अगर हमारी अखंडता और संप्रभुता पर कोई खतरा होगा, तो हमें उसे रोकने के लिए कदम उठाना ही पड़ेगा. अब इससे अधिक भारत कनाडा से क्या कह सकता है कि अगर उन्हें लगता है कि किसी घटना में भारत शामिल है, तो उन्हें इस बारे में ठोस सबूत सामने रखना चाहिए. इसके बजाय कनाडा की ओर से सार्वजनिक रूप से आरोप लगाये गये और भारतीय उच्चायोग को मामले में डालने की कोशिश हुई. इससे तो यही संकेत मिलता है कि कनाडा भारत के साथ संबंधों को पूरी तरह से बिगाड़ना चाहता है.
भारत और कनाडा के बीच कूटनीतिक तनाव गंभीर हो गया है, पर यह स्थिति अचानक से नहीं बिगड़ी है. कनाडा के वर्तमान प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो हमेशा से वहां सक्रिय सिख अलगाववादियों एवं आतंकवादियों को संरक्षण देते रहे हैं. जब उनके पिता पियरे ट्रूडो सत्तर और अस्सी के दशक में कनाडा के प्रधानमंत्री थे, तब उनकी भी नीतियां इसी प्रकार की थीं. यह अनायास नहीं है कि कनाडा भारत विरोधी तत्वों की बड़ी शरणस्थली बना हुआ है. ये तत्व वहां राजनीतिक रूप से बहुत सक्रिय हैं और उनका लाभ ट्रूडो उठाते रहे हैं. पिछले साल जून में एक कुख्यात खालिस्तानी अलगाववादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या हो गयी थी. अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि इस हत्या के पीछे किसका हाथ है, पर कनाडा सरकार और प्रधानमंत्री ट्रूडो इसके लिए लगातार भारतीय कूटनीतिज्ञों, सरकारी एजेंसियों को जिम्मेदार ठहराते रहे हैं. इस आरोप के समर्थन में कनाडा की ओर कोई ठोस सबूत या सूचना भी भारत के साथ साझा नहीं किया गया है. सबूत देने के बजाय पिछले दिनों कनाडा ने वहां भारतीय उच्चायोग में कार्यरत कूटनीतिज्ञों को ‘पर्संस ऑफ इंटरेस्ट’ घोषित कर दिया, जिसकी पुष्टि भारतीय विदेश मंत्रालय ने की है. इसका मतलब यह है कि उन अधिकारियों को निज्जर की हत्या का दोषी बनाया जा सकता है. जो स्थापित अंतरराष्ट्रीय नियम हैं, उनके अनुसार कनाडा उन अधिकारियों को अवांछित घोषित कर सकता था और उन्हें भारत वापस भेज सकता था. पर उन्हें ‘पर्संस ऑफ इंटरेस्ट’ घोषित करना अनुचित था.
जैसे गंभीर आरोप कनाडा ने भारतीय अधिकारियों पर लगाये हैं, उससे उनके और उनके परिजनों के जीवन पर खतरा बढ़ गया है. कनाडा सरकार के रवैये से अलगावादियों और अपराधियों का मनोबल बढ़ा ही है. भारत लगातार कहता रहा है कि कनाडा के पास अगर कुछ सबूत हैं, तो वह साझा करे और फिर उस पर बातचीत होगी. अमेरिका के साथ यही हुआ. अमेरिका ने जब सूचनाओं को साझा किया, तो उस मसले पर चर्चा के लिए भारत ने एक कमिटी का गठन किया, जो इस समय अमेरिकी दौरे पर है. कनाडा के नकारात्मक रवैये को देखते हुए भारत ने वहां के उच्चायोग में अपने कर्मियों की संख्या कम कर दी थी तथा कनाडा के जो अधिकारी भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की कोशिश कर रहे थे, उनकी कटौती की गयी थी. कनाडा ने तनाव बढ़ाते हुए भारतीय उच्चायुक्त समेत छह कूटनीतिज्ञों को बहिष्कृत किया है, तो इसकी प्रतिक्रिया में भारत को भी उसी तरह का कदम उठाना पड़ा है. फिलहाल उच्चायोग का काम कनिष्ठ अधिकारियों के जिम्मे है. तो, अभी दोनों देशों के बीच राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध निश्चित रूप से सामान्य नहीं हैं. अब हमें देखना होगा कि वहां जो हमारे छात्र हैं और जो लोग वहां काम कर रहे हैं, उन्हें दूतावास संबंधी सेवाएं बिना किसी रुकावट के मिलती रहें. मुझे नहीं लगता है कि वर्तमान स्थिति का कोई विशेष प्रभाव व्यापार एवं वाणिज्य पर होगा. आगे कनाडा अगर कुछ और कदम उठाता है, तो भारत को भी उसका जवाब देना होगा क्योंकि कूटनीति संतुलन के साथ चलती है और वह सामने वाले के व्यवहार पर आधारित होती है.
