21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

कट्टरपंथ की ओर बढ़ता बांग्लादेश

Bangladesh : पाकिस्तान के कट्टरपन और जुल्मों से त्रस्त बांग्लादेश जब लंबे संघर्ष के बाद आजाद हुआ और एक स्वतंत्र देश बना, तब से लेकर अब तक जितनी भी सरकारें वहां आयीं, उनमे से शेख मुजीबुर रहमान के परिवार तथा उनकी पार्टी का ही वर्चस्व रहा है.

Bangladesh: इन दिनों बांग्लादेश जिस तरह के हालात से गुजर रहा है, वैसी स्थिति वहां पहले कभी भी नहीं थी. सामाजिक सौहार्द और समरसता का चेहरा, जो स्वतंत्रता से लेकर अब तक इस देश ने बनाये रखा था, वह संविधानिक विरासत इस समय बिखर गयी सी लगती है. बांग्लादेश अपनी मुक्ति से लेकर आज तक भारत का अभिन्न दोस्त तथा इससे पहले भारत का हिस्सा रहा है. आज भी बांग्लादेश में मिली-जुली विरासत की निशानियां मौजूद हैं. हिंदू विरासत, इतिहास तथा मंदिरों के इस देश में, सुबह मस्जिदों की अजान के साथ हिंदू मंदिरों में गूंजती घंटियां, साझी विरासत व समरसता का जयघोष करती थीं. यहां की विरासत बंगाल के मिले-जुले इतिहास तथा साहित्य-संस्कृति और भाषा में निहित थी.

सत्ता परिवर्तन के बाद बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर बढ़ा अत्याचार

पाकिस्तान के कट्टरपन और जुल्मों से त्रस्त बांग्लादेश जब लंबे संघर्ष के बाद आजाद हुआ और एक स्वतंत्र देश बना, तब से लेकर अब तक जितनी भी सरकारें वहां आयीं, उनमे से शेख मुजीबुर रहमान के परिवार तथा उनकी पार्टी का ही वर्चस्व रहा है. परंतु पिछले दिनों शेख हसीना के तख्तापलट के बाद प्रो युनुस के हाथों में हुकूमत आयी और तभी से बांग्लादेश विद्रोह और अल्पसंख्यकों के प्रति कट्टरपन का रास्ता अख्तियार कर चुका है. बीते कुछ महीनों से जिस तरह यहां हिंदू मंदिरों, व्यापारिक संस्थानों, घरों तथा अन्य संस्थाओं पर हमले हो रहे हैं, उसने यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि क्या आने वाले दिनों में बांग्लादेश का कट्टरपन उसे भी उन इस्लामी देशों की सफ में खड़ा करेगा जो आतंकवाद तथा रोहिंग्या मुसलमानों के मसले को लेकर दुनियाभर में बदनाम हैं.

सात शक्तिपीठ बांग्लादेश में स्थित

इतिहास गवाह है कि यह भूभाग, जो कभी भारत का भाग था, कभी भी ऐसी कट्टरवाद की आंधी में नहीं झुलसा था. इसी कारण हजारों मंदिरों वाले इसके 64 जिले भारतीय सभ्यता, मुस्लिम संस्कृति व ईसाई व बौद्ध अल्पसंख्यकों के साथ समरसता का भाव रखते हुए मिलजुल कर रहते थे. पिछले दिनों इस्कॉन के हिंदू मंदिरों के अध्यक्ष चिन्मय कृष्ण दास की गिरफ्तारी के विरोध में जिस तरह का उबाल हिंदुओं में देखने को मिला, वैसा पहले कभी नहीं हुआ है. बांग्लादेश में इस समय 40,000 से ज्यादा मंदिर हैं. इसमें कई ऐतिहासिक मंदिर भी शामिल है जिन्हें खूबसूरत टेराकोटा तथा बंगाली व हिंदू संस्कृति के अनुरूप सजाया-संवारा तथा संभाल कर रखा गया है. बांग्लादेश की राजधानी ढाका स्थित राम काली मंदिर और प्रसिद्ध ढाकेश्वरी माता मंदिर की हिंदू धर्म में बेहद मान्यता है. इतना ही नहीं, 51 हिंदू शक्तिपीठों में से सात बांग्लादेश में मौजूद हैं. वर्तमान में इस देश में दस हजार वर्ष से अधिक पुराने मंदिर भी देखे जा सकते हैं.

