जल संकट के लिए तैयार रहिए
समस्या केवल कम बारिश की नहीं है. बारिश होती भी है, तो हम जल संरक्षण नहीं करते. अपने तालाबों को हमने पाट दिया है. शहरों में तो उनके स्थान पर बहुमंजिले अपार्टमेंट और मॉल खड़े हो गये हैं.
फिर गर्मी आ रही है और हमारे देश के अनेक इलाके पानी की कमी से जूझेंगे. चिंताजनक बात यह है कि कई इलाकों में भारी बारिश के बावजूद हम हर साल जल संकट से जूझते हैं. साल-दर-साल स्थिति गंभीर होती जा रही है. हाल में संयुक्त राष्ट्र ने अपनी एक रिपोर्ट में चेताया है कि आगामी कुछ वर्षों में दुनिया के कई देश गंभीर जल संकट से जूझेंगे, जिनमें भारत प्रमुख है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2050 तक भारत में पानी का गंभीर संकट होगा.
यहां तक कि नदियों में भी पानी का प्रवाह बहुत कम हो जायेगा या वे सूख जायेंगी. संयुक्त राष्ट्र की विश्व जल रिपोर्ट में कहा गया है कि आगामी कुछ वर्षों में दुनिया की लगभग आठ अरब में से 2.40 अरब आबादी पानी के गंभीर संकट से जूझ रही होगी. वर्ष 2016 तक पृथ्वी की 9.33 करोड़ आबादी ही जल संकट से जूझ रही थी. जाहिर है कि पिछले कुछ वर्षों में यह संकट तेजी से बढ़ा है. आकलन है कि एशिया में लगभग 80 प्रतिशत आबादी जल संकट से जूझ रही है.
दुनिया की लगभग 26 फीसदी आबादी को पीने का साफ पानी नहीं मिल पा रहा है, खासकर पश्चिमी एशिया और अफ्रीका के अनेक देशों में स्थिति बहुत गंभीर है. उक्त रिपोर्ट में आशंका जतायी गयी है कि जलवायु परिवर्तन के कारण गर्मी का प्रकोप बढ़ेगा और ग्लेशियर लगातार पिघलने के कारण सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी प्रमुख हिमालयी नदियों का प्रवाह कम हो जायेगा. संयुक्त राष्ट्र के निदेशक आंद्रे अजोले ने कहा कि वैश्विक जल संकट से बचने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तत्काल उपाय करने की जरूरत है.
जल संकट से जूझ रहे दुनिया के 400 शहरों में से शीर्ष 20 में चार शहर- चेन्नई, कोलकाता, मुंबई और दिल्ली- भारत में है. संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक के अनुसार, देश के 21 शहर जीरो ग्राउंड वाटर लेवल पर पहुंच जायेंगे. इसका आशय यह है कि इन शहरों में पीने का पानी भी नहीं उपलब्ध होगा. इसके कारण 10 करोड़ लोगों की जिंदगी प्रभावित हो सकती है. भारत में ग्रामीण इलाकों में पहले से ही जल संकट की गंभीर समस्या है. इस कारण भी लोग शहरों की ओर पलायन करते हैं.
यह पलायन पहले ही जन सुविधाओं से जूझ रहे शहरों पर बोझ बढ़ा देता है. एक और चुनौती है कि देश में बड़ी आबादी ऐसी जगह रहती है, जहां हर साल सूखा पड़ता है. हालांकि देश में नदियां तो अनेक हैं, लेकिन उनमें उपलब्ध पानी की गुणवत्ता बहुत खराब हो चुकी है. उनका पानी पीने को तो छोड़िए, नहाने योग्य भी नहीं है. केंद्र सरकार का कहना है कि पानी की उपलब्धता में गिरावट की एक बड़ी वजह बढ़ती जनसंख्या भी है.
पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता में लगातार गिरावट की एक वजह उपलब्ध संसाधनों के अतिदोहन और जल संचयन की व्यवस्था न होना भी है. यह भी चिंताजनक है कि भारत दुनिया में सबसे अधिक भूजल दोहन वाले देशों में है. बड़े शहरों, जैसे दिल्ली, मुंबई में नगर निगम द्वारा निर्धारित 150 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से भी ज्यादा पानी दिया जाता है. दिल्ली प्रति व्यक्ति पानी की खपत के लिहाज से दुनिया में पहले स्थान पर है.