जैसा पहले कहा गया है कि अमेरिका ने वहां के एक मामले को लेकर भारत के साथ सूचनाओं को साझा किया था और उस पर भारत ने कमिटी गठित की है. पर कनाडा लंबे समय से तरह-तरह के आरोप ही लगाता रहा है. ऐसे मामलों के लिए कुछ स्थापित प्रक्रियाएं हैं. दो देश खुफिया चैनलों से, राष्ट्रीय सुरक्षा काउंसिल सचिवालय के जरिये, कूटनीतिक माध्यमों से सूचनाओं का आदान-प्रदान कर सकते हैं. उसके आधार पर दोनों पक्ष उस पर बातचीत करते हैं और समाधान निकालने का प्रयास करते हैं. यह किसी मसले के हल का परिपक्व रास्ता है. दुर्भाग्य से कनाडा के मामले में ऐसा होते हुए हमने नहीं देखा. यह रेखांकित किया जाना चाहिए कि कनाडा, अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों ने बिना किसी आधार और सबूत के अनेक देशों को तबाह किया है. उदाहरण के रूप में हम अफगानिस्तान, इराक, लीबिया आदि देशों को देख सकते हैं. कोई अतिवादी या अलगाववादी समूह इनको समर्थन करता है, तो उसकी गलतियों को ये लोग नहीं देखते. आज पश्चिम के अनेक देशों में भारत विरोधी समूह और लोग सक्रिय हैं तथा वे देश उन्हें रोकने के बजाय प्रोत्साहित ही करते हैं. हमारे लिए तो सबसे प्राथमिक विषय है राष्ट्रीय सुरक्षा. अगर हमारी अखंडता और संप्रभुता पर कोई खतरा होगा, तो हमें उसे रोकने के लिए कदम उठाना ही पड़ेगा. अब इससे अधिक भारत कनाडा से क्या कह सकता है कि अगर उन्हें लगता है कि किसी घटना में भारत शामिल है, तो उन्हें इस बारे में ठोस सबूत सामने रखना चाहिए. इसके बजाय कनाडा की ओर से सार्वजनिक रूप से आरोप लगाये गये और भारतीय उच्चायोग को मामले में डालने की कोशिश हुई. इससे तो यही संकेत मिलता है कि कनाडा भारत के साथ संबंधों को पूरी तरह से बिगाड़ना चाहता है.
कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो ने जो नकारात्मक रवैया अपनाया है, इसका एक आयाम वहां की घरेलू राजनीति से भी जुड़ता है. हालिया सर्वेक्षण में बताया गया है कि ट्रूडो की लोकप्रियता बहुत कम हो गयी है और अगला चुनाव उनके लिए मुश्किल हो सकता है. कुछ समय पहले गुरमीत सिंह की पार्टी ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया था. हालांकि उन्होंने सरकार को नहीं गिरने दिया. जाहिर है कि इसके बदले में कोई सौदेबाजी हुई होगी. खालिस्तान समर्थक लॉबी को तुष्ट करने के लिए ट्रूडो भारत के साथ तनाव बढ़ा रहे हैं ताकि उनका वोट उनको मिल जाए. ट्रूडो ने भारत पर कनाडा के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप का भी बेबुनियाद आरोप लगाया है. इसमें एक हास्यास्पद बात यह भी है कि भारत के साथ-साथ उन्होंने चीन और रूस का भी नाम लिया है. भारत और चीन का नाम एक साथ लेना अजीब बात है क्योंकि चीन के साथ उनके दूसरे तरह के रिश्ते हैं. इससे स्पष्ट होता है कि ट्रूडो अपरिपक्व राजनीति और कूटनीति कर रहे हैं. कनाडा या अन्य पश्चिमी देश, जो भारत विरोधी तत्वों को समर्थन और संरक्षण दे रहे हैं, उन्हें यह समझना चाहिए कि यदि भारत के साथ उनकी रणनीतिक सहभागिता है, तो उन्हें भारत की सुरक्षा, अखंडता और संप्रभुता को भी प्राथमिकता देना होगा. तभी वे भारत के मित्र राष्ट्र कहे जा सकते हैं. उन्हें सुनिश्चित करना चाहिए कि उनकी धरती से भारत के विरुद्ध कोई भी गतिविधि नहीं हो.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)