बाजार में मचा है हाहाकार, पढ़ें अरविंद मोहन का खास लेख
chaos in market : इस बार की गिरावट वैश्विक स्तर पर होने वाले कुछ बड़े बदलावों के चलते है और इसका असर हमारे बाजार पर केवल 13 जनवरी को नहीं आया है. हमारा सेंसेक्स अस्सी हजार अंक से इतना नीचे आ गया है कि जल्दी भरोसा नहीं होता कि वह कभी इतना ऊपर गया था.
Chaos In Market : बाजार में हाहाकार है. बाजार मतलब केवल शेयर और पूंजी बाजार नहीं, करेंसी बाजार और सामान्य बाजार भी. यह बात जोर-शोर से प्रचारित की जा रही है कि खुदरा मूल्य सूचकांक गिरा है और चार महीने के न्यूनतम स्तर पर आ गया है. पर वह अभी भी 5.2 प्रतिशत जैसे खतरनाक स्तर से ऊपर है और यह बात रिजर्व बैंक भी मानता है. पर अभी तत्काल बड़ी चिंता शेयर बाजार में कोहराम से है. जब 13 जनवरी को बाजार का एक दिन का नुकसान 13-14 लाख करोड़ रुपये का हो गया, तो दूसरे दिन सरकार और बाजार के कामकाज पर नजर रखने वाले सचेत हुए.
कुछ टेक्निकल करेक्शन का असर था और कुछ हजारों करोड़ रुपये झोंकने का, बाजार में हल्की बढ़त दिखी. झोंकना शब्द जान-बूझकर इस्तेमाल किया गया है, क्योंकि साझा कोष हों या सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां, उनके निवेश का निर्णय बाजार के रुख की जगह सरकार के रुख से तय होता है और हर संकट में ऐसा निवेश बाजार बचाने वाला होता है. करेंसी बाजार को संभालने के लिए तो सचमुच बैंक में जमा धन बाजार में उतारना पड़ता है. इस बार बाजार संभल पायेगा यह कहना मुश्किल है.
इस बार की गिरावट वैश्विक स्तर पर होने वाले कुछ बड़े बदलावों के चलते है और इसका असर हमारे बाजार पर केवल 13 जनवरी को नहीं आया है. हमारा सेंसेक्स अस्सी हजार अंक से इतना नीचे आ गया है कि जल्दी भरोसा नहीं होता कि वह कभी इतना ऊपर गया था. चार सत्रों में ही गिरावट ढाई हजार अंकों से ज्यादा की हो चुकी है. बाजार के जानकार जिन बारीक चीजों पर नजर रखते हैं, उनमें ‘निफ्टी नेक्स्ट 50’, अर्थात निफ्टी में शामिल पचास शेयरों के बाद वाले पचास शेयरों का हिसाब समझ आता है, में और ज्यादा गिरावट के लक्षण देख रहे हैं. उनमें आम तौर पर बीस प्रतिशत से अधिक की गिरावट है, लेकिन अडानी ग्रीन जैसे शेयरों में वर्षभर में 58 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी है. तेरह जनवरी को ही बाजार 1.5 प्रतिशत के आसपास गिरा तो इन पचास शेयरों में गिरावट 4.3 प्रतिशत थी. निवेशक बाजार से मुंह मोड़ रहे हैं. ऐसा विदेशी निवेशक लगातार कर रहे हैं और उनके पूंजी निकालने तथा चीन की तरफ रुख करने पर सरकार अपनी संस्थाओं और सहयोगी संस्थाओं से लिवाली कराके बाजार को स्थिर करने का प्रयास करती रही है. पिछले वर्ष की अंतिम छमाही में यह ट्रेंड रहा है.
शेयर बाजार की बदहाली का एक बड़ा कारण तो अचानक चीन के बाजारों में बढ़ता निवेश है और इसमें चीन सरकार की नीतियों के साथ दुनिया के बाजार में चीन की अनिवार्यता को स्वीकार करना भी एक कारण है. आज चीन का विदेश व्यापार का सरप्लस एक ट्रिलियन डॉलर का हो चुका है और काफी सारे देशों को लगता है कि चीन के उत्पादन तंत्र में पूंजी, ब्रांड-मूल्य और तकनीक की साझेदारी से यदि वह घाटे को कम कर सकते हैं तो जरूर करना चाहिए. चीन ने भी विदेशी निवेश आकर्षित करने के इंतजाम बढ़ाये हैं. पिछले छह महीने का जो हिसाब है, वह बताता है कि चीन के प्रति डोनाल्ड ट्रंप के जहर उगलने का भी निवेशकों के मन पर कोई असर नहीं हो रहा है. पर आज दुनिया के पूंजी बाजार में एक अलग तरह की हलचल है (और हमारे बाजार भी उससे गहरे प्रभावित हैं), उसका ट्रंप के आगमन और उससे भी अधिक सरकारी अमेरिकी गील्ड में रिटर्न की डर का पांच प्रतिशत से ऊपर पहुंचने का हाथ है.
जब बैंक और सरकारी बांड वगैरह में पड़ी रकम पांच प्रतिशत से अधिक की कमाई देने लगे, तब अमेरिकी ही नहीं विकसित दुनिया के काफी सारे निवेशकों को दूसरी तरफ देखने की जरूरत नहीं है. और ऐसा भरोसा तब और असरदार हो जाता है जब ट्रंप के आगमन की आशंका से बाजार में बेचैनी हो. इसका असर निश्चित रूप से हमारे शेयर बाजारों के साथ रुपये का मोल गिरने पर पड़ा है और दुनियाभर में पेट्रोलियम की कीमतों में अचानक और अकारण से उछाल पर पड़ा है. अमेरिकी डॉलर का मूल्य अमेरिका में भी बढ़ा है क्योंकि उसमें निवेश में कमाई के नतीजे बेहतर होने की रिपोर्ट आयी है. वहां भी नैस्डैक एक प्रतिशत गिरा है और इसका असर वैश्विक है.
पर हमारे बाजार और रुपये की गिरावट को हम अकेले इसी बहाने नजरअंदाज नहीं कर सकते. डॉलर का 86.53 रुपया छूना बताता है कि हम असल खतरे वाले जोन में आ रहे हैं. यदि डॉलर की मजबूती और अमेरिकी बैंक रेट में गिरावट के लक्षण नहीं हैं, तो रुपये जैसी कमजोर मुद्राओं पर लगातार दबाव रहेगा. स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक की भविष्यवाणी है कि वर्षभर में हमारा रुपया डॉलर के मुकाबले सवा रुपया और गिरेगा. इसका सीधा असर हमारे आयात बिल पर पड़ेगा. पिछले सितंबर से दिसंबर के तीन महीनों में रुपये को संभालने में चार लाख करोड़ से ज्यादा की लिक्विडिटी कम हुई है, अर्थात बाजार में नकदी कम हुई है. पर यह मात्र करेंसी का मामला नहीं है. बीस तारीख को जब ट्रंप सत्ता में आयेंगे, तब के बाद वे काफी ऐसी चीजें करने वाले हैं जिनका हमारी पूरी अर्थव्यवस्था पर असर आयेगा. इसमें वीसा नियमों का बदलाव भी है.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)