China–India relations : बीते माह की 31 तारीख को भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने ईटी वर्ल्ड लीडर्स फोरम को संबोधित करते हुए कहा कि चीन से दुनिया को दिक्कत है और चीन भारत के लिए विशेष समस्या है. ऐसे में चीन के साथ हो रहे निवेश व कारोबार संबंधों की समीक्षा की जानी जरूरी है. उल्लेखनीय है कि हाल ही में थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 के पहले छह महीनों, यानी जनवरी से जून के दौरान भारत का चीन के साथ अब तक का सर्वाधिक व्यापार घाटा दर्ज किया गया है, जिसका आकार 41.6 अरब डॉलर है. इस अवधि में चीन से आयात बढ़ कर 50.1 अरब डॉलर हो गया, जबकि चीन को भारत से सिर्फ 8.5 अरब डॉलर मूल्य की वस्तुओं का निर्यात किया गया. यदि हम पिछले संपूर्ण वित्त वर्ष 2023-24 में चीन के साथ भारत के व्यापार को देखें, तो पायेंगे कि चीन से आयात 101.75 अरब डॉलर हुआ था, जबकि चीन को निर्यात 16.66 अरब डॉलर रहा था.
भारत का व्यापार घाटा 85.09 अरब डॉलर रहा
बीते वित्त वर्ष में चीन के साथ भारत का व्यापार घाटा 85.09 अरब डॉलर रहा. इन आंकड़ों को देखते हुए यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि चीन के साथ लगातार बढ़ता हुआ व्यापार घाटा देश के सामने एक बड़ी चुनौती है. ऐसे में केंद्रीय उद्योग एवं वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल के मुताबिक, प्रोत्साहन आधारित उत्पादन (पीएलआइ) योजना के तहत एक्टिव फार्मास्युटिकल इंग्रेडिएंट्स (एपीआइ) का उत्पादन बढ़ा कर इसके चीन से बढ़े पैमाने पर होने वाले आयात में कमी लाने की कोशिश की जा रही है. केंद्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक भारत में कृषि उत्पादन बढ़ाने और खाद्य प्रसंस्करण उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के रणनीतिक प्रयास किये जा रहे हैं. ऐसा कर चीन को इनके निर्यात में बढ़ोतरी की जा सकती है.
भारत भरोसेमंद देश के रूप में अपने निर्यात में बढ़ोतरी कर सकता
गौरतलब है कि इन दिनों भारत-चीन के व्यापार से संबंधित प्रकाशित हो रही विभिन्न वैश्विक आर्थिक एवं वित्तीय संगठनों की रिपोर्टों में यह कहा जा रहा है कि इस समय भारत के पास चीन से आयात घटाने तथा वैश्विक निर्यात में भारत की हिस्सेदारी बढ़ाये जाने की संभावनाएं हैं. इन संभावनाओं को साकार किये जाने के चार प्रमुख आधार हैं. एक, चीन से बाहर निकलते बड़े उद्योगों, बड़ी कंपनियों और निवेश के भारत के पाले में आने की सबसे अधिक संभावनाएं हैं. ऐसा होने से भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर को बड़ी मजबूती मिलेगी. दूसरी संभावना यह है कि चीन प्लस वन रणनीति के तहत भारत दुनिया के सक्षम व भरोसेमंद देश के रूप में अपने निर्यात में बढ़ोतरी कर सकता है. साथ ही, अमेरिका सहित यूरोपीय व कई विकसित देश चीन से आयात घटाने के लिए चीनी उत्पादों पर जिस तरह असाधारण आयात प्रतिबंध लगा रहे हैं, उससे इन देशों में भारत के उत्पादों का निर्यात बढ़ने की नयी संभावनाएं पैदा हुई हैं.
