प्रीतम बनर्जी, अंतरराष्ट्रीय व्यापार विशेषज्ञ
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हमारी अर्थव्यवस्था का लगभग 60 फीसदी असंगठित क्षेत्र पर ही निर्भर है और इसी में सबसे अधिक रोजगार भी है. सरकार द्वारा छोटे और मध्यम उद्यमों को प्राथमिकता सराहनीय है.
वर्तमान संकट बहुत ही गंभीर है क्योंकि यह विश्वव्यापी है. हमारी घरेलू अर्थव्यवस्था की स्थिति पहले से ही खराब थी. कोरोना महामारी की समस्या ने उसे और भी खराब हालत में पहुंचा दिया है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बाजार मुश्किल है, सो इससे हमारा निर्यात प्रभावित होगा क्योंकि वैश्विक मांग लगातार कमजोर हो रही है. यह स्थिति आनेवाले दिनों में बदतर ही होगी. रोजगार का संकट भी बढ़ता जा रहा है और लोग या औसत परिवार जो खर्च करते थे, अब वे भी बहुत संभालकर खर्च करेंगे. ऐसे में मांग का स्तर कम ही होता जायेगा, जिसका सीधा असर अर्थव्यवस्था पर होगा.
जब भी मांग में कमी आती है और अर्थव्यवस्था कमजोर होती है, तो यही अपेक्षा की जाती है और यही उपाय होता है कि सरकार की ओर से अपने खर्च में बढ़ोतरी की जाती है. इससे बाजार को संभालने में मदद मिलती है. यही पहल सरकार कर रही है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा और वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा दिये पहले विवरण में अभिव्यक्त हुआ है. जब 2008 में वैश्विक वित्तीय संकट आया था, तब भी दुनियाभर की सरकारों की ऐसी ही प्रतिक्रिया थी. पर आज का संकट हर मायने में उस स्थिति की तुलना में बहुत अधिक विकराल है क्योंकि इसका असर अर्थव्यवस्था के हर क्षेत्र पर पड़ा है. प्रधानमंत्री मोदी ने जो बीस लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज की घोषणा की है, उसकी बहुत आवश्यकता थी.
वित्त मंत्री ने इस पैकेज के कुछ अहम बिंदुओं के बारे में बताया है और आगामी दिनों में इसका पूरा ब्यौरा हमारे सामने आ जायेगा. छोटे और मझोले उद्यमों के लिए तीन लाख करोड़ रुपये के कर्ज का प्रावधान बहुत बड़ा कदम है और इसके लिए उद्यमियों को कोई गारंटी नहीं देनी पड़ेगी तथा इसका जिम्मा पूरी तरह से भारत सरकार लेगी. इसके अलावा परेशानियों से घिरे ऐसे उद्यमों के लिए वित्त उपलब्ध कराया गया है.
इस क्षेत्र में क्षमता बढ़ाने के लिए भी दस हजार करोड़ का कोष बनाया गया है. छोटे और मझोले उद्यमों को लेकर सरकार की यह प्राथमिकता बहुत महत्वपूर्ण है. इस बारे में और अन्य छोटे-बड़े उद्योगों के लिए वित्त मुहैया कराने के बारे में जल्दी ही जानकारी मिल जायेगी. यह बहुत जरूरी है कि कारोबार को संभालने के लिए बाजार से महंगी दर पर कर्ज लेने की मजबूरी न हो और सरकार की ओर से कम ब्याज दर पर पैसा मिल सके ताकि वे अगले छह-सात महीने अपनी जरूरतों को पूरी कर सकें.
यह भी देखना है कि सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर में कितना निवेश करने का मन बना रही है. मांग बढ़ाने के लिए यह निवेश जरूरी है क्योंकि परियोजनाओं में बहुत सारी चीजों की जरूरत होती है. धीरे-धीरे जब पूरा विवरण हमारे सामने होगा, तो यह कहा जा सकेगा कि पैकेज कितना अच्छा है, पर अभी तक यह कहा जा सकता है कि सरकार ने सही दिशा में सही कदम उठाया है. इससे पहले जो पैकेज दिया गया था, वह फौरी राहत के लिए था. उससे और रिजर्व बैंक द्वारा की गयी पहलों से समस्याओं का समुचित समाधान कर पाना संभव नहीं था, हालांकि वे सभी उपाय मौके के हिसाब से उचित रहे हैं.
