रोजगार के अवसर गढ़ने का मौका
अब हमें विकेंद्रित आर्थिकी के लिए पहलकदमी करनी होगी, ताकि रोजगार और आमदनी के मौके बन सकें. लौटते कामगारों के लिए गांवों में व्यवस्था नहीं होगी, तो अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है.
रामबहादुर राय, वरिष्ठ पत्रकार
delhi@prabhatkhabar.in
साल 2019 के चुनाव के दौरान बहुत सारे लोगों का मानना था कि भाजपा को बहुमत नहीं मिलेगा, पर मेरा स्पष्ट कहना था कि मोदी सरकार बड़े बहुमत से वापसी करेगी. साल 1952 से 1957 के बीच पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली सरकार की सफलता बहुत अधिक नहीं थी, लेकिन उनकी लोकप्रियता बहुत बढ़ी थी. इसलिए 1952 की तुलना में 1957 में कांग्रेस को ज्यादा बड़ा जनादेश हासिल हुआ.
ठीक वैसा ही 2014 से 2019 के बीच हुआ, जब भारत सरकार की उपलब्धियां लोगों की उम्मीदों के अनुरूप तो नहीं रही थीं, परंतु प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी में लोगों का भरोसा पहले से ज्यादा बढ़ गया था. पिछड़े, दलित, वंचित और हाशिये के वर्गों के लोगों, जो कांग्रेस, लेफ्ट या सोशलिस्ट खेमों में बंटे हुए थे, का झुकाव 2019 में भाजपा के पक्ष में हुआ. पिछले चुनाव में नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और अमित शाह की सांगठनिक कौशल ने अधिक सफलता प्राप्त की.
इस सरकार के एक साल के कार्यकाल को हमें दो हिस्सों में देखना चाहिए. एक हिस्सा है, जो सरकार के पिछले कार्यकाल के बचे हुए एजेंडे थे, उन्हें पांच-छह महीने में पूरा कर दिया. यह किसी ने कल्पना भी नहीं की थी कि इतनी जल्दी ऐसे सपने पूरे हो जायेंगे, जो भाजपा के समर्थक बहुत लंबे अरसे से देखते आये थे. यह एजेंडा था- जम्मू-कश्मीर का पुनर्गठन. इस पर लोगों का ध्यान बहुत कम गया है कि जम्मू-कश्मीर देश का पहला ऐसा राज्य है, जहां पंचायती राज प्रणाली को ठीक से लागू किया गया है.
वहां की पंचायत अपने निर्णय स्थानीय स्तर पर ले सकती है और उन्हें लागू कर सकती है. उसे राज्य सरकार या जिला प्रशासन पर निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है. उसके पास समुचित संसाधन हैं. इसे मैं केंद्र सरकार की सबसे बड़ी सफलता मानता हूं, क्योंकि महात्मा गांधी, राम मनोहर लोहिया, जयप्रकाश नारायण, पंडित दीनदयाल उपाध्याय जैसे लोगों ने पंचायती व्यवस्था की बात की थी तथा इसे जम्मू-कश्मीर में लागू किया गया है. उम्मीद है कि पंचायत प्रणाली के रास्ते में जो अवरोध हैं, उन्हें सरकार दूर करेगी.
अनुच्छेद 370 के बारे में पंडित नेहरू ने खुद कहा था कि यह घिसते-घिसते समाप्त हो जायेगा, लेकिन उनके उत्तराधिकारियों ने निहित स्वार्थ के कारण उसे बनाये रखा. संविधान सभा की बहसों के हवाले से उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने अपने एक लेख में यह भी बताया है कि इस अनुच्छेद के बारे में पंडित नेहरू ने शेख अब्दुल्ला को डॉ भीमराव आंबेडकर से बातचीत करने के लिए भेजा था. तब उन्होंने कहा था कि आप यह चाहते हैं कि भारत सीमाओं की रक्षा करे और विकास कार्य करे, लेकिन उसका कोई आदेश जम्मू-कश्मीर पर लागू न हो, तो मैं ऐसा नहीं कर सकता, यह देशद्रोह के समान होगा.
फिर इस प्रस्ताव को गोपालस्वामी आयंगर के द्वारा रखवाया गया. मुझे संदेह है कि संविधान सभा की बहसों का बड़ा हिस्सा हटा दिया गया है. राम मंदिर के सवाल पर भाजपा का हमेशा से कहना था कि या तो हिंदू-मुस्लिम आपस में तय कर लें या संसद कानून बना दे या सर्वोच्च न्यायालय निर्णय कर दे. लेकिन तीनों रास्ते असंभव लगते थे, पर अदालत की संविधान पीठ ने एक ऐसा फैसला दिया, जिसकी सभी ने सराहना की. इसे मैं नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और कार्य-कौशल की सफलता मानता हूं. इस सरकार की यात्रा तो चल रही ही रही है और इससे लोगों की बहुत सारी आकांक्षाएं हैं, पर इस क्रम में यह आवश्यक था कि कुछ ठोस कदम उठाये जाएं.
कोरोना वायरस के संक्रमण का संकट अप्रत्याशित है, परंतु भारत सरकार सराहनीय ढंग से इसका सामना कर रही है. इसमें अभी तक कहीं चूक नहीं हुई है. राज्य सरकारें प्रवासी कामगारों के बारे में ठीक से योजना नहीं बना सकी हैं, पर लॉकडाउन का निर्णय और चरणबद्ध तरीके से उसमें ढील देने की कवायद बहुत प्रभावी रहे हैं.
लोगों में भय है और यह भय कोरोना का कम है, मौत का ज्यादा है, लेकिन इस भय के माहौल में भी शासन, प्रशासन, स्वास्थ्यकर्मी, पुलिस, मीडिया आदि के लोग उत्साह से अपना काम कर रहे हैं. खतरे के इस बावजूद काम करने के उत्साह का एक कारण यह है कि लोग देख रहे हैं कि प्रधानमंत्री स्वयं एक क्षण भी बिना गंवाये कोरोना के खिलाफ मुहिम में लगे हुए हैं. कोरोना एक वैश्विक संकट है और इससे भारत भी अछूता नहीं है.
इससे राजनीतिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था, रहन-सहन के ढंग के सभी पहलू प्रभावित होंगे. नयी शुरुआत कैसे होगी, यह बड़ा सवाल है. केंद्र और राज्यों का टकराव हमारी राजनीति की बड़ी समस्या रही है, पर इस दौर में दोनों के बीच जो सहयोग का माहौल बना है, वह नयी चीज है.
अब हमें विकेंद्रित आर्थिकी के लिए पहलकदमी करनी होगी, ताकि रोजगार और आमदनी के मौके बन सकें. लौटते कामगारों, जिनकी संख्या ढाई करोड़ से अधिक हो सकती है, के लिए गांवों में व्यवस्था नहीं होगी, तो अराजकता की स्थिति पैदा हो सकती है. यह बड़ी चुनौती है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)