Bhopal Gas Tragedy : भोपाल गैस त्रासदी के 40 साल बाद यूनियन कार्बाइड के बंद पड़े कारखाने से करीब 377 टन खतरनाक कचरे को डंप करने के लिए ले जाया गया है, तो निश्चित रूप से यह एक उल्लेखनीय घटना है. बारह सीलबंद कंटेनर ट्रकों में यूनियन कार्बाइड का कचरा भोपाल से 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर औद्योगिक क्षेत्र में ले जाया गया और बताया यह जा रहा है कि अगर सब कुछ ठीक रहा, तो तीन महीने के भीतर कचरे को जला दिया जाएगा. अन्यथा कचरे के निस्तारण में लगभग नौ महीने का समय लग सकता है.
दरअसल मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने तीन दिसंबर को जहरीले कचरे को स्थानांतरित करने के लिए चार सप्ताह की समय सीमा तय की थी. उसने यूनियन कार्बाइड को खाली न करने के लिए अधिकारियों के प्रति नाखुशी जाहिर करते हुए कहा था कि यह उदासीनता एक और त्रासदी का कारण बन सकती है. सवाल यह है कि अगर अदालत ने नाखुशी नहीं जतायी होती, तो क्या अब भी उस अभिशप्त और बंद पड़े कारखाने से कचरा हटाने के बारे में क्या सचमुच सोचा भी जाता. दो-तीन दिसंबर, 1984 की रात यूनियन कार्बाइड से मिथाइल आइसोसायनाइड गैस लीक हुई थी, जिसमें कम से कम 5,479 लोग मारे गये थे और हजारों लोग मारे गये थे.
आज भी हजारों लोग उस त्रासदी का दुष्प्रभाव अपने शरीर पर झेल रहे हैं. भोपाल गैस त्रासदी को विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदियों में से एक माना जाता है. जो लोग उस त्रासदी के गवाह हैं, वे बताते हैं कि रात को गैस के रिसाव से भोपाल और उसके आसपास से लोग जान बचाने के लिए किस तरह भाग रहे थे. अपने लोगों को खोने के बाद त्रासदी से पीड़ित लोगों के संगठन बने और इन संगठनों ने न्याय की लड़ाई शुरू की, जो उसकी तार्किक परिणति तक नहीं पहुंच पायी. इस त्रासदी के लिए जिम्मेदार विदेशी कंपनी के रसूखदार कर्ता-धर्ता को देश से बाहर जाने दिया गया.
भोपाल गैस त्रासदी अगर एक झकझोर देने वाली त्रासदी थी, तो उसके जहरीले कचरों को हटाने में चार दशक लग जाना उतनी ही बड़ी उदासीनता का प्रमाण है. हालांकि जहरीले कचरे को पीथमपुर ले जाने का भी विरोध हो रहा है. ‘पीथमपुर बचाओ समिति’ राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आज धरना-प्रदर्शन करने जा रही है. जाहिर है, नयी जगह में जहरीले कचरे का निस्तारण अगर ढंग से नहीं हुआ, तो इससे यह साबित होगा कि भोपाल त्रासदी के चार दशक बाद भी हमने कोई सबक नहीं सीखा.