बजट में विकास को प्रोत्साहन
सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि बजट में कोई भी नया कर नहीं लगाया गया है तथा वित्त मुहैया कराने के सभी रास्ते पूरी तरह खोल दिये गये हैं.
अजीत रानाडे, अर्थशास्त्री एवं सीनियर फेलो, तक्षशिला इंस्टीट्यूशन editor@thebillionpress.org
संसद की सहमति के बिना केंद्र सरकार एक रुपया भी खर्च नहीं कर सकती है. इसीलिए संविधान की व्यवस्था के अनुसार उसके खर्च का सालाना ब्योरा, जिसे केंद्रीय बजट कहा जाता है, लोकसभा में प्रस्तुत किया जाता है. बजट के प्रस्तावों की समीक्षा की जाती है कि उनका आम जन पर क्या असर होगा, संसाधन कैसे जुटाये जायेंगे, कमी कैसे पूरी की जायेगी, आर्थिक बढ़ोतरी पर इनका प्रभाव क्या होगा तथा क्या ये प्रस्ताव तार्किक और विश्वसनीय हैं?
बजट पेश होने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस बार का बजट बजट पिछले साल के काम को आगे बढ़ायेगा, जब महामारी के साल में ‘आत्मनिर्भर’ पैकेज के तहत पांच छोटे बजट पेश हुए थे. इसके उलट वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा था कि यह ‘अभूतपूर्व’ बजट होगा. बहरहाल, बजट के रूप में जो हमें मिला है, वह निश्चित तौर पर बहुत साहसिक और महत्वाकांक्षी है. इसका ध्यान स्पष्ट रूप से आर्थिक वृद्धि को फिर से गतिशील करने पर केंद्रित है.
महामारी के साल में वित्तीय प्रोत्साहन की अधिकांश अनुपस्थिति के अभाव को यह बजट पूरा करता है. अब यह बात समझ में आती है कि सरकार ने वित्तीय प्रोत्साहन को अभी देने का निर्णय किया है, जब देशभर में लॉकडाउन की अधिकतर पाबंदियां हटायी जा रही हैं. जब लोग अपने घरों में बंद हों, तब वित्तीय खर्च बढ़ाने से आर्थिकी को बहुत अधिक लाभ नहीं हो सकता है.
सबसे बड़ी राहत की बात यह है कि प्रस्तावित बजट में कोई भी नया कर नहीं लगाया गया है तथा वित्त मुहैया कराने के सभी रास्ते पूरी तरह खोल दिये गये हैं. अगले वित्त वर्ष के सालाना बजट का आकार लगभग 35 लाख करोड़ रुपये है. यह आंकड़ा पिछले साल के बजट की तुलना में करीब 16 फीसदी ज्यादा है, लेकिन यह भी उल्लेखनीय है कि अभी हम मंदी से उबर रहे हैं, तो कर संग्रहण से प्राप्त होनेवाला राजस्व बहुत अधिक नहीं भी हो सकता है. इसलिए खर्च और राजस्व के बीच का अंतर यानी वित्तीय घाटा में बढ़ोतरी होगी.
चालू वित्त वर्ष में यह सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का 9.5 प्रतिशत रहा है. इसका कारण यह है कि जीडीपी में ही आठ फीसदी की गिरावट आयी है और अर्थव्यवस्था कई महीने तक लॉकडाउन में रही थी, लेकिन अगले साल भी वित्तीय घाटा 6.8 प्रतिशत रहेगा, जो संसद द्वारा पारित वित्तीय उत्तरदायित्व कानून के तहत निर्धारित सीमा से दुगुने से भी अधिक है. अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा है कि चार सालों के बाद ही वित्तीय घाटा 4.5 फीसदी तक आयेगा और तब भी यह वित्तीय उत्तरदायित्व कानून द्वारा तय तीन फीसदी की सीमा से काफी ऊपर होगा.
यदि वित्तीय घाटा इतना अधिक है, तो सरकार खर्च और राजस्व के बीच के अंतर की भरपाई करने के लिए क्या पहलकदमी कर रही है? निश्चित रूप से उधार लेकर ही यह भरपाई होगी. जो रकम आज उधार ली जायेगी, उसे भविष्य में चुकाना होगा और इस चुकौती के लिए भविष्य के नागरिकों, जो बुनियादी रूप से अजन्मे करदाता हैं, पर कर लगाया जायेगा, लेकिन आज लिये जा रहे कर्ज का इस्तेमाल सड़कें, राजमार्ग, मेट्रो रेल प्रणाली, बंदरगाह और हवाई अड्डे बनाने में होगा.
