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टैक्स छूट के साथ वित्तीय अनुशासन

Budget 2025 : ऐसे में, चीन अपना माल भारत जैसे देशों में डंप करने की कोशिश करेगा. डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से वैश्विक स्तर पर घबराहट पैदा हो रही है. इससे न्यूयॉर्क के सुरक्षित बांड बाजार तक वैश्विक पूंजी की दौड़ शुरू होगी.

Budget 2025 : बजट पेश करते समय किसी भी वित्त मंत्री के सामने बड़ी चुनौती दरअसल आर्थिक विकास के विभिन्न और विरोधी उत्प्रेरकों के बीच संतुलन बिठाने की तथा वंचित वर्गों के लिए सब्सिडी की व्यवस्था करते हुए भी आर्थिक अनुशासन बनाये रखने की होती है. संतुलन बनाये रखने की इस तनी हुई रस्सी पर चलना अक्सर मुश्किल होता है, वैश्विक उथल-पुथल के बीच तो यह और ज्यादा कठिन होता है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडा, मेक्सिको और चीन के आयातों पर शुल्क थोप दिये हैं.

ऐसे में, चीन अपना माल भारत जैसे देशों में डंप करने की कोशिश करेगा. डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों से वैश्विक स्तर पर घबराहट पैदा हो रही है. इससे न्यूयॉर्क के सुरक्षित बांड बाजार तक वैश्विक पूंजी की दौड़ शुरू होगी. ऐसे में, डॉलर की न सिर्फ मांग बढ़ेगी, बल्कि यह निरंतर मजबूत भी होता जायेगा. यह परिदृश्य भारत के लिए ठीक नहीं होगा. कमजोर होते रुपये और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में आयी कमी से भारत वैसे भी प्रतिकूल स्थिति का सामना कर रहा है.


इस पृष्ठभूमि में वित्त मंत्री ने लगातार अपने आठवें बजट में 51 ट्रिलियन रुपये खर्च करने का प्रस्ताव रखा, जिसमें राजस्व के रूप में 35 ट्रिलियन रुपये हासिल करने की उम्मीद है. खर्च और प्राप्ति के बीच की खाई को कर्ज लेकर पाटा जायेगा. भले ही बजट का सबसे बड़ा आकर्षण व्यक्तिगत आयकर में बड़ी कटौती रही हो, लेकिन उल्लेखनीय बात यह है कि इसमें वित्तीय अनुशासन को भूला नहीं गया. अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.5 प्रतिशत रहने वाला है, जो कुछ साल पहले किये गये वादे के अनुरूप है.

औसतन सात फीसदी की आर्थिक विकास दर बरकरार रखते हुए और पिछले कुछ वर्षों से पूंजीगत खर्च में भारी वृद्धि करने के बावजूद वित्तीय अनुशासन के मोर्चे पर हासिल की जाने वाली यह उपलब्धि बड़ी है. भूलना नहीं चाहिए कि टैक्स छूट के कारण राजस्व में लगभग एक ट्रिलियन रुपये की कमी होने के बावजूद सरकार राजकोषीय घाटे को लक्ष्य के अनुरूप रख पायेगी. हालांकि यह भी तथ्य है कि वित्तीय अनुशासन बनाये रखने के लिए सरकार ने इस बजट में पूंजीगत खर्च को नहीं बढ़ाया और उसे पिछले बजट के बराबर ही रखा.


अब 12.75 लाख रुपये तक की सालाना आय पर आयकर नहीं देना पड़ेगा. जबकि 2019 में सात लाख रुपये तक की सालाना आय आयकर मुक्त थी. आयकर में यह कटौती मुख्य रूप से मध्यवर्ग को खुश करने के लिए है, जिसका जिक्र प्रधानमंत्री के अलावा राष्ट्रपति ने भी अपने संबोधन में किया. इतनी भारी टैक्स छूट देने से लाखों लोग टैक्स के दायरे से बाहर हो जायेंगे, जो करदाताओं का दायरा बढ़ाने की नीति के खिलाफ जाता है. आठ करोड़ भारतीय आयकर रिटर्न दाखिल करते हैं, लेकिन इनमें से मात्र 2.5 करोड़ लोग ही आयकर चुकाते हैं. बेशक खासकर शहरी इलाकों में उपभोग खर्च में आयी कमी को देखते हुए आयकर में यह कटौती जरूरी थी.

