अनिश्चितता के घेरे में बांग्लादेश

प्रधानमंत्री के त्यागपत्र के साथ प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांग तो पूरी हो गयी है, पर इसी के साथ राजनीतिक स्थिरता और भावी सरकार को लेकर अनिश्चितता भी बढ़ गयी है. यह एक महत्वपूर्ण सवाल है कि साझा सरकार में अवामी लीग की क्या भूमिका होगी. अगर उसे सरकार में शामिल नहीं किया जाता है, तो क्या स्थिरता बहाल हो पायेगी, और यदि उसे नये शासन का हिस्सा बनाया जाता है, तो क्या यह प्रदर्शनकारियों को स्वीकार्य होगा- ऐसे सवाल बांग्लादेश के सामने हैं.

By डॉ धनंजय | August 6, 2024 7:30 AM
an image

Bangladesh Reservation Issue : बांग्लादेश में कई सप्ताह से चल रहे छात्रों एवं युवाओं के व्यापक आंदोलन के चलते प्रधानमंत्री शेख हसीना को पद छोड़ने के साथ-साथ देश भी छोड़ना पड़ा है. बांग्लादेश सेना के प्रमुख जेनरल वकार ने साझा सरकार गठित करने की बात कही है. उन्होंने प्रदर्शनकारियों को यह आश्वासन भी दिया है कि सभी मौतों की जांच की जायेगी और उनकी मांगों पर विचार किया जायेगा. जुलाई से जारी प्रदर्शनों में 300 से अधिक लोगों की मौत और बड़े पैमाने पर हिंसा की घटनाओं से यही इंगित होता है कि वहां स्थिति बहुत बिगड़ चुकी है.

प्रधानमंत्री के त्यागपत्र के साथ प्रदर्शनकारियों की प्रमुख मांग तो पूरी हो गयी है, पर इसी के साथ राजनीतिक स्थिरता और भावी सरकार को लेकर अनिश्चितता भी बढ़ गयी है. यह एक महत्वपूर्ण सवाल है कि साझा सरकार में अवामी लीग की क्या भूमिका होगी. अगर उसे सरकार में शामिल नहीं किया जाता है, तो क्या स्थिरता बहाल हो पायेगी, और यदि उसे नये शासन का हिस्सा बनाया जाता है, तो क्या यह प्रदर्शनकारियों को स्वीकार्य होगा- ऐसे सवाल बांग्लादेश के सामने हैं. यह भी अहम सवाल है कि क्या देश में नये चुनाव होंगे.


मौजूदा आंदोलन की वजह यह है कि उच्च न्यायालय (सर्वोच्च न्यायालय का एक अंग) ने सरकारी नौकरियों में स्वतंत्रता सेनानियों के पोते-पोतियों के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण को बहाल कर दिया था, जिसे 2018 में हटा दिया गया था. इस फैसले के बाद कुल आरक्षण 56 प्रतिशत हो गया था. बाद में सर्वोच्च न्यायालय से सरकारी नौकरियों में हर तरह के आरक्षण में भारी कटौती करते हुए 93 प्रतिशत सीटों को आरक्षण के दायरे से बाहर कर दिया था.

इस पर सरकार की अपील पर सात अगस्त को निर्णय आना है. पर अब ऐसा लगता है कि यह मामला कुछ समय के लिए टाल दिया जायेगा. प्रदर्शनकारी इस बात से बहुत क्षुब्ध हैं कि उनकी मांगों पर विचार करने और उनसे संवाद स्थापित करने की जगह प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी की ओर उन्हें रजाकारों का वंशज तथा आतंकवादी कहा गया है. रजाकार वहां एक अपमानजनक संबोधन है क्योंकि यह संज्ञा उन लोगों से जुड़ी हुई है, जो बांग्लादेश के स्वाधीनता संग्राम में पाकिस्तान सेना का साथ देते थे और स्वतंत्रता सेनानियों को निशाना बनाते थे.

हालांकि यह आंदोलन आरक्षण के मुद्दे पर शुरू हुआ था और मुख्य रूप से इसमें छात्र और युवा शामिल थे, पर बाद में इसमें शेख हसीना के विरोधी दल तथा सरकार की नीतियों एवं कार्यशैली से क्षुब्ध लोग भी शामिल होते गये. अन्य मसलों के अलावा भ्रष्टाचार और महंगाई का मुद्दा भी आंदोलन की मांगों का हिस्सा बन गया. पुलिस के दमन तथा शेख हसीना के समर्थकों के हिंसक हमलों ने लोगों का गुस्सा बहुत बढ़ा दिया.


