बच्चों की परवरिश अहम
बच्चे भविष्य हैं और माता-पिता उस भविष्य को बनाने में मदद करते हैं. समाज के रूप में यह हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम माता-पिता की मदद करें.
माता-पिता बच्चों के जीवन को एक दिशा देते हैं तथा रिश्तों, दृष्टिकोण एवं व्यवहार के पैटर्न की नींव रखते हैं. माता-पिता बचपन में बच्चों को कितनी सावधानी से मार्गदर्शन करते हैं, इससे निर्धारित होता है कि वयस्क होने पर बच्चे का कितने अच्छे तरीके से विकास होगा. इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि बच्चों की देखभाल और परवरिश को दुनिया के सबसे महत्वपूर्ण एवं चुनौतीपूर्ण कार्यों में गिना जाता है.
हर साल जून महीने को ‘अभिभावक माह’ के रूप में मनाया जाता है, जिसका लक्ष्य बचपन में बच्चों को मिलने वाली सुरक्षा, पोषण तथा बेहतर वातावरण का बच्चों के मानसिक स्थिति पर पड़ने वाले अच्छे एवं सकारात्मक प्रभाव के बारे में जागरूकता पैदा करना है. यूनिसेफ बच्चों के पालन-पोषण को देखभाल के प्रावधान से जुड़े व्यवहारों, भावनाओं, जानकारियों, विश्वासों, दृष्टिकोणों तथा प्रथाओं के रूप में परिभाषित करता है. यह बच्चे के विकास और समाजीकरण को बढ़ावा देने और समर्थन करने की प्रक्रिया को संदर्भित करता है.
माता-पिता का यह स्थायी कार्य है कि वे बच्चों के विकास में मदद करने के साथ-साथ उन्हें शारीरिक, मनो-सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों के लिए तैयार करें, जिसमें वे रहते, काम करते, खेलते, सीखते और बढ़ते हैं, लेकिन सब कुछ इस पर निर्भर करता है कि कोई इसके बारे में कैसे सोचता और करता है. यदि आपके बच्चे की महत्वपूर्ण नोटबुक खो जाए, तो आप क्या करेंगे? क्या आप उसे सावधान न रहने के लिए डांटेंगे या आप पहले नोटबुक को खोजने में उसकी मदद करेंगे तथा धैर्य व समझदारी से काम लेंगे और बाद में उसे समझायेंगे कि वह भविष्य में अपनी चीजों की कैसे बेहतर तरीके से देखभाल कर सकता है?
यदि आपका उत्तर बाद वाला है, तो आपका मार्ग सकारात्मक मार्ग है. बच्चों को डांटने से भले ही आप अच्छा महसूस करें, लेकिन इसका असर बच्चे के दिमाग पर जीवन भर रहेगा. डांटना यह भी रेखांकित करता है कि माता-पिता का अपनी भावनाओं पर सीमित नियंत्रण है. माता-पिता के रूप में शायद आप अपने बच्चे के लिए ऐसा मॉडल स्थापित करना नहीं चाहेंगे, जिसका आपका बच्चा अपने परवर्ती जीवन में अनुसरण करे.
सकारात्मक पालन-पोषण बच्चे के आत्म-सम्मान को बढ़ा सकता है. बच्चे के जीवन के पहले कुछ वर्षों पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, क्योंकि इस दौरान उसका मस्तिष्क असाधारण दर से विकसित होता है. कहानी सुनाना, दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों के बारे में चर्चा करना, एक साथ पढ़ना या बगीचे में घूमना, ये सभी सीखने की गतिविधियां हैं. खेल बच्चों के लिए एक मजेदार गतिविधि होने के साथ-साथ उनके शारीरिक, मानसिक, सामाजिक तथा भावनात्मक व्यवहार में सुधार लाता है.
माता-पिता को अपने बच्चों की बातें सुननी चाहिए, उन्हें स्नेह दिखाना चाहिए, लेकिन उन्हें रचनात्मक रूप से अनुशासित भी करना चाहिए. उनकी सीमाओं को स्वीकार करते हुए उनकी प्रतिभा को भी प्रोत्साहित करना जरूरी है. प्रासंगिक मुद्दों के बारे में उनसे खुल कर बातचीत करना चाहिए, जैसे कि ऐसा क्या है, जिससे वे सबसे ज्यादा डरते हैं? क्या वे कम आत्मविश्वास महसूस करते हैं? क्या किसी ने उन्हें हाल ही में परेशान किया है?
उन्हें महसूस कराएं, उनके विचार और राय आपके लिए मायने रखते हैं. जिन बच्चों को पर्याप्त देखभाल और सुरक्षा नहीं मिलती है, वे शारीरिक और मानसिक रूप से कमजोर महसूस करते हैं. बाहरी गतिविधियों में भाग लेने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए. व्यक्तिगत खेल, जैसे दौड़ना, कूदना और साइकिल चलाना बच्चों को उनके अंदर शक्ति का विकास, लचीलापन, सहनशक्ति और संतुलन में सुधार करने में मदद करता है.
समूह में बच्चों के खेलने से उनमें आत्मविश्वास, सहनशक्ति, संवाद और प्रतिकूल परिस्थितियों से निपटने जैसे महत्वपूर्ण जीवन कौशल का विकास होता है. बच्चों के वीडियो गेम या फोन में मशगूल रहने की परिस्थिति में माता-पिता के लिए यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि वे अपने बच्चों के स्क्रीन समय को सीमित करें, उन्हें इसके नकारात्मक प्रभावों के बारे में शिक्षित करें और उन्हें खेलने के लिए बाहर कदम रखने हेतु प्रोत्साहित करें.
देखभालकर्ताओं की देखभाल भी महत्वपूर्ण है. चाहे वे माता-पिता, दादा-दादी या दूसरे अन्य बड़े-बुजुर्ग हों, अक्सर वे अपनी देखभाल और मानसिक स्वास्थ्य के साथ संघर्ष करते दिखाई पड़ते हैं. जरूरत यह है कि हम इन्हें ज्ञान, कौशल और प्रोत्साहन प्रदान करें, जो उन्हें खुद को अनदेखा किये बिना बच्चों के साथ संबंध विकसित करने में मदद करे. परिवार के अनुकूल नीतियों, जैसे पेड पैरेंटल लीव, ब्रेस्टफीडिंग ब्रेक, चाइल्डकेयर एवं चाइल्ड ग्रांट आदि, के माध्यम से माता-पिता को आवश्यक समय प्रदान करना आवश्यक है.
यूनिसेफ व्यवसाय जगत तथा सरकारों से परिवार के अनुकूल नीतियों में निवेश करने का आह्वान करता है, ताकि बाल अधिकार समझौता के अनुच्छेद 18 के अनुरूप समृद्ध तथा न्यायसंगत समाज का निर्माण किया जा सके. हमें विशेष रूप से संकट की स्थितियों में बच्चों एवं देखभाल करने वालों के लिए समर्पित मानसिक स्वास्थ्य तथा मनो-सामाजिक सहायता कार्यक्रमों पर खर्च बढ़ाने की आवश्यकता है. सर्वोत्तम संभव परवरिश प्रदान करना आसान काम नहीं है. बच्चे भविष्य हैं और माता-पिता उस भविष्य को बनाने में मदद करते हैं. समाज के रूप में यह हमारा कर्तव्य होना चाहिए कि हम माता-पिता की मदद करें.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)