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पक्षियों का घटना जैवविविधता के लिए नुकसानदेह

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भारत में पक्षियों की स्थिति-2023’ रिपोर्ट के नतीजे नभचरों के लिए ही नहीं इंसानों के लिए भी खतरे की घंटी हैं. बीते 25 सालों के दौरान पक्षियों की कई प्रजातियां लुप्त हो गयीं, तो कई प्रजातियां बस गिनती भर रह गयी हैं. पक्षियों पर मंडराता खतरा विकास की नयी अवधारणा से ज्यादा उपजा है. एक तरफ बदलते मौसम ने उनके प्रजनन, पलायन और प्रवास पर असर डाला है, तो अधिक फसल की लालच में कीटनाशकों के इस्तेमाल, विकास के नाम पर जंगलों के उजाड़े जाने और नैसर्गिक परिवेश की कमी जैसे कई कारणों से हमारे गली-आंगन में पक्षियों की चहचहाहट कम होती जा रही है.

पंछियों के बारे में यह अध्ययन कई हजार पक्षी वैज्ञानिकों व प्रकृति प्रेमियों ने किया है. इसके लिए कोई 942 प्रजातियों के पक्षियों का अवलोकन किया गया. इनमें से 299 के बारे में बहुत कम आंकड़े मिल पाये. शेष बचे 643 प्रजातियों के आंकड़ों से जानकारी मिली कि 64 किस्म की चिड़िया बहुत तेजी से कम हो रही है, जबकि अन्य 78 किस्म की संख्या घट रही है. आंकड़े बताते हैं कि 189 प्रजाति के पक्षी जल्द संकट में आ सकते हैं.

अध्ययन में पाया गया कि रैप्टर्स, अर्थात झपट्टा मार कर शिकार करने वाले नभचर तेजी से कम हो रहे हैं. इनमें बाज, चील, उल्लू आदि आते हैं. समुद्र तट पर मिलने वाले पक्षी और बतखों की संख्या भी भयावह तरीके से घट रही है. नदी, तालाब जैसी जल निधियों के किनारे रहने वाले पक्षियों की संख्या घटी है. यह सुखद है कि एशियाई कोयल की संख्या बढ़ रही है, मगर नीलकंठ सहित 14 ऐसे पक्षी हैं जिनकी घटती संख्या के चलते उन्हें लुप्तप्राय जीव-जंतुओं की लिस्ट में रखा गया है.

कठफोड़वा, सुग्गा या तोता, मैना, सातभाई की कई प्रजातियां, चिपका आदि की संख्या घटने को घने जंगलों में कमी से जोड़ा जा रहा है. खेतों में पाये जाने वाले बटेर, लवा के कम होने की वजह फसलों का जहरीला होना है. समुद्र तट पर पाये जाने वाले प्लोवर या चिखली, कर्ल, पानी में मिलने वाली गंगा चील बतख की संख्या तेजी से घट रही है. इसका मुख्य कारण समुद्र और तटीय क्षेत्रों में प्रदूषण व अत्यधिक औद्योगिक व परिवहन गतिविधि का होना है.

घने जंगलों के लिए मशहूर पूर्वोत्तर राज्यों में पक्षियों पर संकट बहुत चौंकाने वाला है. यहां 66 पक्षी बिरादरी लगभग समाप्त होने की कगार पर हैं. इनमें 23 अरुणाचल प्रदेश, 22 असम, सात मणिपुर, तीन मेघालय, चार मिजोरम, पांच नगालैंड और दो बिरादरी के पक्षी त्रिपुरा में हैं. ग्रेट इंडियन बस्टर्ड या गोडावण को तो संकटग्रस्त पक्षियों की सूची में शामिल किया गया है. वर्ष 2011 में भारतीय उपमहाद्वीप के शुष्क क्षेत्रों में इनकी संख्या 250 थी जो 2018 तक 150 रह गयी.

भारत में इंडियन बस्टर्ड की बड़ी संख्या राजस्थान में मिलती है. चूंकि यह शुष्क क्षेत्र का पक्षी है, तो जैसे-जैसे रेगिस्तानी इलाकों में सिंचाई का विस्तार हुआ, इसका इलाका सिमटता गया. फिर सड़क, कारखाने, बंजर को हरियाली में बदलने के सरकारी प्रयोगों से इस पक्षी के अंडे देने के लिए भी जगह नहीं बची. इनका शिकार तो हुआ ही, ये जंगलों में हाई टेंशन बिजली लाइनों में फंस कर भी मारे गये. कॉर्बेट फाउंडेशन ने ऐसे कई मामलों का दस्तावेजीकरण किया जहां बस्टर्ड निवास और उनके प्रवासी मार्गों में बिजली की लाइनें लगायी गयी हैं.

भारी वजन और घूमने के लिए सीमित क्षेत्र होने के कारण बस्टर्ड को इनसे बचने में परेशानी होती है तथा अक्सर वे इनका शिकार हो जाते हैं. इसी तरह अंडमान टली या कलहंस या चंबल नदी के पानी में चतुराई से शिकार करने वाला हिमालयी पक्षी इंडियन स्कीमर, या फिर नारकोंडम का धनेश, ये सभी पक्षी समाज में फैली भ्रांतियों और अंधविश्वास के कारण शिकारियों के हाथों मारे जा रहे हैं. पालघाट के घने जंगलों में हरसंभव ऊंचाई पर रहने के लिए मशहूर नीलगिरी ब्लू रोबिन या शोलाकिली पक्षी की संख्या जिस तेजी से घट रही है, उससे अगले दशक में यह केवल किताबों में दर्ज रह जायेगा.

बदलते मौसम के कारण एक तरफ ठंड के दिनों में हर साल आने वाले प्रवासी पक्षी कम हो रहे हैं, तो दूसरी तरफ बढ़ती गर्मी से कई पंछी ऊंचाई वाले स्थानों पर पलायन कर रहे हैं. उधर कीटनाशकों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने बहुत से कीड़े-मकोड़ों को नगण्य कर दिया है जो पक्षियों के प्रिय भोजन रहे हैं. वैश्विक रूप से पक्षियों के लिए जानलेवा एविएशन मलेरिया जैसे संक्रामक रोगों का भी विस्तार हो रहा है.

रिपोर्ट बताती है कि कोई सात फीसदी पक्षी ऐसी बीमारियों से असमय मारे गये. पवन ऊर्जा के बड़े पंखों में फंसने, हवाई सेवा के विस्तार से भी इनकी संख्या घट रही है. एक तरफ पक्षी घट रहे हैं तो उनके आवास स्थल पेड़ों पर भी बड़ा संकट है, देश में न केवल वन का दायरा कम हो रहा है, बल्कि भारत में मिलने वाले कुल 3708 प्रजातियों में से 347 खतरे में हैं . इसरो के डेटाबेस ट्रीज ऑफ इंडिया के अनुसार, ऐसे पेड़ों की संख्या पर अधिक संकट है जो लोकप्रिय पंछियों के आवास और भोजन के माध्यम हैं. पक्षियों का घटना देश की समृद्ध जैव विविधता पर बड़ा हमला है.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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