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भाजपा को दमदार अध्यक्ष की तलाश

आकलन के साथ समस्या यह है कि आप जो देखते हैं, वह वैसा ही नहीं होता. मोदी और संघ के पास निषेध की शक्ति है. पुरानी भाजपा के पास अध्यक्ष पद के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय क्षत्रपों की एक बटालियन थी. मोदी को मंत्रियों से इस्तीफा लेकर पार्टी में भेजने के लिए जाना जाता है. यह संभावना है कि राजनाथ सिंह, गडकरी या चौहान, या कोई कम ज्ञात, पर भरोसेमंद स्वयंसेवक नड्डा की जगह ले ले.

जेपी नड्डा का भाजपा अध्यक्ष के रूप में कार्यकाल जून में समाप्त हो गया, लेकिन वे पद पर बने हुए हैं क्योंकि नेतृत्व नये नाम पर सहमत नहीं हो पा रहा है. नड्डा न सिर्फ अंतरिम पार्टी प्रमुख हैं, बल्कि केंद्रीय मंत्री भी हैं. अब पार्टी को लोगों की नजर में अनिर्णय की कमजोरी को दूर करने के लिए इस मुद्दे को जल्दी हल करना होगा. असंख्य सांसदों और मुख्यमंत्रियों वाली दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी प्रतिभा के अकाल से जूझ रही है. सत्ता में बिताये गये सुखद दिनों ने सफल प्रशासकों का एक समूह तैयार कर दिया है. जब भाजपा विपक्ष में थी, तो पार्टी प्रमुख के रूप में उनकी जगह भरने के लिए एक अटल या एक आडवाणी के स्थान पर चार विकल्प होते थे. अब, जब इसके 12वें अध्यक्ष को चुनने की प्रक्रिया चल रही है, तो कई नामों पर स्याही अभी सूखी नहीं है.
शिवराज सिंह चौहान ने 1972 में 13 साल की उम्र में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक के रूप में सामाजिक सेवा शुरू की थी. अब वे 65 वर्ष के हैं और अध्यक्ष पद की दौड़ में अग्रणी प्रतीत होते हैं. उनके पक्ष में उम्र, जाति, विश्वसनीयता, अनुभव और स्वीकार्यता हैं. वे तीन बार मुख्यमंत्री रहे हैं, संघ के प्रिय हैं और विपक्ष उन्हें सबसे कम नापसंद करता है. वे लोकप्रिय हैं तथा उनकी अभिनव कल्याणकारी और विकासात्मक योजनाओं ने भाजपा को राज्य में लगभग अजेय बना दिया. हिंदुत्व उनके शासन का मूल सिद्धांत रहा है. वाजपेयी और आडवाणी दोनों ने उन्हें भविष्य के नेता के रूप में पहचाना था और 2005 में उन्हें मुख्यमंत्री और भाजपा संसदीय बोर्ड का सदस्य बनाया था. वे किसान-समर्थक समृद्धि उपायों के प्रस्तोता हैं और उन्हें भारी ग्रामीण समर्थन प्राप्त है. पर उनका स्वतंत्र व्यक्तित्व उनके लिए अवरोध हो सकता है. देवेंद्र फड़नवीस 35 वर्षों से संघ परिवार से जुड़े हैं. नागपुर के इस 54 वर्षीय नेता ने विद्यार्थी परिषद से अपना राजनीतिक जीवन शुरू किया था. साल 2014 में सत्ता में आने के बाद प्रतिभा को पहचानने वाले मोदी और शाह ने ब्राह्मण जाति के फड़नवीस को, जो उस समय 44 वर्ष के थे, भारत के सबसे अमीर राज्य महाराष्ट्र का दूसरा सबसे युवा मुख्यमंत्री बनाया. उनकी खातिर नितिन गडकरी और गोपीनाथ मुंडे जैसे वरिष्ठ नेताओं की अनदेखी की गयी. किसी भी स्थानीय गुट से फड़नवीस की दूरी और सर्वोच्च नेताओं से निकटता ने उन्हें दौड़ में आगे कर दिया है. पर उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर कोई बड़ा सांगठनिक कार्य नहीं संभाला है. मोदी-शाह के प्रति उनकी वफादारी उन्हें शीर्ष पर पहुंचाने के लिए शायद पर्याप्त न हो.
