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रोजगार और छोटे कारोबार को बढ़ावा

कौशल विकास में मुख्य चुनौती यह है कि प्रशिक्षण चाहने वाले अधिकतर युवा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते. साथ ही, अधिकांश कौशल काम करते हुए ही सीखा जाता है.

मंगलवार को संसद में प्रस्तुत बजट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में गठित तीसरी केंद्र सरकार का पहला बजट था. इस पूर्ण बजट ने नयी सरकार की आर्थिक नीतियों की तस्वीर पेश की है, जिसे भाजपा के एनडीए में सहयोगी दलों की सहमति की दरकार होगी. हालांकि यह बजट छह महीने के लिए लागू होगा और उसके बाद अगले वित्त वर्ष का बजट प्रस्तुत किया जायेगा, इससे सरकार की आर्थिक दृष्टि की अभिव्यक्ति होती है. बजट प्रस्तावों से यह स्पष्ट है कि रोजगार सृजन, कौशल विकास एवं प्रशिक्षण, युवाओं के लिए अप्रेंटिसशिप, छोटे कारोबारों को बढ़ावा देने पर बल दिया गया है.

इसमें भारत की ऊर्जा चुनौतियों का भी उल्लेख किया गया है, जो कोयला एवं जीवाश्म ईंधनों से हटकर अधिक हरित एवं सतत ऊर्जा स्रोतों की ओर रुख करने की प्रक्रिया में उत्पन्न हो रही हैं. इस स्थिति में सरकारी एवं निजी क्षेत्र के साझा सहयोग से परमाणु ऊर्जा का उल्लेख महत्वपूर्ण हैं. साथ ही, संग्रहित जल ऊर्जा की नीति भी सराहनीय है.

वर्ष 2024-25 के केंद्रीय बजट में मुख्य जोर रोजगार के अवसर पैदा करने तथा छोटे कारोबारों की मदद करने पर है. रोजगार सृजन के लिए रोजगार एवं कौशल के संबंध में प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है तथा छोटे कारोबारों के विकास के लिए आसान कर्ज मुहैया कराने और निर्यात बाजार तक पहुंच सुगम करने के प्रस्ताव हैं. पूंजीगत लाभ (कैपिटल गेन) पर टैक्स में भी वृद्धि की गयी है. कुछ लोग इसे श्रम-आधारित वृद्धि की ओर झुकाव का संकेत मान सकते हैं, जिसमें मानव पूंजी की बेहतरी भी शामिल है.

पिछले कुछ वर्षों से केंद्र सरकार ने सोच-समझकर सड़क एवं हवाई अड्डों जैसे इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च का हिस्सा बढ़ाया है. इन ठोस परिसंपत्तियों को तेजी से विस्तृत किया गया है और यह विकास दिख भी रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर पर सरकारी खर्च वृद्धि का एक महत्वपूर्ण कारक रहा है. लेकिन रोजगार के अवसर समुचित गति से नहीं बढ़ रहे हैं और ग्रामीण क्षेत्र में कमाई ठिठकी हुई है. रोजगार पैदा करने वाले छोटे कारोबार जूझ रहे हैं. ऐसी स्थिति में उपभोक्ता खर्च में वृद्धि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) से कम है. यह चिंताजनक है. केवल उत्पादन और राजस्व में प्रोत्साहन देने के बजाय सरकार ने अब अपना ध्यान रोजगार सृजन और इसके प्रोत्साहन पर केंद्रित किया है.

भारत को दीर्घकालिक, सतत एवं समावेशी विकास के लिए मानव पूंजी में बड़े निवेश की आवश्यकता है. यह निवेश जीडीपी के छह प्रतिशत के स्तर पर पहुंचाना चाहिए, जो मौजूदा स्तर से दुगुना है. यह निवेश निजी और सरकारी दोनों स्रोतों से आयेगा. प्राथमिक शिक्षा और कुछ हद तक माध्यमिक शिक्षा के लिए सरकारी कोष आवश्यक है क्योंकि इसके व्यापक सामाजिक लाभ हैं, जिनका दूरगामी प्रभाव होता है. लेकिन, कॉलेज और आगे की शिक्षा, जिसमें कौशल विकास और प्रशिक्षण भी शामिल हैं, पर करदाताओं का पैसा नहीं खर्च किया जा सकता है क्योंकि ऐसी पढ़ाई का लाभ मुख्य रूप से व्यक्ति को होता है और समाज पर उसका द्वितीयक प्रभाव होता है.