मध्यवर्ग की शिकायत यह भी थी कि ऊंची मुद्रास्फीति का असर उसकी क्रयशक्ति पर पड़ रहा है. टैक्स कटौती के बावजूद वित्त मंत्री को उम्मीद है कि कुल टैक्स संग्रह नॉमिनल जीडीपी से, जिसके 10.5 फीसदी होने की उम्मीद है, अधिक रहेगा. वैश्विक सुस्ती व उथल-पुथल तथा अपनी आर्थिक समीक्षा के कठोर आकलन को देखते हुए वित्त मंत्री का यह अनुमान देखने लायक है.


भारत वित्तीय मोर्चे पर व्याप्त अनिश्चय की अनदेखी नहीं कर सकता. केंद्र सरकार टैक्स के रूप में जो राजस्व हासिल करती है, उसका 49 प्रतिशत लिये गये कर्ज का ब्याज चुकाने में ही खर्च हो जाता है. सरकार द्वारा लिये जाने वाले कर्ज से, जिसके इस साल 15 ट्रिलियन रुपये होने का अनुमान है, ब्याज दर पर तो दबाव रहेगा ही, इससे निजी निवेश भी दूर भागेगा. अलबत्ता अगले साल राजकोषीय घाटा कम रहने, मुद्रास्फीति के घटने और बैंकों में पर्याप्त नकदी डाले जाने से रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति समिति की अपनी अगली बैठक में ब्याज दर कम करने के बारे में सोच सकता है. बजट की एक अन्य उल्लेखनीय बात विनियमन के क्षेत्र में सरलीकरण की कोशिश है.

आर्थिक समीक्षा में भी यह बात कही गयी है कि सरकार को तटस्थ रवैया अपनाना चाहिए और इंस्पेक्टर राज लागू करने के बजाय कारोबार को उद्यमियों पर छोड़ देना चाहिए. आर्थिक समीक्षा में भरोसे पर आधारित विनियामक व्यवस्था की बात कही गयी है. हालांकि इस संदर्भ में कमेटी के गठन के बाद ही पता चल पायेगा कि इस पर कितना अमल हुआ है. वित्त मंत्री ने बजट में शुल्क की सात दरें खत्म करने की घोषणा की. उन्होंने नये आयकर कानून की भी घोषणा की, जो कर प्रशासन को आधुनिक रूप देने और मुकदमों को घटाने के बारे में बताती है.


बजट में कृषि, पर्यटन, नागरिक उड्डयन, स्वच्छ ऊर्जा जैसे क्षेत्रों पर जरूरी पहल की गयी है. बजट में फुटवियर, खिलौने तथा कृषि प्रसंस्करण जैसे अधिक श्रम वाले क्षेत्रों को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता भी महसूस की गयी. हालांकि आने वाले वर्षों में इन क्षेत्रों में कितना निवेश आयेगा, यह देखने वाली बात होगी. कुल मिलाकर, यह एक सार्थक बजट है, जिसमें एक तरफ मध्यवर्ग को टैक्स कटौती का लाभ दिया गया है, तो दूसरी ओर, इसमें वित्तीय अनुशासन को बनाये रखने की प्रतिबद्धता भी दिखायी देती है. बजट में निजी क्षेत्र को फलने-फूलने का पर्याप्त अवसर देने के लिए विनियामक बंधनों को ढीला करने की स्वीकारोक्ति भी दिखायी पड़ती है. विश्व स्तर पर अनिश्चय और बाधाओं को देखते हुए बजट में बड़े सुधारों से उचित ही परहेज किया गया है. वित्त मंत्री के विगत जुलाई के बयानों से ही बजट में प्रोडक्शन इंसेटिव्स की तर्ज पर इंप्लॉयी लिंक्ड इंसेंटिव दिये जाने का अंदाज होने लगा था.

तथ्य यह है कि मजदूरी स्थिर है और रोजगार में वृद्धि नहीं हो रही. ऐसी स्थिति में कम से कम पांच लाख छोटे उद्यमों की शुरुआत होने पर ही बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन की संभावना बन सकती है, जो निश्चय ही रेगुलेटरी रिफॉर्म कमेटी की सिफारिश पर निर्भर करेगी. इस समय देश को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की भी आवश्यकता है, जिसमें भारी कमी आयी है. प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के जरिये देश में बड़े पैमाने पर डॉलर आता है. हम उम्मीद करें कि रेगुलेटरी रिफॉर्म कमेटी स्थिरता, निरंतरता और निवेश नीति की संभावना को महत्व देगी. देश की जनसांख्यिकी, शहरीकरण और तेजी से विकसित होती डिजिटल अर्थव्यवस्था के परिप्रेक्ष्य में घरेलू स्तर पर अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की दिशा में यह बहुत कारगर साबित होने वाली है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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