बांग्लादेश में 10 प्रतिशत आबादी हिंदुओं की

हिंदू जनसंख्या की बात करें, तो यहां के गोपालगंज, धाकड़ डिवीजन में अकेले 26.94 प्रतिशत जनसंख्या हिंदुओं की है. मौलवीबाजार, सिलहट डिवीजन की 24 प्रतिशत, ठाकुर गांव, रंगपुर डिवीजन की 22 प्रतिशत और खुलना डिवीजन की 20 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू है. हिंदुओं के अतिरिक्त यहां ईसाई और बौद्ध भी रहते हैं. वर्ष 1947 में बंटवारे के समय आज के बांग्लादेश को पूर्वी बंगाल कहा जाता था, जो देश के बंटवारे के बाद पूर्वी पाकिस्तान कहलाया. तब यहां बंगाली हिंदू बड़ी संख्या में रहते थे. आज भी बांग्लादेश की एक बड़ी जनसंख्या हिंदू है. सोलह करोड़ की जनसंख्या वाले इस देश की लगभग 10 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू है. बांग्लादेश बनने के बाद हिंदू बहुल इलाकों में जिस तरह से इस्कॉन मंदिरों का फैलाव हुआ है, वह हिंदू आबादी तथा आस्था का चेहरा भी दिखाता है. वहीं शेख हसीना के तख्ता पलट के बाद यहां जिस तरह मुस्लिम सांप्रदायिक संस्थानों की बाढ़ आयी है और कट्टरपन बढ़ा है, वह बांग्लादेश का दूसरा चेहरा दिखाता है.

इसके संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान ने जब भारतीय सेना के सहयोग से इस देश की स्वतंत्रता की घोषणा की थी तब यहां मौजूद सर्वधर्म, सद्भाव व समरसता के चलते ही इसे रिपब्लिक, यानी गणतंत्र का दर्जा दिया गया था. पर आज यह देश कट्टरपंथियों के हाथों में आ चुका है, जो दूसरे संप्रदाय के लोगों को बांग्लादेश की धरती पर रहने देना ही नहीं चाहते. उनके घर, संस्थान तथा उद्योग प्रतिष्ठान जलाये जा रहे हैं. इस तरह के कृत्य में बांग्लादेश की राजनीतिक पार्टियां, चाहे वह मुस्लिम लीग हो, जमायते इस्लामी हो, अलबाजार अलशम हो, सभी शामिल हैं.

भारत के लिए खतरे की घंटी

बांग्लादेश, जो रबींद्रनाथ टैगोर और काजी नजरुल इस्लाम जैसे कवियों की धरती है, आज वहां अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस कर रहे हैं. बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से यहां कभी भी ऐसा माहौल नहीं रहा जहां अल्पसंख्यक अपने आपको इतना असुरक्षित महसूस करते हों. भारत सरकार द्वारा जल्द से जल्द इस मुद्दे को हल करना ही वहां के अल्पसंख्यकों के लिए बेहतर होगा, अन्यथा बहुत देर हो जायेगी. अंत में, समरसता तथा सौहार्द जिंदगी का रास्ता है.‌ हिंसा कोई मार्ग नहीं है. बांग्लादेश में इन दिनों जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं, इस कारण इसका आधारभूत ढांचा चरमरा रहा है और यह उसके विकास के रास्ते में कितना बड़ा अवरोध उत्पन्न करेगा, इसकी वर्तमान सरकार कल्पना भी नहीं कर सकती. यह भारत के लिए भी खतरे की घंटी है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें