सिकल सेल से जंग
दुनियाभर में इस बीमारी से एक लाख से भी ज्यादा बच्चों की पांच साल की उम्र से पहले मौत हो जाती है. प्रभावित बच्चों में से लगभग 20 प्रतिशत दो वर्ष की उम्र पूरी होने से पहले, और 30 प्रतिशत बच्चे वयस्क होने से पहले दम तोड़ देते हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत शनिवार को राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन अभियान की शुरुआत की. इसके तहत वर्ष 2047 तक इस बीमारी को जड़ से मिटा देने का लक्ष्य रखा गया है. दुनिया में सिकल सेल बीमारी से ग्रस्त आधे लोग भारत में हैं. भारत में हर साल ढाई लाख बच्चे सिकल सेल एनीमिया से प्रभावित होते हैं. शोध से स्पष्ट हो चुका है कि यह बीमारी आदिवासियों में ज्यादा होती है. यह एक आनुवंशिक यानी जीन से संबंधित बीमारी है, जो खास तौर पर ऐसे लोगों में होती है, जिनके पूर्वज सहारावर्ती अफ्रीकी देशों से आये थे. सिकल सेल बीमारी से दुनियाभर में लाखों लोग प्रभावित होते हैं. बीमारी से महिलाओं और बच्चों को ज्यादा खतरा होता है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में इस बीमारी से एक लाख से भी ज्यादा बच्चों की पांच साल की उम्र से पहले मौत हो जाती है. प्रभावित बच्चों में से लगभग 20 प्रतिशत दो वर्ष की उम्र पूरी होने से पहले, और 30 प्रतिशत बच्चे वयस्क होने से पहले दम तोड़ देते हैं. सिकल सेल एनीमिया लाल रक्त कोशिका को प्रभावित करती है. सामान्य तौर पर ये कोशिका गोलाकार होती है, जिससे ये शिराओं में आसानी से आवागमन कर सकती है, लेकिन सिकल सेल में इसका आकार सिकल यानी हंंसिया जैसा हो जाता है, जिससे इसकी गति धीमी हो जाती है और रक्त प्रवाह पर असर पड़ता है. इससे शरीर में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और स्वास्थ्य पर गंभीर असर पड़ता है. समय पर इलाज नहीं होने से इससे प्रभावित बच्चा सामान्य जीवन नहीं व्यतीत कर पाता और गंभीर स्थितियों में यह घातक भी सिद्ध होता है.
भारत में इस बीमारी का पता सबसे पहले 1950 के दशक में चला था, लेकिन आदिवासी इलाकों में बुनियादी सुविधाओं की कमी से इस बीमारी की रोकथाम एक चुनौती बनी हुई है. केंद्र सरकार के सिकल सेल एनीमिया के उन्मूलन के लिए शुरू किये गये अभियान से इस बीमारी को लेकर जागरूकता बढ़ेगी. इस वर्ष फरवरी में आम बजट में भी सिकल सेल बीमारी के खिलाफ अभियान का उल्लेख किया गया था. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि प्रभावित आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों से लेकर 40 साल तक के लोगों में इस बीमारी की अनिवार्य स्क्रीनिंग की व्यवस्था की जायेगी. आजादी के 75 वर्ष बाद भी भारत के आदिवासी बुनियादी सुविधाओं को हासिल करने में सबसे पीछे हैं. आदिवासियों के जीवन और मौत से जुड़ी एक महत्वपूर्ण चुनौती का सामना करने के लिए ईमानदारी से प्रयास जारी रहना चाहिए.