16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

जाति गणना से बदलेगी राजनीति

पहले ऐसा लग रहा था कि विपक्षी दल जाति गणना को लेकर केवल शोर करते रहेंगे और चुनाव में यह मुद्दा प्रभावी नहीं होगा. लेकिन, इस मुद्दे की गर्माहट का अंदाजा तब मिला, जब विपक्ष ने महिला आरक्षण में भी ओबीसी आरक्षण की मांग की, और भाजपा को सफाई देनी पड़ी.

विपक्षी दल लगभग एक साल से देश में जाति-गणना की मांग कर रहे थे. भारतीय जनता पार्टी इस मुद्दे पर बैकफुट पर थी. उसके पास इसे लेकर टालमटोल करने के बारे में कोई खास जवाब नहीं था. भाजपा ने कुछ महीनों से एक तर्क खोज लिया था कि कुछ राज्यों में ऐसी गणना तो हुई, मगर आंकड़े जारी नहीं किये गये. वे कर्नाटक का उदाहरण देकर कांग्रेस को घेरने की कोशिश करते थे. ऐसे ही बिहार को भी घेरने की कोशिश करते थे और विपक्ष भी बचता दिखता था. लेकिन अब बिहार जाति सर्वेक्षण करने और उसकी रिपोर्ट जारी करनेवाला देश का पहला राज्य बन गया है. इससे बीजेपी के हाथ से विपक्ष को घेरने का एक हथियार निकल गया है. राजनीतिक नजरिये से देखें तो अभी बीजेपी-एनडीए और विपक्षी गठबंधन के बीच शह और मात का खेल चल रहा है.

महिला आरक्षण विधेयक पर चर्चा के समय लग रहा था कि भाजपा चार कदम आगे निकल गयी है और उसने ऐसा काम कर डाला जिसका कोई विरोध नहीं कर सका. विपक्ष के हाथ में बस महिला आरक्षण में ओबीसी आरक्षण की मांग का मुद्दा रह गया था, फिर भी उन्होंंने बिल को समर्थन दिया. लेकिन बिहार में जातियों के आंकड़े आने के बाद क्रिकेट की भाषा में भाजपा थोड़ा-सा बैकफुट पर चली गयी है. विपक्ष ने पिच तैयार कर दी है, और वे फ्रंटफुट पर बैटिंग करने की स्थिति में दिखाई दे रहे हैं. अब ये खेल चुनाव होने तक चलता रहेगा.

ऐसा लगने लगा है कि 2024 के आम चुनाव में सामाजिक न्याय का मुद्दा जोर पकड़ेगा. पहले ऐसा लग रहा था कि विपक्षी पािर्टयां जाति गणना को लेकर केवल शोर करती रहेंगी और चुनाव में यह मुद्दा प्रभावी नहीं होगा. लेकिन, इस मुद्दे की गर्माहट का थोड़ा अंदाजा तब मिला जब विपक्षी दलों ने महिला आरक्षण में भी ओबीसी आरक्षण की मांग की, और बीजेपी को इस बारे में सफाई देनी पड़ी. तब बीजेपी के तमाम मंत्रियों ने इन आंकड़ों का सहारा लेना शुरू कर दिया कि उनकी पार्टी से 85 ओबीसी सांसद हैं, और 29 ओबीसी मंत्री हैं, और इतने ओबीसी विधायक हैं. भाजपा को यह लगने लगा था कि जनता विपक्ष के हमले को कहीं गंभीरता से ना ले ले, और इसलिए उसने प्रमाण देना शुरू कर यह जताने की कोशिश की कि विपक्ष भले ही ओबीसी समुदाय का हिमायती बनता हो, लेकिन उन्हें असल प्रतिनिधित्व तो भाजपा ने दिया है. उन्होंने तब ये भी कहा कि उनके तो प्रधानमंत्री भी ओबीसी हैं. उस समय ऐसा लगने लगा कि यह 2024 के चुनाव में बड़ा मुद्दा बन सकता है. बिहार में जातीय जनगणना के आंकड़े सामने आने के बाद अब इस बारे में कोई शक नहीं रह गया है कि आनेवाले चुनाव में दोनों खेमों की ओर से सामाजिक न्याय के इर्द गिर्द गोलबंदी के प्रयास किये जाएंगे.

एक सवाल यह भी जरूर उठ रहा है कि क्या अगले चुनाव में फिर एक बार मंडल और कमंडल के मुद्दों की वापसी हो सकती है. इसका पता तो चुनाव के नतीजों के बाद चलेगा लेकिन ऐसा लगता है कि उसकी आहट जरूर सुनाई पड़ी है. बल्कि यह कहना सही होगा कि आहट तो पहले से सुनाई देने लगी थी, अब वह दरवाजे पर दस्तक देने लगी है. अगले चुनाव में मंडल 2.0 की संभावना पूरी तरह से दिखाई दे रही है.

मैच अब थोड़ा और खुल गया है. एक साल पहले तक ऐसा लगता था कि एक तरफ एक बहुत मजबूत टीम है, और दूसरी तरफ एक कमजोर टीम है जो बिखरी हुई है. ऐसे में मुकाबला एकतरफा दिखता था, और लगता था कि बस देखना यही है कि भाजपा अपने विरोधियों को कितने अंतर से हराएगी. लेकिन, जैसे-जैसे विपक्षी दल संगठित हो रहे हैं या होने का प्रयास कर रहे हैं, और अब जब उन्हें एक मुद्दा मिल गया है जो अपने आप में एक बड़ा पैकेज है, तो 2024 का मुकाबला अब पहले के मुकाबले ज्यादा रोमांचक बन गया है. बिहार की जातीय गणना केवल बिहार का मुद्दा नहीं है. इसे लेकर विपक्षी पार्टियां भाजपा की सरकार वाले राज्यों में दबाव बनाने का प्रयास करेंगी. वे बिहार के आंकड़ों को लेकर उन राज्यों के ओबीसी वोटरों तक पहुंचने और भाजपा को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश करेंगी.

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें