भेदभाव से परे
प्रधानमंत्री ने अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए आत्मनिर्भरता का सूत्र दिया है. इसकी सफलता के लिए भिन्नताओं और मतभेदों से ऊपर उठ कर कार्यरत होना होगा.
विविधता में एकता- हमारे देश के बारे में हमेशा से यह कहा जाता रहा है. यह उक्ति सटीक भी है और संदेश भी. विभिन्न पहचानों, आस्थाओं, मान्यताओं और भाषाओं का ऐसा बाहुल्य विश्व के किसी भी अन्य देश में नहीं है. इस बहुलता में राष्ट्रीय एकता, अखंडता एवं विकास को सुनिश्चित करना ही सरकार, समाज और नागरिक का कर्तव्य है. यह हमारे संस्कार में भी निर्दिष्ट है और संविधान में भी इसकी संकल्पना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार फिर यह आश्वासन दिया है कि सरकार आस्था, लिंग, जाति, पहचान और भाषा के आधार पर किसी नागरिक या समुदाय के साथ भेदभाव नहीं करती है. प्रारंभ से ही प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के लिए ‘सबका साथ, सबका विकास’ का आदर्श निर्धारित किया है. वे अक्सर अपने संबोधनों में समूचे देशवासियों की जनसंख्या का उल्लेख करते हैं.
हम जानते हैं कि जिन देशों या समाजों में पहचान आधारित भेदभाव या दमन है, वहां हिंसा और वंचना व्याप्त है. किसी भी लोकतांत्रिक समाज में यदि सरकार या प्रशासनिक विभाग नागरिकों के बीच समानता के सिद्धांत के अनुसार व्यवहार नहीं करेंगे, वहां अविश्वास का वातावरण बनना स्वाभाविक है और इससे शांति एवं समृद्धि के लक्ष्यों की प्राप्ति बाधित हो जाती है. यदि हम वर्तमान सरकार की नीतियों और कार्यक्रमों को देखें, तो स्पष्ट पता चलता है कि उनका उद्देश्य देश का सर्वांगीण विकास है, न कि कुछ वर्ग-विशेष को लाभ पहुंचाना.
इसके हालिया उदाहरण कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव के उपायों तथा अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के प्रयासों के रूप में हमारे सामने हैं. इस वायरस ने अपने संक्रमण का शिकार बनाते समय लोगों की सामाजिक, क्षेत्रीय या आर्थिक पृष्ठभूमि का ध्यान नहीं रखा है. इसलिए उससे बचने या संक्रमण का उपचार में कोई अन्य आधार नहीं हो सकता है, सिवाय इसके कि संक्रमण की रोकथाम हो और बीमार को स्वास्थ्य लाभ मिले.
लॉकडाउन से कारोबार और रोजगार का बड़ा नुकसान हुआ है तथा इसका असर कश्मीर से कन्याकुमारी तक है. देश को फिर से आर्थिक विकास की राह पर तेजी से अग्रसर करने के लिए सभी देशवासियों को समान रूप से सहयोग देना है. सरकार भी ऐसा ही कर रही है और लोगों की सक्रियता भी गति पकड़ रही है. प्रधानमंत्री ने बदलते वैश्विक परिदृश्य में अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए आत्मनिर्भरता का सूत्र दिया है.
इसके तहत हमें देश के भीतर हर तरह की वस्तुओं का उत्पादन भी बढ़ाना है तथा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति भी स्थानीय उत्पादन से करने का प्रयास करना है. इस संकल्प की सफलता के लिए तमाम भिन्नताओं और मतभेदों से ऊपर उठकर समूची राष्ट्रशक्ति को कार्यरत होना होगा. ऐसे में सरकार भी सभी के लिए समान अवसर और सहयोग की उपलब्धता सुनिश्चित करने की कोशिश में जुटी हुई है, जिसका एक भाग बीस लाख करोड़ रुपये का राहत पैकेज है.