हाल ही में फूड एंड सेफ्टी स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआइ) ने खाने-पीने की वस्तुओं की पैकिंग के लेबल (एफओपीएल) के लिए खाद्य पदार्थ की गुणवत्ता के स्तर के बारे में लिखने की पद्धति पर चर्चा प्रारंभ की है. अब बहस छिड़ गयी है कि खाने के पैकेट पर भोजन की गुणवत्ता के बारे में ‘स्वास्थ्य स्टार रेटिंग’ की जाए या हानिकारक खाद्य के बारे में चेतावनी लिखी जाए. एफएसएसएआइ ने अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड इंडस्ट्री के दबाव में यह निर्णय लिया है कि हर खाद्य पर एक से शुरू कर पांच सितारे तक रेटिंग की जायेगी. इससे उपभोक्ता हितों की अनदेखी हुई है.
हमारे देश में स्वास्थ्यप्रद खाना बनाने और खाने की परंपरा है. हमारे भोजन की थाली में प्रोटीन, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट और अन्य पोषक तत्व संतुलित रूप में पाये जाते हैं, लेकिन कुछ समय से प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों का चलन बढ़ा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि ये खाद्य कैंसर समेत कई अन्य बीमारियों का कारण बन रहे हैं. कंपनियां चीनी, नमक (सोडियम) और वसा (फैट्स) का अत्यधिक मात्रा में उपयोग करती हैं.
मधुमेह का रोग, ब्लडप्रेशर, किडनी और लीवर आदि की बीमारियां चीनी, सोडियम और वसा के आधिक्य के कारण हो रही हैं. पोषण के बारे में जागरूकता की कमी और खाद्य पैकेटों पर चेतावनी नहीं होने से लोग अनजाने में इन हानिकारक खाद्य पदार्थों का सेवन कर रहे हैं. यदि चेतावनी दर्ज हो कि इसमें एक सीमा से ज्यादा चीनी, नमक अथवा वसा है, तो उपभोक्ताओं को दुष्प्रभावों के बारे में जानकारी मिल पायेगी.
चिली, ब्राजील, इजराइल सहित कई देशों ने खाद्य पैकेटों पर इस प्रकार की चेतावनी अंकित करने का निर्णय किया है. आज जब हम निर्णय कर रहे हैं कि उपभोक्ताओं को शिक्षित किया जाये, तो हानिकारक खाद्यों के बारे में चेतावनी देने की बजाय अस्वास्थ्यकारी खाद्यों को स्टार रेटिंग देकर उनको वैधता प्रदान करे, यह सही नहीं होगा.
एफएसएसएआई द्वारा हितधारकों की एक बैठक 15 फरवरी, 2022 को आयोजित हुई. जिसमें उद्योगों और उनके संगठनों के 17 सदस्य थे, एक विश्व स्वास्थ्य संगठन से, दो सदस्य आइआइएम अहमदाबाद से, तीन सदस्य उपभोक्ता संगठनों से, एक सदस्य विज्ञान संबंधित संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) से था. एफएसएसएआइ अफसरों में से नौ लोग विशेषज्ञ श्रेणी के थे.
बैठक में आइआइएम अहमदाबाद और डेकस्टर कंसल्टेंसी प्राइवेट लिमिटेड द्वारा प्रायोजित एक अध्ययन का हवाला देकर बताया गया कि लोगों ने राय दी है कि फूड पैकेट पर स्वास्थ्य स्टार रेटिंग की व्यवस्था को अपनाया जाये. उपभोक्ता संगठनों के दो प्रतिनिधियों ने और देश की सबसे बड़ी विज्ञान एवं पर्यावरण संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायर्नमेंट के प्रतिनिधि ने इस निर्णय के खिलाफ अपना मत दिया. लेकिन उनके मत को दरकिनार करते हुए कहा गया कि 20 हजार लोगों के सर्वे का महत्व ज्यादा है, इसलिए हितधारकों को हेल्थ स्टार रेटिंग पर ही अपना मत देना होगा.
आइआइएम अहमदाबाद के सर्वेक्षण के अनुसार भी अवांछित पोषक तत्वों की अधिकता होने पर खरीद के इरादे को कम करने के संदर्भ में चेतावनी का विकल्प बेहतर आंका गया है. लेकिन उसके बावजूद रिपोर्ट में पसंदीदा विकल्प के रूप में एचएसआर की सिफारिश, जो उपभोक्ता को स्वास्थ्य जोखिम को समझने तक नहीं देती है, इस रिपोर्ट के लेखकों की निष्पक्षता पर संदेह का कारण बन रही है.
हितधारकों की बैठक, जिसमें हेल्थ स्टार रेटिंग के बारे में निर्णय हुआ, उसमें ना केवल बड़ी संख्या में कंपनियों के प्रतिनिधि मौजूद रहे, बल्कि विशेषज्ञों में भी कुछ ऐसे लोग थे जो कंपनियों से संबद्ध हैं. ऑस्ट्रेलिया विश्व का एकमात्र एेसा देश है, जिसमें हेल्थ स्टार रेटिंग की व्यवस्था है, जबकि अधिकांश देशों में जहां एफओपीएल की व्यवस्था है, उसमें हेल्थ स्टार रेटिंग का नहीं बल्कि चेतावनी का प्रावधान है.
किसी भी खाद्य पदार्थ की स्टार रेटिंग निश्चित करने के लिए एक लॉगरिदम या फाॅर्मूले का प्रयोग किया जाता है. इस फाॅर्मूले को ग्रेग गैम्ब्रिल नाम के जिस व्यक्ति ने बनाया था, वो भी फूड इंडस्ट्री का ही हिस्सा था, इसलिए यह हितों के टकराव का मामला है. आॅस्ट्रेलिया के खाद्य वैज्ञानिकों में भी यह चिंता है कि कंपनियों के दबाव में हेल्थ स्टार रेटिंग की व्यवस्था के चलते उपभोक्ताओं का स्वास्थ्य खतरे में पड़ रहा है.
इस फाॅर्मूले के अनुसार, किसी भी हानिकारक खाद्य पदार्थ में यदि कोई पोषक तत्व जैसे फल के जूस आदि को मिला दिया जाये, तो उसकी स्टार रेटिंग पांच सितारे तक पहुंच सकती है. यदि अधिक चीनी वाले किसी पेय पदार्थ में संतरे का रस मिला दिया जाये, तो उसे अधिक स्टार मिल जायेंगे और उपभोक्ता अनजाने में ही हानिकारक
खाद्यों का सेवन करेगा. इसकी बजाय अगर अधिक चीनी, नमक एवं वसा के बारे में चेतावनी अंकित हो, तो उपभोक्ता को निर्णय लेने में सुविधा तो होगी ही उसका स्वास्थ्य भी बेहतर किया जा सकेगा. पहला उद्देश्य लोगों की स्वास्थ्य रक्षा का होना चाहिए, न कि कंपनियों के लाभ का. इस निर्णय प्रक्रिया में बड़ी संख्या में खाद्य कंपनियों की उपस्थिति एफएसएसएआइ के निर्णय की निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाती है. स्वास्थ्य मंत्रालय का दायित्व है कि कंपनियों के दबाव में हानिकारक हेल्थ स्टार रेटिंग की बजाय हानिकारक खाद्य पदार्थों के संबंध में स्पष्ट चेतावनी का प्रावधान हो.