शाकाहारी आदिवासी हैं कर्नाटक के बेडगंपना

आदिवासियों का इतिहास प्रमुख रूप से मौखिक है और अधिकांश मामलों में उनका दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है. यह बात बेडगंपना पर भी लागू होती है.

By Prof. TV Kattimani | June 26, 2024 10:29 AM

कर्नाटक के चामराजनगर जिले के हनूर तालुका का मले महादेश्वर पहाड़ी क्षेत्र अपने जीवंत सांस्कृतिक परिदृश्य से समृद्ध है. इसके केंद्र में दो आदिवासी समुदाय हैं- बेडगंपना और सोलिगा. सोलिगा को अनुसूचित जनजाति के रूप में पहचाना जाता है, पर उनके करीबी पड़ोसी बेडगंपना अभी भी अपनी पहचान के लिए संघर्ष कर रहे हैं. विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार कर्नाटक के चामराजनगर जिले में लगभग 31,500 बेडगंपना रहते हैं और कुछ तमिलनाडु के सीमावर्ती इलाकों में भी हैं. राज्य सरकार की सामाजिक श्रेणी की सूची में बेडगंपना नहीं है. इस आदिवासी समुदाय को वीरशैव लिंगायत के साथ विलीन किया गया है, जिसे राज्य की पिछड़ी समुदाय सूची में रखा गया है. शब्द ‘बेड’ शिकारी को संदर्भित करता है, जबकि ‘गम’ समूह और ‘पना’ जाति को इंगित करता है. इस प्रकार ‘बेडगंपना’ का अर्थ है ‘शिकार करने वाला जाति समूह’. बेडा, बेडार या बेदारा जैसे समान आदिवासी समूहों को जनजातियों के रूप में सूचीबद्ध किया गया है. पर बेडगंपना किसी जाति या जनजाति की सूची में नहीं है. आदिवासियों का इतिहास प्रमुख रूप से मौखिक है और अधिकांश मामलों में उनका दस्तावेजीकरण नहीं किया गया है. यह बात बेडगंपना पर भी लागू होती है.

बेडगंपना से जुड़ी एक प्रमुख मौखिक कहानी बेडर कणप्पा नामक शिकारी से जुड़ी है, जिसे अर्जुन का पुनर्जन्म कहा जाता है. महाभारत में उल्लेख है कि अर्जुन की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें पाशुपात अस्त्र प्रदान किया. उन्होंने उन्हें कलियुग में बेडर कणप्पा नामक एक शिकारी के रूप में पुनर्जन्म लेने का आशीर्वाद भी दिया, जिसे बेडगंपना का पूर्वज कहा जाता है. शैव भक्त शिकारी बेडर कणप्पा का मंदिर आंध्र प्रदेश के श्रीकालहस्ती में स्थित है. इस संदर्भ में यह महत्वपूर्ण है कि इतिहास के अनुसार लगभग 600 वर्ष पूर्व बेडगंपना के पूर्वज श्रीकालहस्ती में रहते थे, जो बाद में एक शाही विवाह के कारण कर्नाटक चले गये. माना जाता है कि 14वीं शताब्दी में मले महादेश्वर स्वामी, जिन्हें महादेश्वर बेट्टा की सात पहाड़ियों का रक्षक कहा जाता है, लोगों को अकाल से बचाने के लिए इस स्थान पर पहुंचे. उनके दो भक्त थे, जो भाई थे- करय्या और बिलय्या. जहां करय्या को सोलिगा का महान पूर्वज कहा जाता है, उसी तरह बिलय्या बेडगंपना के पूर्वज माने जाते हैं. मले महादेश्वर स्वामी ने उन्हें शिकार छोड़ने की सलाह दी. बिलय्या का परिवार इस पर सहमत हो गया, लेकिन चूंकि यह क्षेत्र मुख्यतः पहाड़ी है और कृषि करना कठिन है, इसलिए करय्या के परिवार ने शिकार को अपना मुख्य व्यवसाय बनाये रखने का फैसला किया. इस कारण सोलिगा और बेडगंपना के बीच कोई विवाह संबंध नहीं है. बेडगंपना ने खुद को ‘बेडगंपना लिंगायत’ के रूप में संदर्भित किया, जिसे हमेशा ‘वीरशैव लिंगायत’ के साथ मिला दिया जाता है.

बेडगंपना मुख्य रूप से तीन विशेष कारणों से जनजाति होने का अधिकार खो देते हैं- उनके बीच कोई सामाजिक-धार्मिक/सांस्कृतिक असमानता/अस्पृश्यता नहीं देखी जाती है, जनजाति होने के नाते वे शाकाहारी नहीं हो सकते हैं और वे शिवलिंग पहनते हैं एवं लिंगायतों के रीति-रिवाजों का पालन करते हैं. शाकाहारी होने और शिवलिंग पहनने के कारणों की पहले चर्चा की गयी है. असमानता या अस्पृश्यता का पालन जनजातियों को संदर्भित करने का मानदंड नहीं है. देश के किसी भी आदिवासी समुदाय में अस्पृश्यता नहीं है. अस्पृश्यता का मामला अनुसूचित जातियों से संबंधित है. यद्यपि संविधान में जनजातियों की कोई विशेष परिभाषा नहीं है, पर अनुच्छेद 342 अनुसूचित जनजातियों यानी ‘बहिष्कृत’ और ‘आंशिक रूप से बहिष्कृत’ क्षेत्रों में रहने वाली ‘पिछड़ी जनजातियों’ को समझने के लिए 1931 की जनगणना को आधार के रूप में स्वीकार करता है. इसके अलावा, उन्हें पहली बार प्रांतीय विधानसभाओं में भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत प्रतिनिधित्व दिया गया था. स्वतंत्रता के बाद जस्टिस लोकुर समिति (1965) ने आदिम लक्षणों, विशिष्ट संस्कृति, भौगोलिक अलगाव, बड़े पैमाने पर समुदाय के साथ संपर्क में आने की हिचकिचाहट और पिछड़ेपन के आधार पर जनजातियों की पहचान के लिए पांच मानदंड स्थापित किये हैं.

बेडगंपना इन सभी मानदंडों के अंतर्गत आते हैं. वे अन्य प्रकृति पूजा करने वाली जनजातियों की तरह प्रकृति की पूजा करते हैं. बेडगंपना की एक प्रमुख बीमारी एनीमिया है. भारत में एनीमिया की समस्या खासकर सिकल सेल एनीमिया, थैलेसीमिया मुख्य रूप से आदिवासी क्षेत्रों में पायी जाती है. वन अधिनियमों के कारण भूमि स्थानांतरण जैसे मुद्दों का भी बेडगंपना ने सामना किया है. इस समुदाय ने इस तथ्य को भी स्पष्ट कर दिया है कि उनका वीरशैव लिंगायत से कोई संबंध नहीं है. वे विभिन्न सरकारी योजनाओं से भी वंचित है. बेडगंपना जैसी कई गैर-मान्यता प्राप्त जनजातियां हैं. इन कमजोर समुदायों को विनाश और सांस्कृतिक विलुप्ति के रास्ते से बाहर निकालने का समय आ गया है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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