केंद्रीय विश्वविद्यालयों, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) और भारतीय प्रबंधन संस्थान (आईआईएम) उच्च शिक्षा की श्रेष्ठ एवं आधारभूत संस्थान हैं. देश की प्रगति में इनकी शिक्षा और इनके शोध व अनुसंधान महत्वपूर्ण योगदान देते हैं. यदि इनमें समुचित संख्या में शिक्षक नहीं होंगे, तो इसका शैक्षणिक गुणवत्ता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा. केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में एक लिखित उत्तर में जानकारी दी है कि 45 केंद्रीय विश्वविद्यालयों में शिक्षकों के स्वीकृत पदों की संख्या 18, 956 है, जिसमें 6,180 पद रिक्त हैं.
इसका अर्थ है कि इनमें 32.6 प्रतिशत रिक्तियां हैं. आईआईटी और आईआईएम में यह आंकड़ा क्रमशः 38.3 और 31 प्रतिशत है. आईआईटी में 11,170 शिक्षक होने चाहिए, लेकिन 4,502 पद खाली हैं. आईआईएम में स्वीकृत पद 1,566 हैं. वहां 493 रिक्तियां हैं. इन संस्थानों में लगातार सीटें बढ़ रही हैं. शिक्षकों की कमी से पढ़ाई पर भी असर पड़ता है और पदस्थ शिक्षकों पर बोझ भी बढ़ता है.
सरकार की ओर से कहा गया है कि शिक्षा मंत्रालय ने सभी उच्च शिक्षण संस्थाओं को निर्देश दिया है कि भर्ती प्रक्रिया में तेजी लायी जाए तथा इसकी मासिक समीक्षा हो. जैसा कि शिक्षा मंत्री ने कहा है, भर्ती निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है, लेकिन रिक्तियों का इतना बड़ा अनुपात चिंताजनक है. विभिन्न संस्थान तदर्थ और अतिथि शिक्षकों को बहाल करते हैं. उन्हें स्थापित प्रक्रिया के तहत स्थायी किया जा सकता है. कुछ समय के लिए ऐसी नियुक्तियां तो ठीक हैं, लेकिन लंबे समय तक तदर्थ रहने पर शिक्षकों के उत्साह में कमी आती है.
देश की चिकित्सा व्यवस्था को बेहतर बनाने तथा चिकित्सा शिक्षण एवं शोध को गति देने के लिए कई अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थानों (एम्स) की स्थापना हुई है. ये संस्थान भी शिक्षकों की बड़ी कमी का सामना कर रहे हैं. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि 18 नये एम्स में 78 प्रतिशत तक शिक्षकों के पद खाली हैं. ये शिक्षक विशेषज्ञ चिकित्सक भी होते हैं तथा एम्स के अस्पताल रोगियों का उपचार करने के साथ-साथ बीमारियों के अध्ययन के केंद्र भी होते हैं.
उच्च शिक्षा के भारतीय संस्थानों तथा वहां से पढ़े छात्रों का दुनियाभर में सम्मान है, पर बेहतरीन शिक्षण संस्थानों की सूची में हमारे कुछ ही संस्थान आ पाते हैं. इस वर्ष की क्यूएस यूनिवर्सिटी रैंकिंग में शीर्षस्थ 200 संस्थानों में केवल तीन भारतीय संस्थान- भारतीय विज्ञान संस्थान, बेंगलुरु, आईआईटी, बंबई और आईआईटी, दिल्ली- ही आ सके हैं. इस वर्ष से नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति भी लागू हुई है तथा विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने डिग्रियों और अवधि के बारे में नये निर्देश भी जारी किये हैं. इन्हें ठीक से अमल में लाने के लिए पर्याप्त संख्या में शिक्षकों का होना जरूरी है.