इस तरह से निर्मित ये परिसंपत्तियां बहुत लंबे अरसे- संभवत: कई दशकों या इससे भी अधिक समय तक बरकरार रहेंगी. यह बिल्कुल वैसा ही है, जैसे कोई व्यक्ति घर या कोई परिसंपत्ति खरीदता है, तो आवास ऋण की चुकौती अगले 15 या 20 साल में होती है. वह व्यक्ति उस कर्ज को अपनी मौत से पहले चुका देता है, लेकिन सरकार तो चलती रहती है, इसलिए सरकार भविष्य में भी कर्ज ले सकती है तथा नये कर्जों से पुराने कर्जों की भरपाई कर सकती है.
ऐसा कहने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि कर्ज लेना बेतहाशा या लापरवाही से किया जा सकता है. मुंबई नगर निगम भी बॉन्ड बेच कर कर्ज लेने की कोशिश में है, लेकिन उसके पार्षद इस रवैये का विरोध कर रहे हैं. बहरहाल, मौजूदा स्थिति में वित्तमंत्री ने सरकार के वित्तीय हिसाब की एक भरोसेमंद और वास्तविक तस्वीर पेश की है, जो करदाताओं के साथ भरोसा बढ़ाने में बड़ी अहम भूमिका निभायेगा.
बजट में इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़े पैमाने पर खर्च की योजना के साथ-साथ अब हमारे पास निजीकरण की दिशा में निर्णायक पहल भी है. वित्त मंत्री ने घोषणा की है कि सार्वजनिक क्षेत्र के दो बैंकों तथा एक बीमा कंपनी का निजीकरण किया जायेगा. इनके अलावा, सरकार के स्वामित्व की कुछ परिसंपत्तियों, जैसे- टोल सड़कें, सरकारी कंपनियों की मालिकाना वाली जमीनों आदि, को मुद्रीकृत किया जायेगा.
यह शायद पहला ऐसा बजट है, जो निजी क्षेत्र के लिए सरकार द्वारा जगह खाली करने के निश्चय को इंगित कर रहा है. दरअसल, बजट में घोषित सिद्धांत यह है कि सरकार हवाई जहाज, होटल आदि जैसे सभी गैर-रणनीतिक क्षेत्रों से बाहर निकल जायेगी और इन्हें निजी क्षेत्र के लिए छोड़ देगी. इस कदम से पूंजी के इस्तेमाल की क्षमता में निश्चित रूप से वृद्धि होगी और इससे आर्थिक वृद्धि तेज होगी.
भूख या बाल कुपोषण के वैश्विक सूचकांकों में भारत बहुत निचले पायदानों पर है. इसलिए हमें स्वास्थ्य पर सार्वजनिक खर्च में ठोस बढ़ोतरी करने की जरूरत है, जो अभी समकक्ष देशों के औसत की तुलना में कम है. इस बजट का लक्ष्य स्वास्थ्य और पोषण पर खर्च को बढ़ाकर दुगुना करने का है. लेकिन इस मामले में कुछ अधिक करने के लिए हमें आर्थिक वृद्धि को बढ़ाने की जरूरत है ताकि सामाजिक क्षेत्र को धन मुहैया कराने के लिए अधिक कर राजस्व की प्राप्ति हो सके. स्वास्थ्य एवं शिक्षा के मद में वित्तमंत्री निश्चित रूप से अधिक आवंटन कर सकती थीं, लेकिन वित्तीय घाटे की बड़ी मात्रा को देखते हुए बजट का नीतिगत ध्यान पुनर्वितरण पर नहीं होकर आर्थिक वृद्धि पर है.
यदि वास्तव में अगले साल अर्थव्यवस्था की नॉमिनल वृद्धि दर 15.5 फीसदी हो जाती है, जैसा कि अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान लगाया है, तो इस बजट के लक्ष्य पारंपरिक दिखेंगे और उन्हें आसानी से हासिल किया जा सकेगा. इसलिए, हमें इस बजट की प्रशंसा करनी चाहिए, जिसमें विकासोन्मुख वित्तीय प्रोत्साहन होने के साथ सामाजिक क्षेत्र में कुछ खर्च बढ़ाने का प्रस्ताव है तथा घाटे से संबंधित आंकड़े भरोसेमंद हैं तथा उन्हें प्राप्त किया जा सकता है. इसके लिए वित्त मंत्री की सराहना होनी चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
Posted by : Pritish Sahay