हर बालिका को मिले बेहतर भविष्य
अष्टम उरांव, सुमति कुमारी, सलीमा टेटे और निक्की प्रधान जैसी लड़कियां इस बात की गवाह हैं कि चीजें धीरे-धीरे ही सही पर निश्चित रूप से बदल रही हैं.
वर्षों के पूर्वाग्रह और अधीनता की बेड़ियों को तोड़कर लड़कियां वर्ष 2023 में अपने लिए एक नये मानक और उंचाईयां तय कर रही हैं. वे हर क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रही हैं और रूढ़ियों को तोड़ कर उच्च पदों पर आसीन हो रही हैं. वे सामाजिक परिस्थितियों से पैदा हुई हर बाधाओं को चुनौती देकर उन्हें हरा रही हैं और खेल, पत्रकारिता, उद्यमिता, कला, वित्त, राजनीति, नौकरशाही समेत सभी क्षेत्रें में सफलता का परचम लहरा रही हैं.
अष्टम उरांव, सुमति कुमारी, सलीमा टेटे और निक्की प्रधान जैसी लड़कियां इस बात की गवाह हैं कि चीजें धीरे-धीरे ही सही पर निश्चित रूप से बदल रही हैं. उन्होंंने बार-बार यह प्रदर्शित किया है कि, यदि उन्हें उचित कौशल व अवसर मिले, तो वे अपने समुदायों में परिवर्तन के वाहक बन सकती हैं और महिलाओं, लड़कों और पुरुषों सहित सभी की प्रगति और भलाई में अपनी भूमिका का निर्वहन कर सकती हैं.
लड़कियों की प्रगति के लिए जो लक्ष्य हासिल किये गये हैं, वह सरकारों, नीति निर्माताओं, संयुक्त राष्ट्र और नागरिक समाज संगठनों के ठोस प्रयासों का ही परिणाम है. एनएफएचएस–5 के आंकड़े के अनुसार, छ: साल और उससे अधिक उम्र की स्कूल जाने वाली लड़कियों के अनुपात में बढ़ोतरी हुई है. 2015-16 में यह आंंकड़ा 68.8 प्रतिशत था, जो कि 2019-21 में बढ़कर 71.8 प्रतिशत हो गया है.
नये राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण-2021 के अनुसार, ग्रेड 3 और 5 में लड़कों एवं लड़कियों के बीच सीखने के स्तर में किसी प्रकार का लैंगिक अंतर नहीं पाया गया हैै, लेकिन ग्रेड 8 और 10 में लड़कों की दक्षता बेहतर पायी गयी है. शैक्षिक सहयोग की कमी और घर के कामों में लड़कियों की व्यस्तता उनकी शिक्षा पर भी बुरा असर डालती है, खासकर गरीब सामाजिक आर्थिक परिवेश से आने वाली लड़कियां इसके कारण अधिक प्रभावित होती हैं.
प्रधान मंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद, एम्स, भारतीय सांख्यिकी संस्थान और हार्वर्ड विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक संयुक्त अध्ययन के अनुसार, लड़कियों के खिलाफ लैंगिक भेदभाव का असर न केवल उनको मिलने वाले असमान अवसरों में झलकता है, बल्कि इसका नकारात्मक असर उनके स्वास्थ्य पर भी पड़ता है.
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, लड़कियां अभी भी समाज के सबसे कमजोर वर्गों में से एक हैं, जिनके खिलाफ हिंसा और दुर्व्यवहार की सबसे अधिक घटनाएं होती हैं. 2020 में यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण अधिनियम के तहत 99 प्रतिशत से अधिक मामले, लड़कियों के खिलाफ होने वाले अपराधों में दर्ज किये गये हैं. दिव्यांग लड़कियों को सहायता और सरकार द्वारा प्रदत्त सेवाओं और सुविधाओं को प्राप्त करने में भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है.
यह महत्वपूर्ण है कि लड़कियों के खिलाफ हिंसा, भेदभाव, रूढ़ियों तथा आर्थिक असमानताओं को जो लड़कियों के जीवन को गहरे तक प्रभावित करते हैं, उनको सामूहिक प्रयासों से समाप्त किया जाए. जेंडर-उत्तरदायी पाठ्यक्रम को लागू करना भी आवश्यक है जो कि जेंडर-समावेशी समाज के निर्माण में सहायक होगा.
हमें बदलाव की प्रक्रिया में लड़कियों एवं किशोरियों को आगे रखना होगा और ऐसा हम तभी कर सकते हैं, जब हम उनकी आवाजों को सुनकर, तथा उनके अनुरोधों का समाधान करके, निर्णय लेने की प्रक्रिया में उन्हें शामिल करें. परिवार के सदस्यों, शिक्षकों, प्रशिक्षकों, संरक्षकों और समुदाय के नेताओं– सभी को अपनी जिम्मेवारी का निर्वहन करना होगा.
हमें बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ जैसी योजनाओं की पहुंच और उपयोग में सुधार के लिए भी कार्य किए जाने की आवश्यकता है, जो लिंग आधारित गर्भपात को रोकने तथा किशोरियों के कल्याण के लिए एक समावेशी योजना के रूप में शुरू की गयी थी. लैंगिक कानूनों के बारे में जानकारियों से लैस एक उत्तरदायी, कुशल और जागरूक कानूनी प्रणाली को विकसित करना होगा, जो कि लड़कियों एवं महिलाओं की सुरक्षा, भलाई तथा उनके अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए कार्य करे.
झारखंड सरकार ने बालिकाओं एवं लड़कियों के सशक्तिकरण के लिए हाल ही में सावित्री बाई फुले किशोरी समृद्धि योजना की शुरूआत की है. इसका उद्देश्य 18 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद बालिकाओं के लिए 40,000 रुपये की नकद सहायता प्रदान करना और लड़कियों की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा को प्रोत्साहित करना है.
यह हमारे लिए जिम्मेदारी लेने का समय है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी लड़कियों को एक बेहतर भविष्य और अवसर मिले. हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि हमारी लड़कियां एक सुरक्षित और स्वस्थ वातावरण में पले-बढ़ें और उनका समुचित तरीके से विकास हो. आइए, हम सब मिलकर हर बालिका के लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण करने हेतु प्रण लें.