आवश्यक है जैव विविधता की सुरक्षा

आज की सबसे बड़ी चुनौती परिस्थिति तंत्र को समझने व समझाने की है. मात्र विकास को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि सरकारों से यह हमारी पहली मांग होती है.

By डॉ अनिल प्रकाश जोशी | May 23, 2022 8:07 AM
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जैव विविधता को समझने का भी अब समय आ गया है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाये जानेवाले जैव विविधता दिवस के पीछे सबसे बड़ा और मुख्य उद्देश्य यही है कि अन्य जीवों को भी बराबर का दर्जा मिले क्योंकि उनके योगदान हर स्तर पर मनुष्य से ज्यादा हैं. इस दिवस के संदर्भ में सबसे महत्वपूर्ण बात जो लगातार सभी तरह की जैव विविधताओं के अध्ययन से निकल कर आती है, वह यह है कि पिछले करीब सौ वर्षों में हमने लगातार इनके पर्यावास को क्षति पहुंचायी है.

मनुष्य ने अपने घर व विलासिता के लिए दूसरों के घरों को उजाड़ा है और उनमें पशु-पक्षी और पेड़-पौधों की प्रजातियां शामिल हैं. माना जा रहा है कि विश्व में करीब एक लाख प्रजातियां विलुप्ति के खतरे में हैं और अन्य दस लाख प्रजातियां किसी न किसी संकट में हैं. यह गिनती तो सब संभव हुई, जब हमें मात्र एक-चौथाई प्रजातियों का ही पता है. ऐसे में यह गिनती यह बड़ा संकेत देती है कि जिन प्रजातियों की पहचान है और अगर वे संकट में हैं, तो जिनको हम आज तक जाने भी नहीं, उनकी स्थिति क्या होगी.

वे अतिसंवेदनशील पर्यावरण और पारिस्थितिकी में रहती होंगी और यही कारण है कि वहां तक मनुष्य की पहुंच नहीं होगी. जिस तरह प्रकृति में बड़े बदलाव आये हैं, खासतौर से क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के कारणों से, ऐसे में विश्वभर की प्रजातियों को कितनी क्षति पहुंची होगी, इसका शायद ही कोई आंकड़ा हमारे पास हो.

पांच मई को प्रकाशित स्टेट ऑफ बर्ड्स रिपोर्ट में चिड़ियों के हालात का खुलासा किया गया है. इस अध्ययन के आधार पर यह स्पष्ट हुआ है कि दुनियाभर में लगभग 48 फीसदी प्रजातियों की जनसंख्या में बड़ी गिरावट हुई है. लगभग 40 प्रतिशत ऐसी प्रजातियां हैं, जो फिर भी कहीं स्थिर हैं तथा सात प्रतिशत की स्थिति में सुधार हुआ है. यह सब कुछ 11 हजार पशु-पक्षियों की गिनती के आधार पर पाया गया. अध्ययन में यह सामने आया है कि इसका मुख्य कारण यही है कि हमने इनके पर्यावास को क्षति पहुंचायी है और आज का वातावरण इनके पक्ष में नही है.

इस अध्ययन का मानना है कि पक्षियों को बचाने के लिए बहुत बड़े परिवर्तन की आवश्यकता है, जो हमारे व्यवहार से लेकर प्रकृति में होनेवाले परिवर्तनों से जुड़ा हुआ है. हमारे देश में करीब 80 प्रतिशत चिड़ियों की प्रजातियों की संख्या में 50 फीसदी की गिरावट आयी है और इसमें से 50 प्रतिशत प्रजातियां संकट में है. लगभग 30 प्रतिशत ऐसी प्रजातियां मानी गयी हैं, जिनमें बड़ा असर नहीं दिखा.

ऐसे हालात में पक्षियों के प्रति गंभीरता का इसलिए भी महत्व बन जाता है कि इनका पारिस्थितिकी में बहुत बड़ा योगदान होता है. दुर्भाग्य की बात यह है कि हमारे पास अंतरराष्ट्रीय स्तर की कोई रिपोर्ट मौजूद नहीं है, जो यह भी दर्शा सके कि पारिस्थितिकी तंत्र में पक्षियों की क्या भूमिका है और इनके कम होने के क्या प्रतिकूल असर होंगे.

सबसे बड़ा सच यह है कि जैव विविधता का बड़ा संकट मनुष्य को ही झेलना पड़ेगा. प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए कई तरह के मुहिम चल रही है, चाहे वह गैंडों को बचाने की हों, बंगाल टाइगर या फिर डॉल्फिन, घड़ियाल जुड़ी हों. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यथावत है कि अंतत: पारिस्थितिकी के लिए किये जानेवाले प्रयत्नों में हम कितना दम भर सकते हैं.

दुनियाभर के करीब दो हजार हिमखंडों पर केंद्रित फ्रांस के एक अध्ययन में बताया गया है कि 2000 से आज तक हिमखंडों के पिघलने की दर दोगुनी हो चुकी है. यह संकेत यही दर्शाने की कोशिश करता है कि यह पारिस्थितिकी तंत्र के प्रतिकूल होनेवाला बड़ा परिवर्तन होगा. हमें यह जानना चाहिए कि अंटार्कटिका हो या आर्कटिक हो, ये दो ध्रुव वैश्विक पारिस्थितिकी के नियंत्रक भी हैं.

अंटार्कटिका की एक बड़ी भूमिका, खासतौर से एशिया क्षेत्र में, मानसून के नियंत्रण को लेकर है. ऐसे बदलाव, जो अंटार्कटिका में क्लाइमेट चेंज और ग्लोबल वार्मिंग के कारण होंगे, का असर जन-जीवन और जीवों पर तो पड़ेगा ही, साथ में उसी के साथ ज्यादा महत्वपूर्ण यह भी होगा कि वे पूरे तंत्र को विक्षिप्त कर देगा.

आज की सबसे बड़ी चुनौती परिस्थिति तंत्र को समझने व समझाने की है. मात्र विकास को दोषी नही ठहराया जा सकता है क्योंकि यह हम सबकी सरकारों से पहली मांग होती है. जब तक उसकी चाह से हम मुक्त नहीं होना चाहेंगे, तब तक अन्य जीवों से न्याय नही कर पायेंगे. आज पृथ्वी की सारी परिस्थितियां मनुष्य ने अपने पक्ष में कर रखी है, जो स्वयं पर केंद्रित है. अब जब प्रकृति के दंश झेलने पड़ रहे है, तब कहीं दिवसों की औपचारिकता कुछ बहस छेड़ रही है. पर शायद अब पिछले तीन दशकों की बहस भी जब कुछ कमाल नही कर सकी, तब कहीं विश्व स्तर पर नयी चिंताएं जन्मी हैं.

ऐसा इसीलिए हुआ है कि हम सब व्यक्तिगत स्तर पर चिंतित नही है और इसे सरकारों की जिम्मेदारी मान लेते हैं. एक बात ठीक से समझनी होगी कि यह हमारे प्राण व जीवन से जुड़ा मुद्दा है. प्राण हमारे जायेंगे, न कि सरकारों के. इसलिए पारिस्थितिकी को अपने जीवन का भी विषय मानिए, न कि मात्र सरकारों का.

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