बच्चों के खान-पान को सुरक्षित बनाया जाए
आज भारत में लगभग एक-तिहाई बच्चे बीमार और 10 प्रतिशत बच्चे डायबिटीक हो चुके हैं. ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं, तो कम उम्र में हार्ट अटैक, नपुंसकता, डायबिटीज और कैंसर जैसी समस्याओं का जोखिम बहुत बढ़ जाता है.
नवजात शिशुओं और बच्चों के खान-पान में चीनी की अधिक मात्रा की खबरें बेहद चिंताजनक हैं. लेकिन इस संबंध में बहुत समय से चेतावनी दी जा रही है. यहां चीनी (शुगर) का मतलब केवल वह सफेद चीनी नहीं है, जो हम आम तौर पर खाते हैं. यहां इसका अर्थ हर मीठी चीज से है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन खाद्य पदार्थों को एक विशेष श्रेणी में रखा गया है, जिनमें वसा, चीनी और नमक की मात्रा बहुत अधिक होती है. ऐसा इसलिए करना पड़ा है क्योंकि दुनियाभर में जो पैक्ड फूड और ड्रिंक्स आ रहे हैं, बच्चों के खाने-पीने की वस्तुएं आ रही हैं, उनमें यही तीन चीजें अधिक हैं. खाने में मीठी लगने वाली हर चीज में किसी न किसी रूप में चीनी होती है. इसमें सबसे खतरनाक रूप है फ्रुक्टोज, जो फलों में होता है. ग्लूकोज उतना मीठा नहीं होता और यह हमारे शरीर के लिए बहुत आवश्यक है, लेकिन शरीर इसे अपने-आप वसा, कार्बोहाइड्रेट या प्रोटीन से बना लेता है. बाहर से हम ग्लूकोज लें, यह जरूरी नहीं है. फ्रुक्टोज के कारण कोई भी चीज बहुत अधिक मीठी लगती है. जो फ्रुक्टोज तमाम तरह के सिरप में मिलाया जाता है, उसे आम तौर पर मक्के से बनाया जाता है. किसी भी उत्पाद में अगर लिखा हुआ है कि इसमें शुगर मिलाया गया है, तो वह फ्रुक्टोज ही होता है.
फ्रुक्टोज मस्तिष्क के एक हिस्से को स्टिम्युलेट करता है और डोपामाइन निकलता है. खाने-पीने वाले को अच्छा लगता है. इस कारण वह बार-बार उस चीज को खाना-पीना चाहता है. इस तरह से उसकी लत लगती है. यही डोपामाइन शराब, सिगरेट आदि के सेवन से निकलता है. क्या फ्रुक्टोज फूड है? फूड का काम है मनुष्य की कोशिका को बढ़ाये या ऊर्जा उत्पन्न करे. अध्ययन बताते हैं कि फ्रुक्टोज विकास को बाधित करता है. खाद्य पदार्थ बनाने वाली कंपनियां लोगों को अपने उत्पादों का आदी बनाने के लिए फ्रुक्टोज की मिलावट करती हैं. यह प्रवृत्ति 1980 के बाद से विशेष रूप से बढ़ी. उससे पहले बच्चों में लीवर में अतिरिक्त वसा होने (फैटी लीवर) की समस्या नहीं देखी जाती थी. ऐसे मामले बहुत अधिक शराब पीने वालों और मोटे लोगों में देखे जाते थे. आप देखते हैं कि अमेरिका और भारत समेत कई देशों में चीनी के उत्पादों पर सब्सिडी दी जाती है. चीनी कोई चावल-दाल जैसी राशन की चीज तो है नहीं. असल में यह खाद्य कंपनियों और सरकारों की मिलीभगत का नतीजा है. इससे उनके उत्पादों का उपभोग बहुत अधिक बढ़ गया और लोगों को भी लगने लगा कि ऐसे उत्पाद स्वास्थ्य के लिए ठीक हैं.
अध्ययनों से साबित हो चुका है कि बाहर से लिये जाने वाले ग्लूकोज या फ्रुक्टोज हमारे शरीर को कोई ऊर्जा नहीं देते हैं. फ्रुक्टोज असल में ऊर्जा बनने की प्रक्रिया को बाधित करता है, फैटी लीवर कराता है, लत लगाता है, मोटापा बढ़ाता है और बाद में यह कैंसर का कारण भी बन सकता है. आज भारत में लगभग एक-तिहाई बच्चे बीमार और 10 प्रतिशत बच्चे डायबिटीक हो चुके हैं. ऐसे बच्चे जब बड़े होते हैं, तो कम उम्र में हार्ट अटैक, नपुंसकता, डायबिटीज और कैंसर जैसी समस्याओं का जोखिम बहुत बढ़ जाता है. हमें समझना होगा कि एक समूची पीढ़ी तबाह होती जा रही है. अगर कोई गर्भवती स्त्री एनर्जी ड्रिंक का सेवन करती है, तो उससे गर्भस्थ शिशु भी प्रभावित होता है. इस प्रकार पैक्ड फूड और अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड से शिशु से लेकर बड़े तक सभी बीमार हो रहे हैं. दुर्भाग्य से चिकित्सकों को खाद्य और पोषण के बारे में समुचित जानकारी नहीं है क्योंकि मेडिकल कॉलेजों में पांच साल की पढ़ाई के दौरान कुछ ही घंटे इस बारे में बताया जाता है. अमेरिका के केवल 20 फीसदी मेडिकल कॉलेजों में फूड के बारे में बताया जाता है, वह भी पांच साल में केवल 20 घंटे. अपने अनुभव से मैं कह सकता हूं कि हमें भारत में पांच साल में केवल दो घंटे इस संबंध में पढ़ाया गया था. इस पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए.
माता-पिता को हर प्रोसेस्ड पैक्ड फूड को घर में लाने से परहेज करना चाहिए. ऐसी चीजें जहर हैं और इनसे आपके बच्चे बीमार होंगे. कोशिश हो कि प्रकृति से मिली चीजों का सेवन हो या रसोई में बना भोजन खाया जाए. क्षेत्र और मौसम विशेष में होने वाले फलों का सेवन हो, न कि आयातित उत्पादों का. जूस और पेय पदार्थों से दूरी में ही भलाई है, यह हमें समझना होगा. चिकित्सकों को भी कोशिश करनी चाहिए कि यथासंभव रोगों का निदान खान-पान को ठीक करने के जरिये हो. खाद्य सुरक्षा के लिए कई कानूनी प्रावधान हैं. अनेक एजेंसियां हैं, अधिकारी हैं. इसके बावजूद विदेशों से या अन्य जांचों से पता चल रहा है कि बच्चों के खाने-पीने की चीजें नुकसानदेह हैं. इसका अर्थ है कि ये इंतजाम कारगर नहीं हैं. ये खामियां जल्दी ठीक होनी चाहिए. सरकारों को भी अधिक मुस्तैद होने की जरूरत है. वह दिन भी आयेगा, जब लोग खाद्य कंपनियों के खेल को समझेंगे और उनके उत्पादों का सेवन बंद कर देंगे, लेकिन तब तक देर हो चुकी होगी. उन कंपनियों को भी अपने मुनाफे से अधिक भविष्य की पीढ़ियों की भलाई के बारे में सोचना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)