रजवाड़ा पृष्ठभूमि से आने वालीं 71 वर्षीय वसुंधरा राजे अभी पीछे हैं, पर निश्चित ही मैदान से बाहर नहीं हैं. तीसरी बार राजस्थान के मुख्यमंत्री पद के लिए उनके दावे को आलाकमान ने खारिज कर दिया था. वे अभी भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्षों में से एक हैं. यद्यपि संघ से उनका जुड़ाव कमजोर हो गया है, लेकिन उनकी दिवंगत मां विजया राजे की विरासत की बदौलत संघ नेतृत्व उनके प्रति सकारात्मक है. वसुंधरा केंद्र, राज्य और पार्टी में कई महत्वपूर्ण पदों पर रह चुकी हैं. वे राष्ट्रीय स्तर पर एक जाना-पहचाना चेहरा हैं. यदि भाजपा अपनी पहली महिला अध्यक्ष की तलाश में है, तो राजे की वरिष्ठता, अनुभव और गंभीरता माकूल बैठती है. उनकी बाधा यह है कि उन्होंने कार्यकर्ताओं से सीधे जुड़ाव वाली कोई राष्ट्रीय जिम्मेदारी नहीं संभाली है. इसके अलावा, उन्होंने मोदी-शाह की जोड़ी से दूरी बना रखी है. विद्यार्थी परिषद की पृष्ठभूमि से आने वाले 55 वर्षीय उड़िया नेता धर्मेंद्र प्रधान ओडिशा और दिल्ली में संघ और भाजपा की गतिविधियों में प्रभावी रहे हैं. शीर्ष नेतृत्व उन्हें एक संभावित राष्ट्रीय नेता और वैचारिक रूप से भरोसेमंद के रूप में देखता है. वे राष्ट्रीय महासचिव हैं और उन्होंने कर्नाटक, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश एवं हरियाणा में चुनावी जिम्मेदारी संभाली है. प्रधान आजादी के बाद सबसे लंबे समय तक रहने वाले पेट्रोलियम मंत्री हैं. उनका कौशल शासन के लिए अधिक अनुकूल है, हालांकि विरोधियों का आरोप है कि उनके पास राष्ट्रीय कद और अखिल भारतीय स्वीकार्यता का अभाव है.
राजस्थान में जन्मे 55 वर्षीय वकील भूपेंद्र यादव ने अपना राजनीतिक करियर संघ-नियंत्रित वकीलों के संगठन से शुरू किया. अटल-आडवाणी युग के दौरान वे एक संभावित राष्ट्रीय नेता के रूप में उभरे थे. उन्हें 2010 में नितिन गडकरी ने राष्ट्रीय सचिव के रूप में चुना था. तब से, गैर-विवादित यादव पर शीर्ष ने भरोसा किया और उन्हें पार्टी में महत्वपूर्ण पद मिले. साल 2014 में शाह के पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद वे उनकी टीम के एक महत्वपूर्ण सदस्य बने. महासचिव के रूप में उन्होंने राजस्थान, गुजरात और छत्तीसगढ़ में चुनावी प्रबंधन किया. उन्होंने उद्धव ठाकरे सरकार को गिराने में भी सक्रिय भूमिका निभायी थी. केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री के रूप में उनका महत्व स्पष्ट है, जो मोदी के विकसित भारत के एजेंडे के लिए एक अति संवेदनशील मंत्रालय है. पर संघ के एक वर्ग का मानना है कि वे अभी बहुत कनिष्ठ हैं. भाजपा में महासचिव बनने से पहले 55 वर्षीय सुनील बंसल संघ प्रचारक थे. विद्यार्थी परिषद और संघ के अनुभव ने उन्हें एक उत्कृष्ट टीम लीडर बना दिया है. जब शाह ने 2014 में भाजपा के चुनाव अभियान की कमान संभाली, तो उन्होंने बंसल को उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया, जहां पार्टी को भारी जीत हासिल हुई. इस बार उन्हें ओडिशा की कमान सौंपी गयी, जहां भाजपा पहली बार सत्ता में आयी. पर नेतृत्व का एक वर्ग सोचता है कि बंसल को अधिक अनुभव की आवश्यकता है.
आकलन के साथ समस्या यह है कि आप जो देखते हैं, वह वैसा ही नहीं होता. मोदी और संघ के पास निषेध की शक्ति है. पुरानी भाजपा के पास अध्यक्ष पद के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय क्षत्रपों की एक बटालियन थी. मोदी को मंत्रियों से इस्तीफा लेकर पार्टी में भेजने के लिए जाना जाता है. यह संभावना है कि राजनाथ सिंह, गडकरी या चौहान, या कोई कम ज्ञात, पर भरोसेमंद स्वयंसेवक नड्डा की जगह ले ले. अस्तित्व के 44 वर्षों में से 15 वर्षों तक वाजपेयी और आडवाणी ने भाजपा का नेतृत्व किया. शाह ने एकजुटता बनायी और राष्ट्रीय विस्तार किया. नड्डा की यह सोच कि भाजपा संघ के बिना भी चल सकती है, महंगी पड़ी है. शायद जनवरी में अध्यक्ष की नियुक्ति से यह पता चलेगा कि क्या वे सही थे, या संघ अभी भी आधारभूत संगठन है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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