हालांकि ऐसी शिक्षा और ऐसे कौशल विकास से उद्यमिता, अन्वेषण और रोजगार सृजन को बल मिलता है, पर इसे पूरी तरह मुफ्त मुहैया कराने का कोई ठोस औचित्य नहीं है. कौशल विकास में मुख्य चुनौती यह है कि प्रशिक्षण चाहने वाले अधिकतर युवा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का खर्च नहीं उठा सकते. साथ ही, अधिकांश कौशल काम करते हुए ही सीखा जाता है. इसलिए सबसे अच्छा तरीका है कि इसे राष्ट्रीय अप्रेंटिसशिप कार्यक्रम में शामिल किया जाए, जिसमें कौशल को स्थानांतरित करने का प्रावधान है.

बड़ी कंपनियों में एक करोड़ युवाओं के लिए इंटर्नशिप योजना काम करते हुए सीखने की दिशा में एक कदम है. कौशल विकास और उच्च शिक्षा का खर्च छात्रों को वहन करना चाहिए, जो उसके प्राथमिक लाभार्थी हैं. इस मामले में छात्र ऋण को सरल और सस्ता बनाकर बजट ने अच्छी मदद की है. आगामी वर्षों में यह उच्च शिक्षा के खर्च को उठाने का प्रमुख रास्ता होना चाहिए.

बजट में छोटे कारोबारों के लिए बिना गिरवी की कर्ज योजनाओं की घोषणा की गयी है, जो सरकार द्वारा दी जा रहीं कर्ज गारंटियों से अलग हैं. ऐसे कारोबारों को ई-कॉमर्स के जरिये निर्यात बाजार से जोड़ने में भी मदद की गयी है. छोटे उद्यम उद्योगों के मूल्य संवर्द्धन, निर्यात और रोजगार में सबसे बड़ी भूमिका निभाते हैं, इसलिए ये प्रावधान स्वागतयोग्य हैं. वित्तीय उत्तरदायित्व एक अहम तत्व है. वित्त मंत्री ने रिजर्व बैंक से मिले भारी लाभांश का आधा हिस्सा घाटा कम करने में इस्तेमाल किया है. राजकोषीय समेकन के प्रति प्रतिबद्धता प्रशंसनीय है.

भारत के कर राजस्व का एक-तिहाई हिस्सा ब्याज चुकाने में खर्च हो जाता है, इसलिए वित्तीय वादों को निभाने और समझदारी दिखाना बहुत महत्वपूर्ण है. अगले साल के कर राजस्व का अनुमान सावधानी भरा है. भारत को अपनी आयकर रणनीति की गंभीर समीक्षा करने की जरूरत है. प्रत्यक्ष कर का दायरा अधिक बड़ा होना चाहिए तथा कर दरें कुछ लाख रुपये के अंतर से शून्य से शीर्ष पर नहीं जानी चाहिए. अधिकतम दर उच्च आय पर लागू होनी चाहिए, पर छूटों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए.

वित्त मंत्री ने कहा है कि अगली पीढ़ी के सुधारों के लिए एक नयी व्यापक आर्थिक रूपरेखा जल्दी ही प्रस्तुत की जायेगी. इसमें वैश्विक मूल्य शृंखला में भारत की उपस्थिति का विस्तार करने पर पूरा बल देना चाहिए. इसीलिए आयात शुल्कों में कमी का रुझान होना चाहिए. सोना पर आयात शुल्क 15 से घटाकर छह प्रतिशत किया गया है क्योंकि संयुक्त अरब अमीरात से गिफ्ट सिटी तक बिना शुल्क के आयात किया जा रहा था. महंगे धातुओं पर अधिक शुल्क लगाने से नुकसान ही होता है क्योंकि उनकी तस्करी बढ़ जाती है.

निजी और सरकारी क्षेत्र की भागीदारी से छोटे परमाणु रिएक्टरों को लगाने और अंतरिक्ष आर्थिकी को बढ़ावा देने वाले जैसे भविष्योन्मुखी प्रावधानों को देखना सुखद है. जीवाश्म ईंधनों से हटने की कठिन चुनौतियों का भी ठोस आकलन किया गया है. पूंजीगत लाभ पर अधिक कर अस्थायी रूप से स्टॉक बाजार के लिए निराशाजनक हो सकता है, पर भारतीय अर्थव्यवस्था सशक्त है, वृद्धि दर अच्छी है और मुद्रास्फीति अनियंत्रित नहीं है. रोजगार सृजन और कौशल विकास की नीतियों तथा वित्तीय समेकन के कारण उच्च वृद्धि दर निश्चित ही बनी रहेगी. वित्तीय बाजार देर-सबेर इस क्षमता को संज्ञान अवश्य लेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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