जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने तथा बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने की दिशा में केंद्र सरकार ने एक अहम कदम उठाते हुए कार्बन क्रेडिट का फायदा पाने वाली तकनीकों की सूची जारी कर दी है. इसमें कार्बन सोखने और भंडारण, स्वच्छ ऊर्जा भंडारण, सौर, पवन, हाइड्रोजन, बायो गैस, ग्रीन अमोनिया आदि से संबंधित तकनीकें शामिल हैं. पेरिस जलवायु समझौते के अनुसार इन तकनीकों के इस्तेमाल के बदले अंतरराष्ट्रीय बाजार में कार्बन क्रेडिट हासिल किया जा सकता है.
इसका अर्थ यह है कि जिन तकनीकों के उपयोग से कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित किया जायेगा, उसके एवज में ऐसी पहलों में निवेश करनेवाले देशों एवं उद्यमों को वित्तीय सहयोग मिलेगा, जो टैक्स छूट के रूप में हो सकता है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि इस सूची को घोषित करने का उद्देश्य उभरती तकनीकों के देश में निवेश को आकर्षित करना है. फिलहाल यह सूची तीन वर्षों के लिए है, जिसे बाद में बढ़ाया जा सकता है. इस संबंध में जापान और सिंगापुर पहले ही भारत के साथ सहयोग करने की इच्छा जता चुके हैं.
उल्लेखनीय है कि ग्लासगो जलवायु सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विश्व समुदाय के सामने यह प्रतिबद्धता व्यक्त की थी कि 2070 तक भारत कार्बन उत्सर्जन मुक्त देश बन जायेगा. इसका मतलब यह है कि उस समय तक हमारी सारी ऊर्जा आवश्यकताएं स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों से पूरी होने लगेंगी. वर्ष 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को 450 गीगावाट तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है. हालांकि बीते वर्षों में स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन, विशेषकर सौर ऊर्जा, के क्षेत्र में प्रगति उत्साहजनक है, लेकिन इस क्षेत्र में बड़े निवेश के साथ उच्च तकनीक की आवश्यकता भी है.
कार्बन क्रेडिट देने के माध्यम से निवेश में बढ़ोतरी की संभावना तो है ही, साथ ही ऐसी तकनीकें भी देश में आ सकेंगी, जो ऊर्जा उत्पादन, वितरण और उपभोग की व्यवस्था को बेहतर बनायेंगी. आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत सरकार विदेशी कंपनियों को देश में विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त उपक्रम लगाने के लिए आमंत्रित कर रही है. इससे देश में तकनीक के विकास को भी गति मिलेगी.
भारतीय अर्थव्यवस्था के तेजी से बढ़ने तथा बड़ी आबादी की जरूरतों को पूरा करने के लिए हमें बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता है. ऐसे में बहुत जल्दी हम जीवाश्म-आधारित ऊर्जा स्रोतों को छोड़ने की स्थिति में नहीं हैं. लेकिन अगर स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धता में जैसे-जैसे गति आयेगी, वैसे-वैसे हम वैकल्पिक स्रोतों को अपनाने लगेंगे.