आय वृद्धि की चुनौती
विश्व बैंक ने भारत, चीन समेत कई देशों को आगाह किया है कि मध्य आय के स्तर पर ठिठके रहने से बचने के लिए उन्हें ठोस उपाय करने होंगे. जिन देशों की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) 1,1136 से 13,845 डॉलर के बीच है, उन्हें मध्य आय वाले देश कहा जाता है.
Indian Economy : भारतीय अर्थव्यवस्था का उत्तरोत्तर विस्तार हो रहा है और इसकी वृद्धि दर विश्व में सर्वाधिक है. लेकिन उस अनुपात में प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी नहीं हो रही है. वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के संकल्प को साकार करने के लिए आवश्यक है कि आय में निरंतर उल्लेखनीय वृद्धि हो. यह एक बड़ी चुनौती है. विश्व बैंक ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा है कि अमेरिका के प्रति व्यक्ति आय के एक-चौथाई स्तर तक पहुंचने में भारत को 75 वर्ष लग सकते हैं. इसका अर्थ यह हुआ कि इस सदी के अंत तक ही हम विकसित राष्ट्र की श्रेणी में आ सकेंगे.
विश्व बैंक ने भारत, चीन समेत कई देशों को आगाह किया है कि मध्य आय के स्तर पर ठिठके रहने से बचने के लिए उन्हें ठोस उपाय करने होंगे. जिन देशों की प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) 1,1136 से 13,845 डॉलर के बीच है, उन्हें मध्य आय वाले देश कहा जाता है. भारत में यह अभी 2,500 डॉलर है, जो इस श्रेणी की उच्च सीमा से बहुत कम है. ऐसे में भारत लंबे समय तक इस श्रेणी में फंसा रह सकता है. उल्लेखनीय है कि कई देशों के साथ-साथ भारत में भी प्रजनन दर घट रही है और कुछ ही दशक में कामकाजी आयु के लोगों की संख्या में कमी आने का सिलसिला शुरू हो जायेगा. इसके अलावा जलवायु परिवर्तन और पर्यावरण संकट के कारण पैदा होने वाली समस्याओं की भी गंभीर चुनौती है.
साल 1990 से अब तक केवल 34 मध्य आय वाले देश ही उच्च आय श्रेणी में पहुंच सके हैं. इनमें एक-तिहाई ऐसे देश हैं, जो यूरोपीय संघ में शामिल होने के कारण विकसित हुए हैं या उनके यहां तेल के भंडार मिले. मध्य आय श्रेणी से बाहर निकलने के लिए भारत को डॉलर मूल्य में आठ प्रतिशत की नॉमिनल दर से 2047 तक बढ़ोतरी करनी होगी. इस प्रक्रिया में मौजूदा और भावी मुश्किलों के साथ-साथ अचानक आये संकट भी बाधा बन सकते हैं. उदाहरण के लिए, कुछ साल पहले आयी कोरोना महामारी का असर अभी भी बना हुआ है. उस दौर में विकास दर में बड़ी कमी आयी थी.
बीते 25 वर्षों में नॉमिनल वृद्धि दर नौ प्रतिशत रही है, पर इसे आगे जारी रखने के लिए कुछ विशेष प्रयत्नों की आवश्यकता है. विश्व बैंक ने इसके लिए निवेश, विदेशी तकनीक और अन्वेषण पर जोर देने की सलाह दी है. इन कारकों ने विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, लेकिन आगे भी ऐसा ही होगा, यह कह पाना मुश्किल है. इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ-साथ शिक्षा, संस्थान, स्वास्थ्य आदि पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता अब और बढ़ गयी है. शोध एवं अनुसंधान को भी गति देने की जरूरत है. यह सब कठिन है, पर असंभव नहीं.