बोधि वृक्ष- ईश्वर प्राप्ति
मानव समाज एक और अविभाज्य है, जबकि मानव जाति एक समूह है. यह अविच्छिन्न है, इसे टुकड़ों में नही बांटा जा सकता, क्योंकि मानवता एक ही है. हम वरिष्ठ लोग उत्तरदायी हैं मानव समाज में विभाजन के लिए
मानव समाज एक और अविभाज्य है, जबकि मानव जाति एक समूह है. यह अविच्छिन्न है, इसे टुकड़ों में नही बांटा जा सकता, क्योंकि मानवता एक ही है. हम वरिष्ठ लोग उत्तरदायी हैं मानव समाज में विभाजन के लिए. किंतु मानव समाज तो सदा से एक ही है. अब पंथ की बात करते हैं. हम कहते हैं अनेक पंथ है. ‘हम मानव समाज की सेवा बिना किसी पंथ पर आधारित कर भेदभाव कर रहे है.’ ऐसा हम कहते हैं. किंतु क्या एक से अधिक पंथ हो सकते हैं? यहां प्रश्न उठता है कि आखिर मानव का पंथ क्या है? इसका उत्तर है, सर्वोच्च सत्ता की ओर चलना, आनंद के शाश्वत स्रोत की ओर चलना.
यही मात्र एक पंथ है. ज्ञात अथवा अज्ञात रूप में हम किधर जा रहे हैं? हम किस की खोज में हैं? हम चाहते क्या हैं? हम आनंद चाहते हैं. हम शांति चाहते हैं. संपूर्ण मानव समाज का पंथ क्या है? कितने हैं? मात्र एक. हम सभी उसी परमात्मा की ओर ज्ञात अथवा अज्ञात रूप में बढ़ रहे हैं, इसलिए मानव समाज में एक से अधिक पंथ हो ही नहीं सकता. क्या एक से अधिक पंथ हो सकते हैं? नहीं. दूसरी बात, लोग कह सकते हैं कि अनेकानेक धर्म हैं. नहीं. अनेक धर्म नहीं, मात्र एक ही धर्म है. वह धर्म है सनातन धर्म, मानव धर्म, भागवत धर्म.
अब धर्म है क्या? लक्ष्य है ईश्वर प्राप्ति, परमपिता से मिलकर एकाकार हो जाना. उस परमपिता के समीप जाना और शाश्वत आनंद का अनुभव. यही लक्ष्य है. अतः क्या धर्म एक से अधिक हो सकते हैं? नहीं. जो ऐसा कहते हैं, वे धार्मिक व्यक्ति नहीं हैं. वे धर्ममत-मतवाद के मत प्रचारक हैं. मनुष्य मात्र का एक ही धर्म है जो हमें बताता है कि हमें परमपिता की ओर चलना है. अब देखो वर्ग. वर्ग क्या परमपुरुष द्वारा निर्मित है.
इन वर्गों के विभाजन का आधार होता है आर्थिक वर्ग- धनी, गरीब आदि-आदि. वे क्या ईश्वरकृत हैं या मनुष्यकृत? वे मनुष्यकृत हैं. ये सब हमारे त्रुटिपूर्ण सामाजिक व्यवस्था के कारण हैं और इस त्रुटिपूर्ण सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करता कौन है? मनुष्य.
– श्री श्री आनंदमूर्ति