्य सेवा पर खर्च बढ़ाने तथा अधिक बजट आवंटन को लेकर भी प्रतिबद्ध है. राज्य सरकारें भी अपने स्तर पर या केंद्र सरकार के सहयोग से अलग-अलग योजनाओं को अमली जामा पहनाने की कोशिश कर रही हैं. हम कोरोना संकट के दौर में देख रहे हैं कि अस्पतालों और स्वास्थ्यकर्मियों की बड़ी कमी है. उल्लेखनीय है कि भारत उन देशों में शामिल है, जो स्वास्थ्य पर बहुत कम खर्च करते हैं. आबादी के अनुपात में स्वास्थ्य केंद्रों और कर्मियों की संख्या भी देश में निर्धारित अंतरराष्ट्रीय मानकों से बहुत कम है.

समुचित निवेश की कमी के कारण संसाधनों का भी घोर अभाव है. ग्रामीण क्षेत्रों, दूर-दराज के इलाकों तथा शहरों की गरीब बस्तियों में स्थिति बहुत चिंताजनक है. निजी अस्पतालों में इलाज का खर्च उठा पाना सबके बस में नहीं है. इस कारण मामूली समस्या भी बड़ी बीमारी बन जाती है तथा ऐसी बीमारियों से भी बहुत सी जानें चली जाती हैं, जो सामान्य उपचार से ठीक हो सकती हैं. स्वच्छता के लिए चला अभियान देशव्यापी आंदोलन बन चुका है. कोरोना संकट ने भी सामान्य व्यवहार में सुधार की बड़ी जरूरत को रेखांकित किया है.

सांख्यिकी कार्यालय की रिपोर्ट ने भी इस पहलू पर जोर दिया है. महामारी ने हमें अनेक सबक दिये हैं, जैसे- कहां और क्यों हालात ज्यादा खराब हुए या हो रहे हैं, कौन सी बीमारियां संक्रमण से और अधिक घातक हो सकती हैं और बुनियादी स्तर पर क्या तैयारियां जरूरी हैं. जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने आह्वान किया है कि इस आपदा को अवसर में बदलकर हम देश की अर्थव्यवस्था को नये सिरे से विकसित कर सकते हैं, उसी तरह स्वास्थ्य सेवाओं में भी व्यापक सुधार के लिए हमारे पास मौका है. सामान्य स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर अत्याधुनिक शोध व अनुसंधान के संस्थान स्थापित करने को प्राथमिकता दी जानी चाहिए. राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति को साकार करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

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