कृषि पदार्थों के निर्यात में तेज वृद्धि संभव
तीसरी आशा यह है कि देश से चीन को कृषि पदार्थों और खाद्य प्रसंस्करण निर्यात में तेज वृद्धि की जा सकती है. चार, वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा वित्त वर्ष 2024-25 के बजट में किये गये प्रावधानों से भारत का आयात घटने व निर्यात बढ़ने की संभावनाएं हैं.उल्लेखनीय है कि वैश्विक वित्तीय कंपनी नोमूरा ने हाल ही में जारी अपनी एक रिपोर्ट में कहा कि चीन से वैश्विक कंपनियां बाहर निकल रही हैं, जिसका बड़ा फायदा भारत को मिलता दिख रहा है. नोमूरा के द्वारा चीन प्लस वन स्ट्रेटजी पॉलिसी को लेकर 130 फर्मों के साथ सर्वे किया गया है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि खास तौर से भारत के दरवाजे पर दस्तक दे रही इलेक्ट्रॉनिक्स, ऑटोमोबाइल, कैपिटल गुड्स, सेमीकंडक्टर (एसेंबलिंग, टेस्टिंग), एनर्जी (सोलर) के अलावा फार्मास्युटिकल्स सेक्टर की कंपनियों का भारत में हर संभव सुविधा देकर स्वागत करना होगा. यह भी महत्वपूर्ण है कि जी-20 की नयी शक्ति से सुसज्जित भारत नये वैश्विक आपूर्तिकर्ता देश की भूमिका में उभरकर सामने आया है तथा वह चीन को आर्थिक टक्कर देने की स्थिति में है.
चीन का दबदबा तोड़ने की कोशिश
ऐसे में भारत अधिक रणनीतिक प्रयासों से भारतीय बाजार में उद्योग-कारोबार, निर्यात और निवेश के अधिक मौकों को मुठ्ठियों में ले सकता है. निश्चित रूप से दुनिया के बाजार में चीन का दबदबा तोड़ने के परिप्रेक्ष्य में यूरोपीय, अमेरिका और अन्य कई देश चीन से आयात के बढ़ते खतरों के मद्देनजर चीनी आयातों पर असाधारण आयात प्रतिबंध लगाते हुए दिखाई दे रहे हैं. विगत 12 जून को यूरोपीय आयोग ने चीन में बने इलेक्ट्रिक वाहनों पर 48 फीसदी तक आयात शुल्क लगाना सुनिश्चित किया है. पिछले कई वर्षों से यूरोपीय देशों की चीन से आयात पर शुल्क की दरें 10 फीसदी तक ही सीमित रही हैं. ऐसे में विभिन्न देशों के द्वारा चीन से आयात होने वाले अनेक उत्पादों पर लगातार बढ़ता शुल्क चीन के आयातों को हतोत्साहित करने की एक अहम पहल है. ऐसे में इन देशों में भारत से निर्यात की संभावनाएं बढ़ी हैं.
औद्योगिक पार्क बनाने की घोषणा
यह बात महत्वपूर्ण है कि मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर देश से निर्यात और रोजगार सृजन दोनों में अहम योगदान देता है और इसके प्रोत्साहन के लिए इस बजट में खास ख्याल रखा गया है. वित्त मंत्री ने बजट में देश के 100 शहरों में प्लग एंड प्ले वाले औद्योगिक पार्क बनाने की घोषणा की है. नि:संदेह अब एक बार फिर से देश के करोड़ों लोगों को चीनी उत्पादों की जगह स्वदेशी उत्पादों के उपयोग के नये संकल्प के साथ आगे बढ़ना होगा. इस बात को भी समझना होगा कि चीन से व्यापारिक असंतुलन की गंभीर चुनौती के लिए सिर्फ सरकार ही जिम्मेदार नहीं है. चीन के साथ व्यापार असंतुलन के लिए सीधे तौर पर देश का उद्योग-कारोबार और देश की कंपनियां भी जिम्मेदार हैं, जिनके द्वारा कल-पुर्जे सहित संसाधनों के विभिन्न स्रोत और मध्यस्थ विकसित करने में अपनी प्रभावी भूमिका नहीं निभायी गयी है. देश की बड़ी कंपनियों को शोध एवं नवाचार के क्षेत्र में भी तेजी से आगे बढ़ना होगा. इस बात पर भी गंभीरतापूर्वक ध्यान दिया जाना चाहिए कि जिस तरह हाल ही में यूरोपीय संघ और अन्य विकसित देशों के द्वारा चीन से आयात नियंत्रित करने के लिए गैर-टैरिफ अवरोध के साथ अन्य आयात प्रतिबंधों को असाधारण रूप से बढ़ाया गया है, उसी तरह भारत के द्वारा संरक्षणवाद के तरीके अपनाते हुए चीन से तेजी से बढ़ रहे आयात और चीन के साथ बढ़ते हुए व्यापार घाटे को नियंत्रित करने के लिए रणनीतिक रूप से आगे बढ़ना होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)