21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आजाद और भगत सिंह के प्रिय थे भगवतीचरण वोहरा

भगवतीचरण वोहरा भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के ऐसे अप्रतिम नक्षत्र थे,जिनके गर्वीले आत्मत्याग की आभा में शहीद-ए-आजम भगत सिंह को भी अपना बलिदान तुच्छ नजर आता था. वोहरा का अनूठापन इस बात में भी है कि आंदोलन के लेखक, विचारक, संगठक, सिद्धांतकार व प्रचारक और काकोरी से लाहौर तक कई क्रांतिकारी कार्रवाइयों के अभियुक्त होने के बावजूद वे न कभी पुलिस द्वारा पकड़े जा सके और न ही किसी अदालत ने उन्हें कोई सजा सुनायी. वे इसआंदोलन की नींव की ऐसी ईंट थे, जिसने कभी भी शिखर पर दिखने का लोभ नहीं पाला. वे कहते भी थे कि इस आंदोलन के लिए ऐसे लोग चाहिए, जो आशा की अनुपस्थिति में भी भय व झिझक के बिना युद्ध जारी रख सकें, जो आदर-सम्मान की आशा रखे बिना मुत्यु के वरण को तैयार हों, जिसके लिए न कोई आंसू बहे और न कोई स्मारक बने.

कृष्ण प्रताप सिंह

वरिष्ठ पत्रकार

kp_faizabad@yahoo.com

भगवतीचरण वोहरा भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन के ऐसे अप्रतिम नक्षत्र थे,जिनके गर्वीले आत्मत्याग की आभा में शहीद-ए-आजम भगत सिंह को भी अपना बलिदान तुच्छ नजर आता था. वोहरा का अनूठापन इस बात में भी है कि आंदोलन के लेखक, विचारक, संगठक, सिद्धांतकार व प्रचारक और काकोरी से लाहौर तक कई क्रांतिकारी कार्रवाइयों के अभियुक्त होने के बावजूद वे न कभी पुलिस द्वारा पकड़े जा सके और न ही किसी अदालत ने उन्हें कोई सजा सुनायी. वे इसआंदोलन की नींव की ऐसी ईंट थे, जिसने कभी भी शिखर पर दिखने का लोभ नहीं पाला. वे कहते भी थे कि इस आंदोलन के लिए ऐसे लोग चाहिए, जो आशा की अनुपस्थिति में भी भय व झिझक के बिना युद्ध जारी रख सकें, जो आदर-सम्मान की आशा रखे बिना मुत्यु के वरण को तैयार हों, जिसके लिए न कोई आंसू बहे और न कोई स्मारक बने.

वोहरा का जन्म चार जुलाई, 1904 को आगरा के रेल अधिकारी शिवचरण वोहरा के पुत्र रूप में हुआ. उनके माता-पिता बाद में लाहौर बस गये थे, जहां अभी भगवतीचरण की शिक्षा-दीक्षा पूरी भी नहीं हुई थी कि गांधी जी ने असहयोग आंदोलन की घोषणा कर दी और वे उसमें कूद पड़े.असहयोग आंदोलन की वापसी के बाद उन्होंने लाहौर के नेशनल कालेज से बीएकिया, जहां वे ‘राष्ट्र की परतंत्रता और उससे मुक्ति के प्रश्न’ पर स्टडी सर्किल चलाते थे और भगत सिंह व सुखदेव जिसके प्रमुख सदस्य थे. रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ तथा कुछ अन्य लोगों की शहादत के बाद जब हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी के प्रधान सेनापति चंद्रशेखर ‘आजाद’ ने अपनी सेना का पुनर्गठन कर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन बनाया, तब उसमें पंजाब से शामिल होने वालों में भी ये तीन नौजवान प्रमुख थे. वोहरा ने नौजवान भारत सभाबनायी, तो भगत सिंह को महासचिव बनाया और खुद प्रचार सचिव बने.

वे अपने साथियों के बीच ‘भाई’ के रूप में प्रसिद्ध थे और एक समय उन्होंने अपने कॉलेज के अध्यापक और क्रांतिकारी साथी जयचंद्र विद्यालंकार का यह आरोप भीझेला कि वे सीआइडी के आदमी हैं और उससे वेतन पाते हैं. उन दिनों उनके पास लाहौर में तीन मकान, लाखों की संपत्ति और हजारों का बैंक बैलेंस था,लेकिन उन्होंने विलासिता को ठुकरा कर कठिनाइयों से भरा आजादी का रास्ता चुना. अधिकतर लोगों के जीवन में बालविवाह आमतौर पर अभिशाप बनकर आता है,लेकिन उनके मामले में वह भी अपवाद बन गया. साल 1918 में जब वे 14 वर्ष केथे, तभी उनका विवाह ग्यारह वर्षीय दुर्गावती देवी के साथ हुआ. उनके घर जबबेटा पैदा हुआ, तो उसका नाम भी क्रांतिकारी शचींद्रनाथ सान्याल के नाम पर रखा गया. वोहरा के असमय निधन के बाद भी ‘दुर्गा भाभी’ उनके साथियों की मददगार व सलाहकार बनी रहीं.यदि वोहरा की दो बड़ी कार्रवाइयां विफल न हुई होतीं, तो शायद हमारे स्वतंत्रता संघर्ष का इतिहास कुछ और ही होता.

इनमें से एक 23 दिसम्बर,1929 को दिल्ली-आगरा रेललाइन पर वायसराय लार्ड इरविन की स्पेशल ट्रेन उड़ाने की कार्रवाई थी. उन्हें उस विस्फोट में सफलता भी मिली थी, लेकिन वायसराय बच गये. इस कार्रवाई के बाद महात्मा गांधी ने ईश्वर को धन्यवाद देते हुए ‘यंग इंडिया’ में ‘बम की पूजा’ लेख में क्रांतिकारियों को को साथा. जवाब में वोहरा ने चंद्रशेखर आजाद और भगत सिंह से सलाह करके ‘बम कादर्शन’ लिखा. दूसरी विफल कार्रवाई (28 मई, 1930) के बाद वोहरा की जानखतरे में आ गयी. ऐतिहासिक लाहौर षडयंत्र कांड में वे भगत सिंह, सुखदेव वराजगुरु को जेल से न्यायालय ले जाते समय अचानक धावा बोलकर छुड़ाना चाहते थे.

उसमें इस्तेमाल होनेवाले बम के परीक्षण में वे बुरी तरह घायल हुए और उनकी जान चली गयी. वोहरा ने अपनी जिंदगी के कुछ आखिरी पलों में साथियों से दो खास बातें कहीं. पहली कि अगर ये नामुराद मौत दो दिन टल जाती, तोइसका क्या बिगड़ जाता? उनका मतलब था कि तब वे भगत, सुखदेव व राजगुरु को छुड़ा लेते. दूसरी कि अच्छा हुआ कि जो कुछ भी हुआ, मुझे हुआ. किसी और साथी को होता तो मैं भैया यानी ‘आजाद’ को क्या जवाब देता ? उनके निधन के बाद ‘आजाद’ ने कहा था कि उन्हें लगता है कि उनका दायां हाथ कट गया है और बाद में ‘आजाद’ भी नहीं रहे तो भगत सिंह के शब्द थे, ‘हमारेतुच्छ बलिदान उस शृंखला की कड़ी मात्र होंगे, जिसका सौंदर्य कॉमरेड भगवतीचरण वोहरा के दारुण और गर्वीले आत्मत्यागऔर हमारे प्रिय योद्धा ‘आजाद’ की गरिमापूर्ण मृत्यु से निखर उठा है.’

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें