भूटान का ऐतिहासिक आर्थिक निर्णय
इस परियोजना का आधार तब तैयार हुआ था, जब हाल में भूटान के नरेश भारत के दौरे पर आये थे. उस समय भारत और भूटान के बीच एक रेल नेटवर्क बनाने का समझौता हुआ था. अपने संबोधन में भी भूटान नरेश ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार को धन्यवाद दिया है.
इतिहास को देखें, तो भूटान बाहरी दुनिया से सीमित संपर्क रखने की नीति पर चलता रहा है. उसने अपने यहां अंतरराष्ट्रीय पर्यटन को बढ़ावा देने और औद्योगिक विकास की ओर अग्रसर होने में भी दिलचस्पी नहीं दिखायी है, लेकिन अब इस स्थिति में आमूल-चूल परिवर्तन होने जा रहा है. भूटान के राष्ट्रीय दिवस के अवसर पर नरेश जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने एक हजार वर्ग किलोमीटर में एक विशाल हरित शहर बनाने की घोषणा की है, जिसके नियम-कानून भी अलग होंगे. भारत के असम से सटे इलाके में प्रस्तावित इस स्मार्ट सिटी के विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय निवेशकों और कंपनियों को आमंत्रित किया जायेगा. भूटान के राजा ने उचित ही रेखांकित किया है कि यह विशाल परियोजना भूटान और दक्षिण एशिया में बड़े बदलाव का माध्यम बनेगी तथा इसके जरिये दक्षिण एशिया का जुड़ाव दक्षिण-पूर्व एशिया से हो जायेगा. क्षेत्रीयता की दृष्टि से देखें, तो यह विस्तृत शहर भूटान, दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के साथ-साथ भारत के पूर्वोत्तर के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा. सीमित संपर्क और अर्थव्यवस्था के देश भूटान के लिए यह बड़ी नीतिगत छलांग है तथा अब वह उदारीकरण एवं व्यापक अंतरराष्ट्रीय सहयोग के दौर में प्रवेश कर रहा है.
इस परियोजना का आधार तब तैयार हुआ था, जब हाल में भूटान के नरेश भारत के दौरे पर आये थे. उस समय भारत और भूटान के बीच एक रेल नेटवर्क बनाने का समझौता हुआ था. अपने संबोधन में भी भूटान नरेश ने इसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारत सरकार को धन्यवाद दिया है. यह रेल नेटवर्क भूटान के गेलेफु को भारत के असम और पश्चिम बंगाल से जोड़ेगा. इससे सड़क मार्ग और सीमा कारोबारी चौकी भी जुड़े होंगे. भूटान इससे म्यांमार, थाइलैंड, कंबोडिया और सिंगापुर से जुड़ जायेगा. भूटान इस परियोजना को लेकर सही ही उत्साहित है. वहां के नरेश ने कहा है कि मार्गों से बाजारों, पूंजी, नये विचारों एवं तकनीक, भविष्य और भाग्य के नये अवसरों के द्वार खुलेंगे. विश्व बैंक ने कहा है कि भूटान अब सबसे कम विकसित देशों की श्रेणी से ऊपर उठ चुका है, लेकिन अभी भी वहां बेरोजगारी दर बीस फीसदी के आसपास है और हाल के समय में सकल घरेलू उत्पाद में कमी आयी है. पर्यटन भी कम हुआ है. ऐसे में यह परियोजना भूटान का कायाकल्प करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है.
लंबे समय से यह कहा जा रहा है कि दक्षिण एशिया को अपने पड़ोसी क्षेत्रों- मध्य एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया- से संपर्क और सहकार बढ़ाना चाहिए. मध्य एशिया में तेल और गैस का भंडार है, जो दक्षिण एशिया की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने में मददगार हो सकता है. दक्षिण-पूर्व एशिया ने हाल के दशकों में शानदार विकास किया है तथा वहां संसाधन भी हैं. उस बाजार से जुड़ना दक्षिण एशिया के लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है. दक्षिण एशिया विश्व का सबसे युवा क्षेत्र है. यहां स्थित देशों के सामने आर्थिक चुनौतियां हैं. इस स्थिति में भूटान की परियोजना वह पुल बन सकती है, जो दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व एशिया के आपसी सहयोग को बड़ा आधार दे. भारत के लिए भी यह लाभदायक परियोजना है. भारत भी दक्षिण-पूर्व एशिया से जुड़ना चाहता है और इसके लिए ‘लुक ईस्ट’ और ‘एक्ट ईस्ट’ की समझ के साथ प्रयासरत है. हालांकि कुछ वर्षों से पूर्वोत्तर का संतोषजनक विकास हुआ है, पर वहां के राज्यों की आकांक्षा और आवश्यकता की दृष्टि से अपर्याप्त है. भूटान और दक्षिण-पूर्व के देशों के बीच भारत से होते हुए जो संपर्क और सहयोग स्थापित होगा, उसका सीधा लाभ उत्तर-पूर्वी राज्यों और पश्चिम बंगाल को होगा. इस प्रकार एक हजार वर्ग किलोमीटर का यह प्रस्तावित हरित शहर समूचे क्षेत्र को पिछड़ेपन से निकालने का बड़ा आधार बन सकता है.
एक ओर भूटान भारत के सहयोग से इंफ्रास्ट्रक्चर और कनेक्टिविटी के विस्तार से अपनी आर्थिक नीति में बड़े बदलाव की ओर बढ़ रहा है, वहीं वह एक और बड़े पड़ोसी देश चीन के साथ सीमा विवाद का समाधान कर कूटनीतिक और आर्थिक सहकार के लिए प्रयासरत है. यह भी एक बड़ा बदलाव है. ऐतिहासिक रूप से भूटान का बाहरी संबंध मुख्य रूप से भारत से ही था. अभी डेढ़ दशक पहले तक दोनों देशों के बीच समझौता था कि भूटान की विदेश नीति के बारे में निर्णय भारत करेगा. अब संकेत स्पष्ट हैं कि भूटान विकास के लिए प्रयासरत है और इसके लिए भारत और चीन दोनों का सहयोग लेना चाहता है. इससे भूटान अपने दो विशाल पड़ोसियों के बीच संतुलन भी स्थापित कर सकता है. यह न केवल भूटान के हित में है, बल्कि उस क्षेत्र की शांति, सुरक्षा और स्थिरता के लिए भी वांछनीय है. यह अलग चर्चा का विषय है कि इस हरित शहर परियोजना में चीन की भूमिका क्या होगी और दक्षिण एशिया और दक्षिण-पूर्व के बीच की संभावित कनेक्टिविटी को लेकर उसका रवैया क्या होगा. लेकिन इतना कहा जा सकता है कि दोनों क्षेत्रों में अपने हितों को देखते हुए चीन इस पहल में कोई नकारात्मक हस्तक्षेप नहीं करेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.