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ग्रामीण स्त्रियों का बदलता जीवन

Rural Women : सर्वे का मकसद इन महिला उद्यमियों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, डिजिटल तैयारी, आर्थिक क्षमता और सोशल कॉमर्स के इस्तेमाल के बारे में जानकारी हासिल करना था.

Rural Women : नैसकॉम फाउंडेशन की एक अध्ययन रिपोर्ट इस अर्थ में दिलचस्प है कि इसमें तकनीक से ग्रामीण महिलाओं के जीवन में आ रहे सकारात्मक बदलावों का आकलन किया गया है. ‘डिजिटल डिविडेंड्स : अंडरस्टैंडिंग द यूज ऑफ सोशल कॉमर्स बाइ वुमन इंटरप्रेन्योर्स इन रूरल इंडिया’ शीर्षक से जारी इस रिपोर्ट में देश के 24 जिलों की 795 महिला उद्यमियों के साथ बातचीत के आधार पर कुछ निष्कर्ष निकाले गये हैं. ये निष्कर्ष बताते हैं कि डिजिटल उपकरण और सोशल कॉमर्स यानी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के जरिये महिला उद्यमी कृषि और उससे संबंधित सेवाओं, हस्तशिल्प और कला, मैन्यूफैक्चरिंग यानी विनिर्माण, प्रसंस्करण क्षेत्र और रीटेलिंग यानी खुदरा क्षेत्र में किस तरह तस्वीर बदल रही हैं.

सर्वे का मकसद इन महिला उद्यमियों की सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, डिजिटल तैयारी, आर्थिक क्षमता और सोशल कॉमर्स के इस्तेमाल के बारे में जानकारी हासिल करना था. अध्ययन से सामने आया कि ग्रामीण भारत की 80 प्रतिशत महिलाएं उद्यमिता के क्षेत्र में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करती हैं. पर चूंकि सर्वे में शामिल उद्यमियों में 15 साल की किशोरियों से लेकर 60 साल की वृद्धा तक थीं.

ऐसे में, पाया गया कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल वे सिर्फ ग्राहकों से परिचय बनाए रखने के लिए ही करती हैं. डिजिटल तौर-तरीकों से पूरी तरह अवगत न होने और नेटवर्क की सतत उपलब्धता न होने के कारण व्यापार बढ़ाने के लिए वे ऑफलाइन तरीके पर ही निर्भर हैं. और इनमें मात्र 35 फीसदी महिला उद्यमियों को ही डिजिटल साक्षरता के मोर्चे पर सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदमों के बारे में पता है. ऑनलाइन तरीके से बिक्री के बाद भुगतान के लिए होने वाली प्रोसेसिंग में लगते समय और डाटा चार्ज भी इन्हें पूरी तरह डिजिटल तरीका अपनाने से रोकती हैं.

यह रिपोर्ट महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर बड़ा अभियान चलाने की जरूरत के बारे में बताती है और यह रेखांकित करती है कि सघन डिजिटल प्रोग्राम चलाये जाएं तथा प्रशिक्षण केंद्रों व संसाधनों तक पहुंच हो, तो ग्रामीण महिलाओं का उद्यमी बनना मुश्किल काम नहीं होगा. ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय संसाधनों तक पहुंच आसान करने और व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता ज्यादा है, क्योंकि इससे रोजगार की संभावनाएं बढ़ेंगी. वैसे भी ग्रामीण महिला उद्यमियों को सशक्त बनाने का गहरा सामाजार्थिक असर पड़ता है.

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