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राहुल गांधी का महत्व बढ़ाती भाजपा

धीरे-धीरे राहुल गांधी की छवि एक ऐसे नेता की बनती जा रही है, जिसे प्रताड़ित किया जा रहा हो. यह उनकी छवि के लिए बड़ी उपलब्धि है. भाजपा के रणनीतिकारों ने वैश्विक उदासीनता के बारे में राहुल गांधी के कहे को भारतीय मामलों में विदेशी हस्तक्षेप मांगना समझ लिया.

साहित्यकार ऑस्कर वाइल्ड ने कहा था कि अपने बारे में चर्चा होने से अधिक खराब केवल एक ही बात हो सकती है और वह है अपने बारे में चर्चा नहीं होना. भाजपा ऐसे दल के रूप में दिखना चाहती है कि उसकी कथनी और करनी में कोई भेद नहीं है. राहुल गांधी अपनी पार्टी के प्रसार के लिए अपनी यात्रा के बारे में बात करना पसंद करते हैं. कश्मीर से कन्याकुमारी तक की अपनी यात्रा से वे चर्चा में आये और इसका श्रेय भाजपा की आक्रामक राजनीति को है.

हाल में लंदन में दिये गये भारतीय लोकतंत्र के खात्मे के बारे में उनके बयान के बाद केसरिया खेमा चीख-चीख कर उन पर राजद्रोह का आरोप लगा रहा है. राहुल गांधी ने लंदन में कहा था कि यह हमारी समस्या (मोदी के अंतर्गत लोकतांत्रिक संस्थाओं का ह्रास) है, यह आंतरिक समस्या है और देश के भीतर से ही इसका समाधान निकलेगा, बाहर से नहीं. आगे उन्होंने कहा कि भारतीय लोकतंत्र वैश्विक हित में है और उसका असर हमारी सीमाओं से परे भी होता है.

अगर इसका पतन होता है, तो धरती पर लोकतंत्र को बड़ा घातक झटका लगेगा. इसलिए, उन्होंने अपने श्रोताओं से कहा, यह उनके लिए भी महत्वपूर्ण है और इससे उन्हें आगाह रहना चाहिए. चर्चा के केंद्र में आने से किसी राजनेता के अहम को सबसे अधिक तुष्टि मिलती है. भले ही राहुल गांधी को देश में गंभीर श्रोता न मिलते हों, पर उन्हें भाषण के लिए लंदन का चयन नहीं करना चाहिए था.

जैसी उम्मीद थी, संसद की शुरुआत शोर-शराबे से हुई. आम तौर पर व्यक्ति-आधारित राजनीति से परहेज रखने वाले पुरानी शैली के नेता राजनाथ सिंह पहला शब्द वाण फेंका- ‘इस संसद के सदस्य राहुल गांधी ने लंदन में भारत का अपमान किया है. मेरा निवेदन है कि सभी सदस्य उनके भाषण की निंदा करें और राहुल गांधी को देश से माफी मांगने को कहें.’

सिंह की आवाज में कई मंत्रियों और पार्टी सांसदों ने आवाज मिलायी और राहुल गांधी को एक भारत-विरोधी अराजकतावादी के रूप में प्रस्तुत किया गया, जो मोदी के नेतृत्व में भारत के विकास को नकार रहा है. भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी राहुल गांधी को भारत-विरोधी टूल किट का स्थायी हिस्सा बताया. इसकी प्रतिक्रिया में कांग्रेस ने भाजपा और मोदी के विदेश में दिये बयानों का हवाला दिया, जिनमें भारतीय नेताओं और दलों पर अपमानजनक बातें कही गयी थीं.

राहुल गांधी ने लंदन में कहा था कि जब वे सदन में बोलने के लिए खड़ा होते हैं, उनका माइक बंद कर दिया जाता है. उन्होंने लंदन के भाषण के बारे सदन में स्पष्टीकरण देने के अपने अधिकार का दावा किया. भाजपा ने उनकी कही बात को साबित कर दिया. जब वे बोलने के लिए खड़े हुए, लोकसभा की कार्यवाही तुरंत स्थगित कर दी गयी.

दुर्भाग्य से भाजपा की ओर से पहले बोलने वाले नेता बड़बोले हैं. उन्हें लगता है कि चीखने-चिल्लाने से उनका समर्पण सिद्ध होता है. अजीब ही है कि दिल्ली पुलिस ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान बातचीत में सामने आये यौन हिंसा के एक मामले के बारे में पूछताछ करने का नोटिस राहुल गांधी को दे दिया. धीरे-धीरे राहुल गांधी की छवि एक ऐसे नेता की बनती जा रही है, जिसे प्रताड़ित किया जा रहा हो. यह उनकी छवि के लिए बड़ी उपलब्धि है.

