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जन विश्वास विधेयक से कारोबार होगा सुगम

इसका मुख्य उद्देश्य देश में व्यापार करने में सहूलियत बढ़ाना और जीवन सरल बनाना है. साथ ही, इससे अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी कम होगा.

हर्ष रंजन

वरिष्ठ पत्रकार

hr.journo@gmail.com

संसद ने जन विश्वास विधेयक पास कर दिया है. अब यह जल्दी ही कानून की शक्ल ले लेगा. इस विधेयक ने करोड़ों नागरिकों, व्यापारियों, सरकारी बाबुओं और अन्य को राहत प्रदान किया है. दरअसल, जन विश्वास विधेयक में 42 केंद्रीय अधिनियमों के 183 प्रावधानों को गैर-आपराधिक करने का प्रस्ताव है. आसान शब्दों में कहें, तो ऐसे कृत्य जिन्हें जाने-अनजाने में करने से आपराधिक मुकदमे चलते थे, और लोगों को जेल की सजा तक होती थी, उन्हें अब अपराध नहीं माना जायेगा, और उनमें मिलनी वाली सजा कम या खत्म कर दी जायेगी.

इसका मुख्य उद्देश्य देश में व्यापार करने में सहूलियत बढ़ाना और जीवन सरल बनाना है. साथ ही, इससे अदालतों पर मुकदमों का बोझ भी कम होगा. व्यापार करने में कई नियमों और कानूनों का पालन करना होता है. आज एक तरफ जहां हम हाइ स्पीड इंटरनेट, एआइ और इ-फाइल जैसे तमाम अत्याधुनिक तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं पचासों साल पुराने ऐसे जटिल, अतार्किक, अनुपयोगी और अनावश्यक कानून व्यवसायियों के रास्ते का रोड़ा बन अदालतों का काम बढ़ा रहे थे.

सरकार ने व्यवसायियों की सुविधा के लिये एक नेशनल सिंगल विंडो सिस्टम स्थापित किया है. उदाहरण के लिए, अगर कोई चमड़े का कारोबार शुरू करना चाहता है तो उसे इस एकल विंडो के माध्यम से सारी जानकारी मिल जायेगी कि उस पर कौन-कौन से नियम-कानून लागू होते हैं. फिर सारी अनुमतियां भी वहीं से प्राप्त की जा सकेंगी. केंद्र ने इस काम में अपने साथ राज्यों को भी शामिल करने की पहल की है, जो एक स्वागत योग्य कदम है.

साल 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद नरेंद्र मोदी ने अपने न्यू इंडिया के दृष्टिकोण को देश को बताना शुरू कर दिया था. एक आत्मनिर्भर, सहनशील और चुनौतियों को अवसर में बदल देने में सक्षम देश ही विश्व पटल पर तेजी से उभर सकता है. इसके लिये जरूरी है कि सरकार और जनता के बीच आपसी भरोसा और सहयोग बढ़े. लेकिन, क्या सरकारें अपने नागरिकों, अपने युवाओं पर खुल कर भरोसा करती थीं?

जवाब है, शायद नहीं. याद कीजिए वे दिन जब देश का युवा किसी शैक्षणिक संस्थान में अपने दाखिले के लिए या नौकरी के लिए आवेदन से पहले कैसे अपने सर्टिफिकेट और मार्कशीट की प्रति को किसी राजपत्रित कर्मचारी से ‘अटेस्ट’ कराने के लिये दर-दर भटकता था? पीएमओ में केंद्रीय मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह बताते हैं कि मेडिकल का फॉर्म भरने के लिए जब उन्हें अपना सर्टिफिकेट किसी गजेटेड ऑफिसर से अटेस्ट कराने के लिए कहा गया,

तो वे रातभर ऐसे किसी ऑफिसर की तलाश में सड़क छानते रहे. मोदी सरकार ने आने के साथ ही, सबका साथ-सबका विकास, का नारा दिया, जिसमें बाद में सबका विश्वास भी जोड़ा गया. इसे मूर्त रूप भी दिया गया, जब युवाओं के लिये गजेटेड ऑफिसर तलाशने और उनसे डॉक्यूमेंट अटेस्ट कराने के लिये विनम्र निवेदन करने का सिलसिला ही खत्म कर दिया गया.

जन विश्वास बिल में साफ तौर पर कहा गया है कि ‘सरकार देश के लोगों और विभिन्न संस्थानों पर भरोसा करे, यही लोकतांत्रिक शासन की आधारशिला है. पुराने नियमों का अभी भी लागू रहना विश्वास की कमी का कारण बनता है. नियमों के पालन के बोझ को कम करने से व्यवसाय प्रक्रिया को गति मिलती है और लोगों के जीवन यापन में सुधार होता है’. सरकार ने 22 दिसंबर, 2022 को लोकसभा में जन विश्वास (प्रावधानों में संशोधन) विधेयक, 2022 पेश किया था. इसके बाद इसे संसद की संयुक्त संसदीय समिति के पास भेजा गया.

समिति ने 19 मंत्रालयों से जुड़े करीब 42 अधिनियमों के 183 प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव दिया था. इनमें प्रेस और पुस्तक पंजीकरण अधिनियम 1867, भारतीय डाकघर अधिनियम 1898, औषधि एवं प्रसाधन अधिनियम 1940, सार्वजनिक ऋण अधिनियम 1944, फार्मेसी अधिनियम 1948, कॉपीराइट अधिनियम 1957, खाद्य निगम अधिनियम 1964, छावनी अधिनियम 2006 समेत 42 अधिनियम शामिल हैं. प्रेस पुस्तक और डाकघर जैसे कुछ कानूनी प्रावधान तो 150 सालों से भी पुराने हैं.

आज ऐसे कई कानून कितने तर्कसंगत होंगे? उदाहरण के लिए, खाद्य निगम अधिनियम 1964 पर गौर करें. इसके तहत कहा गया है कि ‘अगर कोई व्यक्ति भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) का नाम बिना उसकी अनुमति के लेता है, तो उसे छह महीने की सजा होगी’. इस कानून के बने छह दशक होने को हैं, मगर इसका अब तक एक बार भी इस्तेमाल नहीं हुआ है. ऐसे ही, छावनी अधिनियम के मुताबिक, यदि आप छावनी क्षेत्र से अपना सामान नॉन-बायो डिग्रेडेबल थैले में लेकर जा रहे हैं, अथवा आपके पास कोई भी नॉन-बायो डिग्रेडेबल सामान है, तो आपको सजा हो सकती है.

अब एक राहगीर इस बात की रासायनिक जांच कैसे करेंगे कि आपके पास ऐसा कोई सामान है या नहीं? जन विश्वास विधेयक आने वाले समय में व्यवसाय, व्यापार और जीवनशैली सरल बनाने में एक मील का पत्थर साबित होगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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