अपना रवैया बदलें प्रशासनिक अधिकारी

अधिकारियों में पद के दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़ गयी है. जिसके लिए प्रशासनिक सेवा गठित की गयी थी, वह अपना काम करती नजर नहीं आ रही है. अधिसंख्य अधिकारियों में संवेदना और मानवीय मूल्यों का अभाव साफ नजर आता है.

By Ashutosh Chaturvedi | January 30, 2023 8:03 AM
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रानी कहावत है कि देश में शासन पीएम, सीएम और डीएम ही चलाते हैं. बहुत हद तक इसमें सच्चाई भी है. हाल में प्रशासनिक अधिकारियों को लेकर दो खबरें सामने आयी हैं. भोपाल से खबर आयी कि वहां तैनात एक आईपीएस अधिकारी के बंगले पर 44 कांस्टेबल सेवा में लगे थे. नियमानुसार दो अर्दली रखे जा सकते हैं. बेड-टी तैयार करने से लेकर खाना बनाने का जिम्मा इन्हीं कॉन्स्टेबल का था. इनमें से कुछ झाड़ू-पोछा करते थे, तो कुछ कपड़े धोने और चौकीदारी और माली का भी काम करते थे. अधिकारी के पति भी वरिष्ठ अधिकारी हैं. उनके कोटे से भी 12 कर्मचारी बंगले पर तैनात थे.

खबरों के अनुसार, यदि उनकी सेवा में तैनात सभी कर्मचारियों का वेतन जोड़ा जाए, तो सरकारी खजाने से हर महीने 27 लाख रुपये से ज्यादा का भुगतान किया जा रहा था. दूसरी ओर हमारे देश में अशोक खेमका जैसे अफसर भी हैं, जो अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं. हरियाणा कैडर का यह अधिकारी किसी भी व्यवस्था को रास नहीं आता है. पिछले दिनों खेमका ने मुख्यमंत्री मनोहर लाल को पत्र लिखकर कहा है कि उनके पास काम कम है और उन्हें अधिक काम सौंपा जाए ताकि वे अपने वेतन को न्यायोचित ठहरा सकें. खेमका का 30 साल की नौकरी में 55वीं बार तबादला हुआ है और अब उन्हें अभिलेखागार विभाग में भेज दिया गया है. इस विभाग में सिर्फ 22 कर्मचारी काम करते हैं और काम तो कुछ है नहीं. इसलिए बार बार उनका तबादला इस विभाग में कर दिया जाता है. खेमका 2012 सुर्खियों में तब आये, जब उन्होंने सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा से जुड़े गुरुग्राम के एक जमीन सौदे के म्यूटेशन को रद्द कर दिया था.

कुछ समय पहले बिहार की एक आईएएस अधिकारी भी चर्चा में रहीं थीं. पटना के एक कार्यक्रम में एक छात्रा ने उनसे फ्री सेनेटरी पैड उपलब्ध कराने को लेकर सवाल पूछा था. इस पर उनका जवाब था कि मांग का क्या कोई अंत है. कल जींस पैंट भी मांगोगे और परसों कहोगे कि जूते क्यों नहीं देते हैं? जब छात्रा ने कहा कि सरकार वोट मांगने तो आ जाती है, तो इस पर उन्होंने कहा कि मत दो तुम वोट. पाकिस्तान चली जाओ. यह वीडियो देशभर में चर्चा का केंद्र रहा था. बाद में उस अधिकारी ने माफी मांग ली थी. झारखंड की तो पूछिए ही मत. कहा जाता है कि हरि अनंत, हरि कथा अनंता. यहां की कथा भी अनंत है. कुछ दिनों पहले दिल्ली के त्यागराज स्टेडियम में अपने कुत्ते के साथ सैर करने वाले आईएएस अफसरों का मामला चर्चा में रहा था. जब वे अपने कुत्ते को टहलाने ले जाते थे, तो पूरा स्टेडियम खाली करा दिया जाता था और वहां प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे सभी खिलाड़ियों को स्टेडियम से बाहर निकाल दिया जाता था.

