हमारे देश में कोरोना वायरस से जुड़े आंकड़ों से दो मुख्य बातें निकलकर आ रही हैं- संक्रमण की दर लगातार बढ़ती जा रही है, पर संक्रमितों की मृत्यु दर में गिरावट हो रही है. संक्रमितों की संख्या बढ़ने का सीधा अर्थ है कि इस घातक वायरस की उपस्थिति व्यापक स्तर पर है. इस संबंध में यह भी रेखांकित करना आवश्यक है कि ठोस प्रयासों के बावजूद अभी भी जांच का अनुपात संतोषजनक नहीं है यानी अगर अधिक तेज गति से जांच हो, संख्या में और भी बढ़ोतरी हो सकती है.
निश्चित रूप से मृत्यु दर में कमी यह इंगित कर रही है कि अस्पतालों व डॉक्टरों की कोशिशों से अच्छे परिणाम मिल रहे हैं. संक्रमण से मुक्त होनेवालों की संख्या भी लगभग 63 फीसदी है. ये तथ्य उत्साहवर्द्धक हैं, किंतु अभी सबसे बड़ी प्राथमिकता संक्रमण को रोकने की है क्योंकि यदि बड़ी संख्या में लोग वायरस की चपेट में आते रहेंगे, तो गंभीर रूप से बीमारों और मृतकों की दर कभी भी बढ़ सकती है. इसी वजह से देश के अनेक हिस्सों में पूरा या आंशिक लॉकडाउन लगाने की नौबत आयी है.
उत्तर प्रदेश में अभी लॉकडाउन है और सप्ताहांत में पाबंदियों को जारी रखने के निर्देश जारी किये गये हैं. इसी तरह से बिहार, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश व मेघालय के कुछ इलाकों में तथा बंगलुरु एवं पुणे में बंदी रहेगी. पंजाब में भी लोगों के हर तरह के जुटान को प्रतिबंधित कर दिया है. अब पांच से अधिक लोग सामाजिक तौर पर इकट्ठा नहीं हो सकते हैं तथा शादियों में शामिल होनेवालों की संख्या भी 50 से घटाकर 30 कर दी गयी है. राजस्थान में भी विभिन्न आयोजनों के बारे में नये आदेश निर्गत हुए हैं.
चूंकि देश को लंबे लॉकडाउन का अनुभव है, सो उम्मीद है कि नयी रोकों से विशेष असुविधा नहीं होगी. पहले भी केंद्र और राज्य सरकारों के प्रयासों से तथा विभिन्न संगठनों के सहयोग से आवश्यक वस्तुओं व सेवाओं की आपूर्ति में विशेष अवरोध उत्पन्न नहीं हुआ था. इसमें कोई संदेह नहीं है कि शासन-प्रशासन के साथ नागरिक समूहों और जनता ने कोविड-19 से बचाव के लिए जारी निर्देशों का पालन किया है, लेकिन कुछ हद तक जाने-अनजाने लापरवाही, गलतियों और गड़बड़ियों का सिलसिला भी चलता रहा है. इसका एक नतीजा बड़े पैमाने पर संक्रमण के रूप में हमारे सामने है.
ऐसे में हमें यह बार-बार याद रखने की आवश्यकता है कि सतर्कता एवं सावधानी इस वायरस के विरुद्ध हमारे सबसे कारगर हथियार हैं. सीमित संसाधनों के कारण बड़ी आबादी की जांच कर पाना व्यावहारिक नहीं है. अस्पतालों में सभी संक्रमितों का उपचार हो पाना भी संभव नहीं है. इस स्थिति में निर्देशों का पालन करते हुए मामूली लक्षणों का पता चलते ही समुचित सलाह लेकर स्वयं को स्वस्थ करने पर ध्यान देना चाहिए. सरकार, समाज और नागरिकों को एकजुट होकर कोरोना का सामना करना है.