बदहवास ओली
भगवान राम को नेपाल का बताकर प्रधानमंत्री ओली अपने को ही हास्यास्पद बना रहे हैं. इतना तो तय है कि इससे उन्हीं को नुकसान होगा.
तीर्थनगरी अयोध्या और भगवान राम के बारे में नेपाल के प्रधानमंत्री खड्ग प्रसाद शर्मा ओली का बयान इस हद तक तथ्यहीन है कि उस पर कोई बहस करना समय की बर्बादी है. भारत से सटे और सांस्कृतिक रूप से परस्पर जुड़े देश के शासनाध्यक्ष को इतनी भौगोलिक, ऐतिहासिक और पौराणिक समझ तो होगी ही कि अयोध्या एक प्राचीन शहर है तथा वह भारत में है. उत्तर प्रदेश से तो नेपाल की सीमा भी लगती है तथा नेपाल की हिंदू आबादी की आस्था भी उसी भगवान राम में है, जो अयोध्या के राजा थे तथा जनकपुर की सीता से उनका विवाह हुआ था. बीते कुछ समय से ओली लगातार ऐसे बेतुके बयान दे रहे हैं. कभी वे भारत पर कोरोना संक्रमण का आरोप लगाते हैं, तो कभी कहते हैं कि भारत सरकार उन्हें प्रधानमंत्री पद से हटाने की कोशिश कर रही है.
नेपाल में भारत-विरोधी भावनाओं को भड़काने तथा उग्र राष्ट्रवादी तत्वों को तुष्ट करने के लिए वे नेपाल का नया नक्शा भी संसद से पारित करा चुके हैं, जिसमें भारतीय क्षेत्रों को नेपाल में दर्शाया गया है. उन्होंने नेपाल में ब्याही भारतीय स्त्रियों को सात साल तक नागरिकता नहीं देने का भी निर्देश जारी किया है. इस कवायद की असली वजह यह है कि सत्तारुढ़ नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में ओली के असफल शासन को लेकर व्यापक असंतोष है. नेपाल की जनता में भी उनका समर्थन बहुत घट गया है. पार्टी के सह-अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ ने स्पष्ट कह दिया है कि ओली प्रधानमंत्री पद पर बने रहने के लायक नहीं हैं.
ऐसा माना जा रहा है कि प्रचंड समेत पार्टी के अन्य प्रमुख नेताओं ने ओली को हटाने का निर्णय कर लिया है तथा इस निर्णय पर शीर्ष समिति की प्रस्तावित बैठक में मुहर भी लग सकती है. लेकिन ओली ने बाढ़ और भूस्खलन की आड़ में इस बैठक को फिलहाल टाल दिया है. जानकारों की मानें, तो नेपाली प्रधानमंत्री चीन के प्रभाव में भी हैं और भारत के विरुद्ध अनर्गल बातें कह कर उसे अपने पाले में रखना चाहते हैं. भारत ने स्पष्ट कहा है कि नेपाल के साथ किसी भी विवाद को वह कूटनीतिक व राजनीतिक संवाद के माध्यम से सुलझाना चाहता है तथा वहां की आंतरिक राजनीति की हलचलों से उसे कोई लेना देना नहीं है.
ओली की चीन से निकटता पर भी भारत ने सवाल नहीं उठाया है, किंतु ओली को यह नहीं भूलना चाहिए कि प्राचीन काल से ही भारत और नेपाल के गहरे संबंध रहे हैं. सांस्कृतिक, सामाजिक और भावनात्मक संबंधों को क्षणिक राजनीतिक लाभ के लिए संकट में डालना बुद्धिमत्ता का उदाहरण नहीं है. यदि नेपाल की सरकार को भारत से सही में कोई शिकायत है, तो उसे वे सामने रख सकते हैं, पर भगवान राम को नेपाल का बता कर प्रधानमंत्री ओली अपने को ही हास्यास्पद बना रहे हैं. इतना तो तय है कि इससे उन्हीं को नुकसान होगा.