कनाडा में जारी भारत-विरोधी गतिविधियों से भारत को दो तरह का खतरा है. पहला यह कि वहां मौजूद अलगाववादी गुट भारत में खालिस्तान की अलग देश की मांग को फिर से हवा दे सकते हैं. दूसरा खतरा यह है कि इन गुटों के तार पाकिस्तान से जुड़े हैं. ऐसे गुटों पर लगाम लगाने के लिए टेरर फाइनैंसिंग, यानी उन्हें आतंकी गतिविधियों के लिए पैसे उपलब्ध करवाने का मुद्दा अहम होता है, और इसे कनाडा की सरकार ही रोक सकती है, या फिर फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स जैसे अंतर्सरकारी गुट यह काम कर सकते हैं.
लेकिन कनाडा के जी-7 देश और एक अमीर देश होने की वजह से इस पर रोक नहीं लग पा रही. इस वजह से भारत के लिए यह दोहरा खतरा बन जाता है क्योंकि कनाडा में मौजूद अलगाववादी गुट पाकिस्तान में मौजूद आतंकी संगठनों के साथ मिलकर भारत के लिए खतरा बढ़ा सकते हैं. पिछले दिनों एक खबर आयी थी कि दिल्ली स्थित पाकिस्तानी उच्चायोग में वीजा लेने के लिए गयी एक पंजाबी महिला को दो पाकिस्तानी अधिकारियों ने ये कहते हुए मदद करने की पेशकश की कि भारत में उन्हें परेशान किया जा रहा है, और वह इसके खिलाफ कोई अभियान शुरू करना चाहती हों, तो वे उनकी मदद करेंगे.
ऐसी घटनाओं से अंदाजा लग सकता है कि पाकिस्तान कश्मीर में सीमापार से आतंकवादी हरकतें करने के साथ-साथ पंजाब में अलगाववादी शक्तियों को बढ़ावा देता है. हम देख चुके हैं कि 80 के दशक में भी पंजाब में आतंकवादी गतिविधियों में पाकिस्तान का बड़ा हाथ था. ऐसे में पाकिस्तान और पंजाब के अलगाववादियों की सांठगांठ एक खतरनाक चुनौती बन चुकी है, जिसे भारत ने अभी तक काबू में किया हुआ है. कनाडा स्थित निज्जर या पन्नू जैसे अलगाववादी कई बार पाकिस्तान भी जा चुके हैं.
इसके अलावा कनाडा में भी पाकिस्तान की एक लॉबी होगी, जो भारत के अलगाववादियों को मदद कर रही होगी. पिछले एक साल से कनाडा में ऐसे तत्व फिर से सिर उठा रहे हैं. ऐसे में यदि कनाडा की सरकार ऐसे गुटों की आधिकारिक तौर पर मदद करती है, या उनकी बातों को नजरअंदाज करती है, और भारत की जायज चिंताओं के खिलाफ लोगों को भड़काती है, तो इससे स्वाभाविक तौर पर भारत के लिए परेशानी बढ़ेगी.
इसके अलावा, कनाडा में मौजूद आतंकवादियों ने भारत के प्रधानमंत्री, विदेश मंत्री या राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार को सीधे धमकी दी है. उन्होंने कनाडा में मौजूद भारतीय दूतावास के अधिकारियों और कर्मचारियों की तस्वीरें तक लगा दीं जिन्हें बड़ी मुश्किलों के बाद अभी हटाया जा सका है. ऐसी घटनाएं भारत के लिए बहुत घातक साबित हो सकती हैं.
भारत से पंजाब के लोगों ने 1970 के दशक में कनाडा जाकर बसना शुरू किया. कनाडा एक बहुत बड़ा मुल्क है, जो क्षेत्रफल के हिसाब से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है. लेकिन कनाडा की आबादी बहुत कम है. ऐसे में, उन्हें श्रमिकों की जरूरत रहती है. पंजाब के लोगों की यह खासियत रही है कि वह उद्यमी और मेहनती माने जाते हैं, और विषम परिस्थितियों में भी काम कर सकते हैं. ऐसे में पंजाब के बहुत सारे लोगों ने कानून और गैर-कानूनी तरीके से भी कनाडा जाना शुरू किया. कनाडा भी समय-समय पर भारत के लोगों को अपने यहां बुलाने के निर्णय लेता रहता है.