यहां पानी की प्रति व्यक्ति प्रतिदिन खपत 272 लीटर है. इसकी बड़ी वजह पानी की बर्बादी और अनियंत्रित औद्योगिक खपत भी है. अपने देश में घरों में भी उपयोग की कोई मानक सीमा तय नहीं है. साथ ही, धान और गन्ने जैसी फसलों में भी पानी की खपत बहुत अधिक होती है. हम किसानों को कम जल खपत वाली फसलों के लिए प्रेरित नहीं करते हैं. और, सबसे जरूरी जल संचयन की सभी लोग भारी अनदेखी करते हैं. ग्रामीण इलाकों में जल संकट खत्म करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर पिछले साल 24 अप्रैल को अमृत सरोवर अभियान की शुरुआत हुई थी.
इसके तहत हर जिले में 75 अमृत सरोवर के निर्माण का लक्ष्य है. यदि इस योजना पर ईमानदारी से अमल हुआ, तो देश में भूजल बढ़ाने में खासी मदद मिलेगी. केंद्र सरकार का दावा है कि देशभर में अब तक 40 हजार से ज्यादा अमृत सरोवर का निर्माण हो चुका है और आगामी 15 अगस्त तक 50 हजार अमृत सरोवर बनाने का लक्ष्य है.
समस्या केवल कम बारिश की नहीं है. बारिश होती भी है, तो हम जल संरक्षण नहीं करते. अपने तालाबों को हमने पाट दिया है. शहरों में तो उनके स्थान पर बहुमंजिले अपार्टमेंट और मॉल खड़े हो गये हैं. झारखंड की ही मिसाल लें. यहां साल में औसतन 1400 मिलीमीटर बारिश होती है. यह किसी भी पैमाने पर अच्छी बारिश मानी जायेगी, लेकिन बारिश का पानी बह कर निकल जाता है. उसके संचयन का कोई उपाय नहीं है.
इसे चेक डैम या तालाबों के जरिये रोक लिया जाए, तो साल भर खेती और पीने के पानी की समस्या नहीं होगी. हालत यह है कि गर्मी की अभी शुरुआत भर हुई है और कई राज्यों में जल संकट ने दस्तक दे दी है. मैं स्पष्ट कर दूं कि यह केवल सरकारों के बूते के बात नहीं है. समाज को भी आगे आना होगा. हम लोग गांवों में जल संरक्षण के उपाय करते थे, वे भी हमने छोड़ दिये हैं.
पर्यावरणविद दिवंगत अनुपम मिश्र ने तालाबों पर भारी काम किया था. उनका मानना था कि जल संकट प्राकृतिक नहीं, मानवीय है. बस्ती के आसपास जलाशय, तालाब, पोखर आदि बनाये जाते थे. जल संरक्षण की व्यवस्था की जाती थी. यह काम प्रकृति के अनुकूल किया जाता था. लेकिन हमने तालाब मिटा दिये और जल संरक्षण का काम छोड़ दिया.
राज्य या केंद्र सरकार तालाबों को जिंदा करने का काम करे, तो बहुत अच्छा, अन्यथा लोगों को इसकी पहल करनी चाहिए. भूजल स्तर के घटते जाने को रोकने का उपाय केवल जल संरक्षण ही है. हमारी नीतियां पर्यावरण के अनुकूल बनें, इसके लिए प्रबुद्ध लोगों को हस्तक्षेप करना होगा. बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में तालाबों का संरक्षण करना बेहद जरूरी है.
स्कूलों में पर्यावरण और जल संरक्षण की जानकारी बच्चों को देनी होगी. जल स्रोतों के पुनरुद्धार के लिए एक कार्य योजना बना कर उस पर अमल करना होगा. राज्य और केंद्र स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के लिए कई नीतियां और कानून हैं, लेकिन नीतियों का पालन सही ढंग से हो, इसके लिए दबाव बनाना होगा. हम सभी को जल संचय का संकल्प लेना होगा, वरना यह आपदा का रूप ले लेगा.