रिजर्व बैंक के उपाय ज्यादातर बैंकिंग सेक्टर में राहत देने से संबंधित है. व्यक्तिगत या कंपनियों के कर्ज को चुकाने या नगदी मुहैया कराने में हो रही परेशानियों के तात्कालिक समाधान के उद्देश्य से वे कदम उठाये गये हैं. कोरोना संकट का असर कई स्तरों पर है. छोटे और मझोले उद्यमों में कार्यरत कामगार संगठित या औपचारिक क्षेत्र के हिस्से नहीं होते हैं. इस सेक्टर का कारोबार बहुत हद तक नगदी के लेन-देन पर निर्भर करता है. जब भी कोई आर्थिक संकट आता है, छोटे और मझोले उपक्रम तुरंत मुश्किलों से घिर जाते हैं.
इन्हें बैंकों, बाजारों और अन्य वित्तीय संस्थानों से कर्ज लेने में भी बहुत परेशानी होती है, जबकि संगठित उद्योग आसानी से जरूरत की नगदी जुटा लेते हैं क्योंकि उनके पास गारंटी के रूप में परिसंपत्तियां होती हैं. हमारी अर्थव्यवस्था का लगभग 60 फीसदी असंगठित क्षेत्र पर ही निर्भर है और इसी क्षेत्र में सबसे अधिक रोजगार भी मिलता है. इसलिए ऐसे उद्यमों को संभालने के बिना अर्थव्यवस्था को ठीक नहीं किया जा सकता है. ऐसे में आत्मनिर्भर भारत अभियान में छोटे और मध्यम उद्यमों को प्राथमिकता देना बहुत सराहनीय निर्णय है. उम्मीद है कि आगामी घोषणाओं में और अनेक उपायों की जानकारी दी जायेगी.
प्रधानमंत्री मोदी ने अपने संबोधन में एक अहम बात यह कही है कि हमें आत्मनिर्भर होना है. अब सरकार का ध्यान स्थानीय उद्योगों और मेक इन इंडिया पर अधिक होगा. चीन जैसे देशों में, जो बड़े मैनुफैक्चरिंग हब बने हैं और जहां से हम भी बहुत सारा सामान आयात करते हैं, छोटे और मझोले उद्यम ही आधार हैं. हमारे सामने एक चुनौती सप्लाई चेन को लेकर है, जिस पर मौजूदा संकट का बड़ा असर पड़ा है. उदाहरण के लिए कृषि क्षेत्र को लें. उसकी ऊपज और पैकेज्ड फूड बनाने तक की प्रक्रिया को फिर से बहाल करने पर जोर देना होगा. हमें यह भी समझना चाहिए कि बड़े उद्योगों का सप्लाई चेन भी काफी हद तक छोटे व मझोले उद्यमों पर निर्भर करता है. जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा है कि बीस लाख करोड़ रुपये का यह पैकेज कई स्तरों पर अर्थव्यवस्था और आर्थिक गतिविधियों को सुचारू रूप से गतिशील करने के उद्देश्य से लाया गया है. यही आज की जरूरत है.
कई उत्पादों के लिए भारत समेत दुनियाभर की बहुत अधिक निर्भरता चीन के ऊपर अब तक थी. कोरोना संकट ने यह अहसास दिला दिया है कि अगर आप एक ही जगह निर्भर रहेंगे, तो किसी आपदा की स्थिति में आपके उद्योग और कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो सकते हैं. इसलिए उत्पादन को कई देशों में विकेंद्रित करने की दिशा में सोचना पड़ेगा. ऐसे में जापान, यूरोप और अमेरिका जैसे क्षेत्रों से भारत में निवेश की संभावनाएं बढ़ गयी हैं. यह भारत के लिए एक अवसर है, जिसका संकेत प्रधानमंत्री ने किया है. अभी तक दुनिया में मुक्त व्यापार की व्यवस्था रही है, अब कुछ हद तक स्थानीय स्तर पर उत्पादन का अवसर है और इसका लाभ उठाया जाना चाहिए. विदेश से आयात पर निर्भरता में कमी करने की दिशा में पहल जरूरी है और इसका कुछ इशारा प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री के संबोधनों में है. अब मामला इन फैसलों को सही तरह से अमल में लाने की है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)