लेकिन मजदूर या कामगार तबके के रूप में, या उद्यमी बनकर गये भारतीय पंजाबी धीरे-धीरे काफी मजबूत होते गये. इसके बाद जब 1984 में भारत में सिख विरोधी दंगे हुए, तो भारत के बहुत सारे सिख लोगों ने देश छोड़कर अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा जैसे पश्चिमी देशों में बसने का फैसला किया. कनाडा में पहले से ही अच्छी तादाद में होने की वजह से सिखों के लिए कनाडा जाकर बसना ज्यादा आसान रहा. उन्होंने भारत में राजनीतिक तौर पर उनका दमन किये जाने के नाम पर कनाडा में शरण मांगी और फिर वहां बसे और वहीं के नागरिक बन गये.
कनाडा ने बहुत तेजी से उन्हें वहां बसने दिया और सारे अधिकार दिये. कनाडा कृषि क्षेत्र में भी काफी सशक्त रहा है और उन्हें कृषि कार्यों के लिए भी श्रम की आवश्यकता रहती है. भारत में पंजाब के किसान कृषि कार्यों में काफी कुशल समझे जाते रहे हैं और ऐसे में वे न केवल कनाडा में बसे, बल्कि उनकी अर्थव्यवस्था में भी अहम योगदान दिया. आज की तारीख में कनाडा में भारत से जाकर बसे लोगों की संख्या अच्छी-खासी है और वह अच्छी स्थिति में भी हैं. कनाडा में अभी लगभग 18 लाख भारतीय बसे हैं जिनमें से लगभग आठ लाख सिख हैं.
इनमें से मुश्किल से 70-80 लोग खालिस्तानी या अलगाववादी होंगे. हालांकि बाकी जगहों की तरह वहां भी ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जो खुलकर सामने नहीं आते और अपने काम से मतलब रखते हैं, और वे अभी जो कुछ भी हो रहा है उसे पसंद नहीं करते. इनके अलावा दूसरी बात यह है कि भारत से बहुत बड़ी संख्या में छात्र भी वहां पढ़ाई करने के लिए जाते हैं.
इसकी वजह से कनाडा की अर्थव्यवस्था को बहुत लाभ होता है. और तीसरी बात ये है कि कनाडा और भारत के बीच रक्षा और सुरक्षा मामलों पर खुफिया जानकारियों के सहयोग को लेकर मजबूत संबंध रहे हैं. ऐसे में यह बड़े दुख की बात है कि वहां की मौजूदा सरकार अपने छोटे से स्वार्थ के लिए इतने बड़े फायदों की बलि देने के लिए पाकिस्तान जैसे देश की श्रेणी में शामिल होना चाहता है.
कनाडा में खालिस्तानी आतंकवादी निज्जर की हत्या के मामले में भारत का हाथ होने की संभावना को लेकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रुडो ने पिछले सप्ताह जो विवादास्पद बयान दिया, उसके बाद अब दावा किया जा रहा है कि कनाडा ने अपने फाइव आइज सहयोगियों (अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा) के साथ साझा खुफिया जानकारी के आधार पर यह आरोप लगाया. लेकिन यदि ऐसी कोई खुफिया जानकारी है, तो भी उसे ठोस और विश्वसनीय होनी चाहिए.
विदेशी मिशनों पर फोन टैपिंग आदि एक सामान्य- सी बात होती है. लेकिन, जब तक कोई पुख्ता जानकारी नहीं हो, तब तक कोई बड़े दावे नहीं करने चाहिए जिनसे दो देशों की मित्रता, आपसी हितों या संप्रभुता पर असर पड़ता हो. इसके अलावा, ध्यान रखना चाहिए कि जिस व्यक्ति की मौत को लेकर हंगामा हो रहा है वह एक घोषित आतंकवादी है. यदि आप उसका समर्थन करेंगे, तो उससे आतंकवाद को बढ़ावा मिलेगा, क्योंकि आतंकवाद किसी एक देश की नहीं, बल्कि एक वैश्विक समस्या है.
(बातचीत पर आधारित)
(ये लेखक के निजी विचार हैं)