इंडियन एक्सप्रेस अखबार में खबर छपने के बाद गृह मंत्रालय ने आईएएस दंपति का तबादला कर दिया. कहने का आशय यह है कि अधिकारियों में पद के दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़ गयी है. जिसके लिए प्रशासनिक सेवा गठित की गयी थी, वह अपना काम करती नजर नहीं आ रही है. अधिसंख्य अधिकारियों में संवेदना और मानवीय मूल्यों का अभाव साफ नजर आता है. अनेक अधिकारी प्रशासनिक ओहदे का बेजा इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं. हमारे सामने ऐसी अनेक घटनाएं हैं, जिनमें अधिकारियों के पास से बड़ी राशियां बरामद हुईं हैं. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सभी अधिकारी अपने अधिकारों का दुरुपयोग करते हों. ऐसे भी अनेक अधिकारी हैं, जिनका ध्येय जनसेवा है. मुंबई में अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान चलाने के कारण खेरनार चर्चित हुए थे.

किरण बेदी जब दिल्ली पुलिस की अधिकारी थीं, तो बेहद चर्चित रही थीं. उन्होंने ट्रैफिक व्यवस्था को सुचारू करने और अवैध वाहनों को हटाने के लिए पहली बार दिल्ली में क्रेन का इस्तेमाल किया था और लोग उन्हें क्रेन बेदी तक कहने लगे थे. लेकिन सत्ता प्रतिष्ठानों को भी ऐसे अफसर पसंद नहीं आते और उनके बार-बार तबादले होते हैं. अब ऐसे नौकरशाह उंगलियों पर गिने जा सकते हैं. कुछ समय पूर्व असम में बाढ़ के दौरान एक आईएएस अधिकारी कीर्ति जल्ली की कीचड़ में उतरकर लोगों की मदद करते हुए तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हुई थी. इसकी लोगों ने बड़ी सराहना की थी. फोटो में आईएएस अधिकारी कीर्ति जल्ली एक अन्य महिला के साथ एक नाव में खड़ी हैं, जहां दोनों के ही पांव कीचड़ से सने हुए हैं. असम में बाढ़ के बीच लोगों की मदद करने के लिए, उनकी दिक्कतें सुनने के लिए आईएएस अधिकारी कीर्ति जल्ली बाढ़ प्रभावित इलाके में पहुंच गयी थीं. स्थानीय लोगों का कहना है कि पिछले 50 वर्षों से ही वे बाढ़ से परेशान होते चले आ रहे हैं. लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि जब कोई आईएएस अधिकारी उनके पास बाढ़ के दिनों में आया हो और उनकी दिक्कतें सुनी हों.

संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में जिन नवयुवकों का चयन होता है, वे कड़ी मेहनत और प्रतिस्पर्धा में अपना मुकाम हासिल कर पाते हैं. किसी नवयुवक के प्रशासनिक सेवा में चयन पर बधाइयों का तांता लग जाता है. पूरे परिवार का नाम रौशन हो जाता है. लेकिन जब तब अधिकारियों के आचार व्यवहार को लेकर निराशाजनक खबरें सामने आती हैं, तो सिर शर्म से झुक जाता है. कुछ समय पहले प्रशासनिक सेवा की कोचिंग चलाने वाले एक सज्जन से भेंट हुई और उन्होंने अपने अनुभव साझा किये. उनका कहना था कि जब किसी नवयुवक का चयन होता है, तो वह शुरुआत में पैर छूता है और बहुत विनम्रता से मिलता है.

कुछ समय बाद वह हाथ मिलाता है, तब तक वह मान चुका होता है कि वह किसी अन्य जमात से है. चार-पांच साल बाद अगर कहीं आमना-सामना हुआ, तो अधिकांश मामलों में वह पूरी तरह अनदेखी कर देता है, जैसे जानता ही न हो. उनकी व्याख्या थी कि तब यह बात उसके मस्तिष्क में स्थापित हो चुकी होती है कि वह अन्य लोगों से श्रेष्ठ है और बाकी लोग उससे कमतर हैं. अधिकारियों को यह समझना होगा कि उनको यह स्थान उनकी योग्यता के कारण मिला होता है और वे व्यवस्था एवं जनता के प्रति जवाबदेह हैं, किसी राजनीतिक दल के प्रति नहीं. विकास की रौशनी गरीब आदमी तक पहुंचे, इसको सुनिश्चित करने के लिए आप इस जगह पर बैठे हैं. देश में अधिकारियों का सम्मान बना रहे, इस पर उन्हें स्वयं गौर करना होगा.

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