भाजपा के रणनीतिकारों ने वैश्विक उदासीनता के बारे में राहुल गांधी के कहे को भारतीय मामलों में विदेशी हस्तक्षेप मांगना समझ लिया. जो भाजपा कभी राहुल गांधी को ‘पप्पू’ कहती थी, अब उन्हें एक ऐसा नेता मान रही है, जिसके शब्द जी20 और क्वाड नेताओं से घिरे शक्तिशाली मोदी को नुकसान पहुंचा सकते हैं. ऐसा क्यों लग रहा है कि सबसे बड़े दुश्मन के रूप में जितनी जरूरत राहुल को भाजपा की है, उससे कहीं अधिक जरूरत भाजपा को राहुल की है?

मोदी का आम तरीका बदले की भावना से काम लेने की जगह उपलब्धियों से ऊपर उठना रहा है, भले ही गांधी परिवार और उसके चाटुकारों ने उन्हें ‘मौत का सौदागर’, ‘रावण’ और ‘चायवाला’ कहा हो. इस बार भी उन्होंने अपने आलोचक का नाम लिए बिना भारतीय लोकतंत्र की ताकत को रेखांकित किया है, जबकि केसरिया चमचों ने राहुल गांधी को अपशब्द कह कर अपने नेता का ध्यान खींचना चाहा.

राहुल गांधी अपनी पार्टी के बाहर अपनी प्रासंगिकता तलाश रहे हैं और भाजपा के अति उत्साही लोगों ने उनके आरोप को फैला कर उन्हें शायद यह अवसर दे दिया है. हाल में अनेक राज्यों में विजयी रही भाजपा शांत रह सकती थी. ऐसा लगता है कि पार्टी राहुल गांधी को दीर्घकालिक प्रतिद्वंद्वी मानकर चल रही है.

उसे पता है कि कांग्रेस के हाशिये पर जाने से क्षेत्रीय दल मजबूत होंगे, जिनके पास राष्ट्रीय दलों से अधिक लोकप्रिय स्थानीय नेता हैं. कांग्रेस की स्थिति यही है, चुनाव जीतने की क्षमता रखने वाले उसके कुछ नेता पार्टी छोड़ गये हैं. ईडी और सीबीआई के इस्तेमाल से भ्रष्ट क्षत्रपों को किनारे लगाया जा सकता है. भाजपा लड़ाई को राहुल बनाम मोदी तक सीमित कर 2024 में कांग्रेस के वर्चस्व वाले राज्यों में बड़ी जीत के लिए तैयारी कर रही है. उन्हीं राज्यों से तय होगा कि मोदी सरकार को तीसरा कार्यकाल मिल पाता है या नहीं. फिलहाल कांग्रेस अपने नेता को चर्चा के केंद्र में पाकर खुश है. ओपिनियन पोल बताते हैं कि राहुल की लोकप्रियता बीते दो साल में दुगुनी हो गयी है.

क्या राहुल मोदी को उकसा रहे हैं क्योंकि उम्र उनके पक्ष में है और नेशनल हेराल्ड मामले के अलावा उन पर वित्तीय अनियमितता के आरोप नहीं हैं? मोदी 2025 में 75 साल के हो जायेंगे. राहुल उनसे करीब दो दशक छोटे हैं. लोकप्रियता और स्वीकार्यता में भाजपा का कोई नेता मोदी के आसपास भी नहीं है. गृहमंत्री अमित शाह 60 साल के होने वाले हैं. संघ परिवार में एक हिस्सा योगी आदित्यनाथ को आदर्श वैचारिक वारिस मानता है, पर उन्हें सांगठनिक मामलों से दूर रखा गया है.

कांग्रेस को उम्मीद है कि मोदी के बाद राहुल देश के नेतृत्व के लिए सबसे स्वीकार्य चेहरा बन जायेंगे. जब संसद में विपक्ष परास्त होता है, तो वह सड़क पर उतरता है. जब सरकार ऐसा करती है, तो वह जनमत संग्रह बन जाता है. मोदी भारत की आत्मा के जनमत संग्रह में जीत चुके हैं. राहुल वैश्विक मंचों के इस्तेमाल से भारतीय मस्तिष्क का जनमत संग्रह जीतना चाहते हैं. उन्हें अनाप-शनाप बोलकर भाजपा उस जगह को उन्हें परोस रही है, जिसके लिए वे संघर्षरत हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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