लंबे समय से वैज्ञानिक हमें आगाह करते रहे हैं कि धरती के बढ़ते तापमान, जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन के बारे में त्वरित कदम उठाने की जरूरत है. एक हालिया विश्लेषण में विशेषज्ञों के एक समूह ने रेखांकित किया है कि इन कारणों से मानवीय समाज वैश्विक स्तर पर तबाह हो सकता है और हमारा अस्तित्व ही मिट सकता है. इस चेतावनी का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि इस जोखिम का समुचित आकलन भी नहीं किया गया है.
वैज्ञानिकों के एक अंतरराष्ट्रीय दल की यह राय नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के जर्नल में प्रकाशित हुई है. हमारी धरती का इतिहास इंगित करता है कि जब भी सामूहिक रूप से जीव विलुप्त हुए हैं, उसमें जलवायु परिवर्तन की भूमिका रही है. इतना ही नहीं, इस कारक की वजह से साम्राज्यों का पतन हुआ है और इतिहास में निर्णायक बदलाव हुए हैं. हम यह चर्चा तो अक्सर करते हैं कि तापमान में बढ़ोतरी से मौसम में बहुत फेर-बदल होते हैं.
प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति बढ़ती जा रही है. भारत में हम अभी कमजोर मानसून से जूझ रहे हैं. यूरोप में तापमान अभूतपूर्व स्तर पर है. कई देश बहुत अधिक बरसात से आयी बाढ़ या बारिश न होने की वजह से सूखे का सामना कर रहे हैं. लेकिन जलवायु परिवर्तन का असर इससे भी कहीं ज्यादा मारक है. वैज्ञानिकों ने रेखांकित किया है कि यह वित्तीय संकट, सामुदायिक संघर्ष और बीमारियों के प्रसार का भी कारण है तथा इन समस्याओं से अन्य आपदाएं भी आ सकती हैं.
इस वर्ष की शुरुआत में सामान्य से अधिक तापमान होने से हमारे देश में गेहूं की पैदावार प्रभावित हुई है. कमजोर मानसून से खरीफ की बुवाई कम हुई है. यूरोप की गर्मी से वहां खाद्यान्न उत्पादन में बहुत कमी आने की आशंका है. ऐसे में खाद्यान्न संकट और मुद्रास्फीति का गंभीर होना स्वाभाविक है. कई देशों के बीच और देशों के भीतर भी पानी को लेकर तनाव लगातार बढ़ता जा रहा है.
पलायन व विस्थापन की समस्या भी जलवायु परिवर्तन से गहन हो रही है. इसके आर्थिक परिणामों से सामाजिक ताना-बाना भी बिखरने लगा है. ऐसे में युद्धों, गृह युद्धों और महामारियों का जोखिम बढ़ता जा रहा है, लेकिन इस पहलू की ओर विश्व समुदाय का ध्यान न के बराबर है. अगर धरती के तापमान में मामूली बढ़ोतरी ऐसी भयावह स्थिति पैदा कर सकती है, तो भविष्य के बारे में अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है.
अभी तक जो आकलन हुए हैं और जिन पर जलवायु सम्मेलनों में चर्चा हुई है, उनका आधार धरती के तापमान का 1.5 डिग्री सेल्सियस होना है. अगर ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन मौजूदा गति से होता रहा, तो 2100 तक तापमान 2.1 से 3.9 डिग्री सेल्सियस के बीच हो सकता है. यदि मौजूदा संकल्पों को पूरी तरह निभाया जाता है, तब यह 1.9 से 03 डिग्री के बीच रह सकता है. इसलिए हमें जलवायु परिवर्तन पर नये सिरे से सोचने की जरूरत है.