प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत ने इस वर्ष इ-20 यानी 20 प्रतिशत इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल का इस्तेमाल शुरू कर दिया है और वर्ष 2025 तक इसे पूरे देश में पहुंचाने का लक्ष्य है. उन्होंने गोवा में जी-20 की ऊर्जा पर मंत्रिस्तरीय बैठक में पर्यावरण की रक्षा के लिए किये जा रहे प्रयासों का ब्योरा देते हुए इथेनॉल का उल्लेख किया. इसी महीने केंद्रीय पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने बताया था कि वर्ष 2025 तक पूरे देश में विशेष इ-20 पेट्रोल पंप खुल जायेंगे. इस वर्ष फरवरी में 15 शहरों में ऐसे पंप खुले थे.
इनकी संख्या बढ़ कर 600 से ज्यादा हो चुकी है. दरअसल, भारत में पिछले दो दशकों से खास तौर पर दोपहिया और चारपहिया वाहनों में इथेनॉल के इस्तेमाल को बढ़ावा देने की कोशिश की जा रही है. इ-20 से पहले इ-10 यानी 10 प्रतिशत इथेनॉल और 90 प्रतिशत पेट्रोल का चलन ज्यादा था. भारत में 22 करोड़ से ज्यादा वाहन हैं और इनमें से 75 फीसदी दोपहिया व 12 फीसदी चारपहिया वाहन हैं. आर्थिक विकास, बढ़ती आबादी और तेज होते शहरीकरण की वजह से लोगों की जरूरत और क्रय शक्ति बढ़ रही है.
ऐसे में वाहनों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है. अभी वाहनों में इस्तेमाल होने वाले ईंधन का लगभग 98 फीसदी हिस्सा पेट्रोल, डीजल जैसे जीवाश्म ईंधनों से आता है और दो फीसदी हिस्सा इथेनॉल जैसे जैविक ईंधनों से. इथेनॉल या इथाइल अल्कोहल मुख्यतः गन्ने से तैयार होने वाला एक हाइड्रोकार्बन है, जिसमें काफी ऑक्सीजन होता है और इसे जला कर ऊर्जा हासिल की जा सकती है. इससे वाहनों से होने वाला प्रदूषण भी घटता है और यह नवीकरणीय ऊर्जा का भी स्रोत है.
हालांकि, इथेनॉल से निकलने वाला कचरा गाड़ियों को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए उनका उपयुक्त मात्रा में ही इस्तेमाल आवश्यक होता है, लेकिन इनसे नुकसान कम, फायदा ज्यादा है. एक तो यह पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाता है. दूसरा कि पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता कम होती है, जिससे दूसरे देशों से उन्हें खरीदने का खर्च बचता है. एक अनुमान के अनुसार इ-20 कार्यक्रम की सफलता से देश को हर साल चार अरब डॉलर की बचत हो सकती है.
इथेनॉल को बढ़ावा देने से किसानों की आय भी बढ़ सकती है. इ-20 के लक्ष्य को हासिल करने के लिए सबसे जरूरी है गन्ना उत्पादन को बढ़ाना, मगर इससे एक दूसरी चुनौती खड़ी हो जाती है. यदि किसान गन्ना ज्यादा उगाने लगें, तो दूसरी फसलों की पैदावार घट सकती है. इससे महंगाई बढ़ने और खाद्य सुरक्षा का खतरा आ सकता है. ऐसे में ऊर्जा सुरक्षा के साथ खाद्य सुरक्षा का ध्यान रखते हुए संतुलित नीति बनायी जानी चाहिए.