बहुत से अन्य देशों की तरह बांग्लादेश में भी युवाओं की पहली कोशिश सरकारी नौकरी हासिल करने की होती है. इस कारण आरक्षण एक त्वरित कारण बन गया. वहां बड़ी संख्या में सरकारी पद खाली भी हैं. यदि लोगों को नौकरियां मिलती रहतीं, तो यह स्थिति संभवत: पैदा ही नहीं होती. हालांकि बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय विस्तार हुआ है, पर हालिया वर्षों में विभिन्न कारणों, विशेषकर कोरोना महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध आदि, से आर्थिक विकास की गति पर नकारात्मक असर पड़ा है. महंगाई और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएं वहां भी हैं.

शेख हसीना 2009 से प्रधानमंत्री रही थीं और लगातार चुनाव जीत रही थीं. उन चुनाव के साफ-सुथरे नहीं होने को लेकर अनेक अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा भी सवाल उठाये जाते रहे हैं. पिछले चुनाव में मुख्य विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने चुनाव का बहिष्कार भी किया था क्योंकि उसके नेताओं को लगातार हिरासत में रखा गया है. इन प्रदर्शनों से यह भी साबित होता है कि शेख हसीना को उतना जन-समर्थन शायद नहीं था, जितना उनकी जीत में दिखाई देता था. लंबे समय तक सत्ता में रहने के साथ-साथ शेख हसीना और उनकी सरकार में एकाधिकारवाद की प्रवृत्ति भी बढ़ी, जो उनकी कार्यशैली से इंगित भी होती है. ये सारी वजहें प्रदर्शनों को बड़ा और उग्र बनाने में सहायक साबित हुईं.


अगर शेख हसीना ने दमन का सहारा नहीं लिया होता और युवाओं को रजाकार या आतंकवादी कहने के बजाय संवेदनशीलता का परिचय दिया होता, आज उन्हें पद के साथ-साथ देश छोड़कर जाने की नौबत नहीं आती तथा बांग्लादेश भी अनिश्चितता से बच जाता. इससे पहले भी बांग्लादेश में जो विरोध प्रदर्शन हुए हैं, उनमें भी जमात, पाकिस्तान-समर्थक गुटों और कट्टरपंथियों की भागीदारी होती थी. वैसा इस आंदोलन में भी हुआ होगा. पर इतना बड़ा आंदोलन व्यापक जन समर्थन के बिना संभव नहीं है. यह शेख हसीना को समझना चाहिए था. बहुत से पूर्व सेना अधिकारी और कला जगत से जुड़े लोगों ने भी छात्रों-युवाओं का समर्थन किया है.

बांग्लादेश हमारा पड़ोसी देश है और उसके साथ भारत के अच्छे संबंध हैं. ऐसे में वहां के घटनाक्रम पर भारत सरकार की नजर होना स्वाभाविक है, पर हमें किसी तरह का अनुमान लगाने या निराधार प्रतिक्रिया देने से बचना चाहिए. खबरों के अनुसार, बांग्लादेश की कपड़ों की हजारों फैक्ट्रियां बंद हैं. भारत और बांग्लादेश व्यापार निरंतर बढ़ता गया है. अगर वहां अस्थिरता बढ़ती है, तो द्विपक्षीय कारोबार पर असर पड़ सकता है.


बांग्लादेश में सैन्य शासन का लंबा इतिहास रहा है. अगर सेना वहां सीधे सत्ता पर दखल करती है या परदे के पीछे से शासन चलाती है, तो यह एक चिंता की बात हो सकती है. चुनाव में या सार्वजनिक चर्चा में कुछ दल और समूह भारत के विरुद्ध बोलते रहे हैं. शेख हसीना पर वे लोग भारत के पैरोकार होने का आरोप लगाते रहे हैं. अगर ऐसे समूह सत्ता में आते हैं, तो दोनों देशों के संबंधों के समक्ष एक चुनौती पैदा हो सकती है.

इस स्थिति में यह भी एक कारक हो सकता है कि शेख हसीना भारत में कितने समय तक रहती हैं या फिर किसी तीसरे देश में जाती हैं. यह आशंका भी है कि यदि बांग्लादेश में अस्थिरता बढ़ती है और हिंसा का विस्तार होता है, तो वहां से शरणार्थी भी भारत का रुख कर सकते हैं. उस स्थिति में हमारे लिए समस्याएं बढ़ सकती हैं. बांग्लादेश समेत समूचे दक्षिण एशिया में युवा आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा है. हालिया समय में अनेक देशों में क्रुद्ध प्रदर्शन और राजनीतिक हलचलें हुई हैं. ये सब इस क्षेत्र के विकास के लिए शुभ संकेत नहीं हैं. आशा करनी चाहिए कि बांग्लादेश वर्तमान अस्थिरता से जल्दी उबर जायेगा. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

Exit mobile version